मावली बस्तर की मूल देवी

हेमंत कश्यप

जगदलपुर। कुछ लोग माता मावली और मां दंतेश्वरी को एक बताकर लोगों को भ्रमित कर रहे हैं और अपने आप को बस्तर का बहुत बड़ा इतिहा सकार बताते हुए लाला जगदलपुरी और डॉ. केके झा द्वारा लिखी और कही गई बातों को गलत ठहरा रहे हैं। इसका सीधा सा कारण यह है कि वह अपनी किताब को अमेजॉन पर बेच रहा है, इसलिए स्वार्थवश बस्तर के संदर्भ में पूर्व में लिखी और कही गई जानकारियों को झूठला रहा है ताकि उसकी किताब बिक सके।

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आईये, बस्तर की मूल माता मावली के संदर्भ में कुछ तथात्मक और रोचक बातें करें….

  1. मावली माता बस्तर की मूल देवी है। जो यहां विभिन्न नामों से पूजी जाती हैं।
  2. बस्तर में मावली माता के अनेक नाम हैं। बस्तर अंचल के लगभग प्रत्येक गांव में मावली गुड़ी है और मावली देवी को मानते लोग मिल जायेंगे। मावली को अंचल में अन्य नामों से भी पुकारा जाता है। जैसे- मावली, दन्तेश्वरी मावली, मुकड़ी मावली, कुंवारी मावली, गढ़दला मावली, मुंदरा मावली हाटगांव, खण्डी मावली सिवनी, नवापारिन मावली कोंडागांव, बड़े मावली करंजीमेटा केशकाल, दल मावली सिवनी, हिरन्दी मावली ओरण्डी, मुरकी मावली कबोंगा, हमेश्वरी मावली कोंडागांव, हथकरी मावली खुड़ी कोण्डागांव, उतरान मावली सोनबेड़ा, लिंगो मावली बागबेड़ा, सेमुरमुंदीन मावली खुटपदर, कमलेश्वरी मावली पीड़ापाल, गढ़ मावली, रायपति मावली टिमनार, गठुला मावली उलेरा रांधना आदि नामों से पूजे जाते हैं। मावली माता को अधिकतर डोली के रूप में देव स्थानों में रखा जाता है, वहीं कई स्थानों में प्रतीकात्मक रूप में हाथी और मूर्ति भी पाई जाती है।
  3.  वर्ष 1313 में अन्नम देव जब अपनी कुलदेवी माता दंतेश्वरी को लेकर वारंगल से बस्तर आए थे तब उन्होंने बस्तर की मूल माता मावली की अनुमति लेकर ही अपनी देवी की अस्थाई स्थापना की थी। अन्नम देव द्वारा 711 साल पहले लाई गई अष्टधातु से निर्मित मां दंतेश्वरी की वह प्रतिमा आज भी जगदलपुर स्थित दंतेश्वरी मंदिर में रखी गई है।
  4.  काकतीय वंश के राजाओं ने अपनी कुलदेवी मां दंतेश्वरी को केंद्र में रखकर बस्तर दशहरा मनाने की शुरुवात की थी।
  5.  इसलिए प्रति वर्ष विशेष तौर पर बस्तर की मूल देवी मावली को राज परिवार द्वारा आमंत्रित किया जाता है।
  6. बस्तर दशहरा के दौरान मावली परघाव बस्तर के मूल देवी के सम्मान का महापर्व है।
  7.  बस्तर दशहरा के दौरान तिथि के अनुसार 5- 6 दिन फूल रथ और दो दिन विजय रथ खींचा जाता है।
  8.  इन रथों पर माता दंतेश्वरी का छत्र विराजित होता है इसलिए यह रथ बस्तर की मूल देवी मावली माता मंदिर की परिक्रमा करता है।
  9.  मावली माता बस्तर के मूल देवी है इसलिए बस्तर दशहरा के दौरान सिरहासार के गड्ढे में बैठने वाला जोगी मावली खांडा (तलवार) को सामने रखकर 9 दिन साधना करता है, ताकि यह महापर्व निर्विघ्न संपन्न हो सके।
  10.  शारदीय नवरात्र नवमी के दिन माता दंतेश्वरी, माता मावली और माता सितेश्वरी के खांडा अर्थात तलवार को मावली माता मंदिर में एक जगह स्थापित कर विशेष पूजा की जाती है।
  11.  यहां पर यह जानकारी देना भी जरूरी है कि मां दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा का प्रथम निर्माण किसने कराया? इसका कोई इतिहास नहीं है, लेकिन दंतेवाड़ा मंदिर में स्थापित शिलालेख में इस बात का उल्लेख जरूर है कि “वारंगल से आए अर्जुन पांडव कुल के राजा ने दंतेश्वरी मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। जगजननी तो एक ही हैं। क्षेत्र स्वामिनी के रूप में हम लोग ही माताओं को अलग अलग नाम दिए हैं।

विचार करें… अगर दंतेश्वरी और मावली एक होतीं तो…

  1.  दंतेवाड़ा में दंतेश्वरी और माणिकेश्वरी (मावली) के नाम से अलग-अलग मंदिर क्यों होता?
  2. दोनों देवी एक ही होतीं तो जगदलपुर में राजाओं ने दंतेश्वरी और मावली माता मंदिर अलग-अलग क्यों बनवाया?
  3. दोनों देवी एक ही होती तो विश्व प्रसिद्ध नारायणपुर मेला का नाम मावली मेला क्यों है?
  4. दोनों देवियों एक ही होतीं तो दंतेवाड़ा से मां दंतेश्वरी का छत्र और मावली माता की डोली जगदलपुर नहीं लाई जाती। कोई एक वस्तु ही लाई जाती।
  5.  दंतेश्वरी और मावली एक ही होती तो बस्तर दशहरा में मावली परघाव अलग से करने की जरूरत ही नहीं पड़ती। क्या दंतेश्वरी ही दंतेश्वरी का स्वागत करतीं?
  6. दंतेश्वरी और मावली एक होती तो बस्तर में दंतेश्वरी पारा या दंतेश्वरीगुड़ा नामक बस्तियां होतीं न कि मावलीपदर और मावलीभाटा जैसे गांव।

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मेरा मकसद आप सभी के समक्ष बस्तर की मूल देवी मावली की महत्ता और वस्तु स्थिति को सामने रखना है। जिसे एक कथित साहित्यकार झुठला रहा है, वहीं जो लोग मावली की महत्ता से वाकिफ नहीं हैं। उन्हें भ्रमित किया जा रहा है। ऐसे सरकारी इतिहासकारों की बातों से बचें, जो यह भी कहता है कि “डॉ. के के झा और लाला जगदलपुरी इतिहासकार नहीं है। उन्हें क्या मालूम। मैंने दंतेवाड़ा के जिया महाराज से बात कर किताब लिखी है। उन्हें बताना चाहता हूं कि मैने भी 12 साल पहले वर्ष 2013 दंतेश्वरी मंदिर के तत्कालीन जिया हरिहर महाराज से पूरी जानकारी लेकर किताब लिखी है। जिसके दो संस्करण को टेंपल स्टेट कमेटी दंतेवाड़ा द्वारा प्रकाशित कराया गया है। उक्त किताब में गलत जानकारी होती तो प्रशासन छापने की अनुमति ही क्यों देता? आशा है कि उपरोक्त बातों से लोगों का भ्रम दूर हो गया होगा।

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