मोहनलागंज लोकसभाः  40 साल पहले कांग्रेस को मिली थी जीत, अब कौशल हैट्रिक की तलाश में?

  • क्या सपा-बसपा दे पाएंगे चुनौती?
  • बसपा का अभी नहीं खुला है खाता
  • कांग्रेस को भी जीत की तलाश
  • किशोर को मोदी के कौशल की आस

लखनऊ जिले के तहत दो संसदीय सीटें आती हैं और दोनों ही सीटों के सांसद केंद्र में मंत्री हैं। कौशल किशोर के अलावा लखनऊ से सांसद राजनाथ सिह भी मंत्री हैं। राजनाथ सिह रक्षा मंत्री हैं तो कौशल किशोर आवास में राज्य मंत्री। मोहनलालगंज सीट साल 1962 के लोकसभा चुनाव से पहले अस्तित्व में आई, तब यहां पर हुए चुनाव में कांग्रेस की गंगा देवी सांसद चुनी गईं।

राजेश श्रीवास्तव

उत्तर प्रदेश की सियासत में मोहनलालगंज संसदीय सीट हाई प्रोफाइल सीटों में गिनी जाती है। यहां के सांसद कौशल किशोर केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री हैं। यह सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीटों में से एक सीट है। यह लोकसभा सीट लखनऊ जिले के तहत आती है। यह सीट राजधानी लखनऊ और उन्नाव जिले के बीच पड़ती है। एक समय में इस सीट पर कांग्रेस (INC) का कब्जा हुआ करता था, लेकिन बाद में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने यहां मजबूत पकड़ बना ली और अभी उसी का कब्जा है।

मोहनलालगंज लोकसभा सीट के तहत बख्शी का तालाब, मलिहाबाद, सरोजिनी नगर, मोहनलालगंज और सिधौली पांच विधानसभा सीटें आती हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में सभी पांचों सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. इस रिजर्व संसदीय सीट पर पांच में से तीस विधानसभा सीटें भी अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हैं। साल 2019 के आम चुनाव में मोहनलालगंज लोकसभा सीट पर बीजेपी ने एक बार फिर से कौशल किशोर को ही मैदान में उतारा था। सांसद कौशल किशोर के जवाब में बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने सीएल वर्मा को मैदान में उतारा। यूपी में लोकसभा चुनाव से पहले BSP और SP के बीच चुनावी गठबंधन हो गया और यहां से बसपा ने अपना उम्मीदवार मैदान में उतारा।

चुनावी मुकाबला कांटेदार रहा था और कौशल किशोर को 629,748 वोट मिले जबकि सीएल वर्मा को 539,519 वोट मिले. कांग्रेस की ओर से मैदान में उतरे आर के चौधरी को 60,061 वोट ही मिले। कौशल किशोर को 90,229 मतों के अंतर से जीत मिली। इससे पहले 2014 के चुनाव में मोदी लहर के बीच यह सीट भी बीजेपी के खाते में आ गई। BJP की ओर से मैदान में उतरे कौशल किशोर ने BSP के आरके चौधरी को 1,45,416 मतों के अंतर से हराया था। मोहनलालगंज संसदीय सीट पर ज्यादातर आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। उत्तर प्रदेश की सियासत में मोहनलालगंज लोकसभा सीट की अपनी खासियत है और यह सीट हाई प्रोफाइल सीटों में शुमार की जाती है। सूबे की राजधानी लखनऊ और उन्नाव जिले के बीच में पड़ने वाली मोहनलालगंज सीट पर भारतीय जनता पार्टी के कौशल किशोर का कब्जा है और वह अभी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री हैं। कभी कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाला मोहनलालगंज संसदीय सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
साल 2019 के चुनाव में किसे मिली जीत

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रिजर्व मोहनलालगंज संसदीय सीट पर मुकाबला कांटे का रहा जिसमें कौशल किशोर को 90,229 मतों के अंतर से जीत मिली। चुनाव में मोहनलालगंज सीट पर कुल वोटर्स की संख्या 19,15,170 थी जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 10,31,086 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 8,84,034 थी. इसमें से कुल 12,69,040 (66.8%) वोटर्स ने वोट डाले। चुनाव में नोटा के पक्ष में 10,790 (0.6%) वोट पड़े।

मोहनलालगंज सीट का संसदीय इतिहास

मोहनलालगंज लोकसभा सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यह सीट 1962 के लोकसभा चुनाव में वजूद में आई, तब कांग्रेस की गंगा देवी यहां से सांसद चुनी गईं। इसके बाद वह 1967 और 1971 में भी जीत हासिल कर लगातार तीन बार सांसद बनने में कामयाब रहीं। इस बीच देश में इमरजेंसी लगा दी गई और इसके बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में भारतीय लोकदल के रामलाल कुरील ने कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए शानदार जीत हासिल की और संसद पहुंचे। 1980 के चुनाव में कांग्रेस के कैलाशपति ने जीत हासिल की। उन्होंने वर्तमान सांसद रामलाल कुरील को चुनाव में हराया। वर्ष 1984 में कांग्रेस के प्रत्याशी जगन्नाथ प्रसाद ने अपने पास यह सीट रखी। साल 1989 में जनता दल को जीत मिली।

साल 1991 के चुनाव में देश में राम लहर दिखी और BJP की बड़े स्तर पर एंट्री हुई। भाजपा के छोटे लाल ने तब यहां से जीत हासिल कर बीजेपी का खाता भी खोला। 1996 में बीजेपी की पूर्णिमा वर्मा विजयी रहीं। इसके बाद यहां पर सपा अपनी मजबूत पकड़ बनाती है। 1998 और 1999 के चुनाव में सपा की रीना चौधरी लगातार दो बार विजयी हुईं। इसके बाद 2004 के चुनाव में सपा के जय प्रकाश रावत सांसद चुने गए। 2009 में भी मोहनलालगंज सीट सपा के पास ही रही, तब सुशीला सरोज सांसद बनी थीं।

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2014 के चुनाव में देश में मोदी लहर दिखी और इसका फायदा बीजेपी को मोहनलालगंज सीट पर भी हुआ। BJP के प्रत्याशी कौशल किशोर मैदान में उतरे और बसपा के आर के चौधरी को 1,45,416 मतों के अंतर से हरा दिया। 2019 के चुनाव में भी कौशल किशोर लगातार दूसरी बार चुने जरूर गए लेकिन इस बीच उनकी हार-जीत का अंतर काफी कम हो गया। इस चुनाव में कौशल ने 90,204 मतों के अंतर से जीत हासिल की।

मोहनलालगंज क्षेत्र का जातीय समीकरण

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित मोहनलालगंज संसदीय सीट पर ज्यादातर आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। यहां पर SC की आबादी करीब 35 प्रतिशत है, तो ST की आबादी एक फीसदी से भी कम है। ऐसे में SC वोटर्स ही यहां पर जीत का खाका तय करते हैं। शुरुआती दौर में कांग्रेस की गंगा देवी ने 60 के दशक में लगातार तीन चुनाव जीतकर यहां पर चुनावी जीत की हैट्रिक लगाई थी। लेकिन उसके बाद यहां पर कोई भी सांसद हैट्रिक नहीं लगा सका है। सपा भले ही लगातार चार बार चुनाव जीतने में कामयाब रही थी। BSP तो यहां से अपना खाता तक नहीं खोल सकी है, ऐसे में उस पर भी नजर होगी क्योंकि यह सीट एससी के लिए रिजर्व है और मायावती की पार्टी यहां पर अब तक अपनी पहली जीत से दूर है। क्या इस बार कौशल किशोर अपने खाते में जीत के साथ हैट्रिक लगा पाएंगे या फिर विपक्षी दल आपसी एकजुटता दिखाते हुए राजधानी लखनऊ से सटी सीट पर बीजेपी के जीत पर ब्रेक लगाते हैं।

छलकते जाम, मचलते वोटर और शह की बिसात

कौशल किशोर की सीधी टक्कर इंडिया गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार आरके चौधरी से होने वाली है। वहीं कांग्रेस का इस सीट पर शुरुआत से दबदबा रहने के बाद भी बीते 40 साल से जीत के लिए तरस रही है। इस सीट पर मायावती अपना खाता भी नहीं खोल पाई हैं।
लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों के एलान में अब महज कुछ दिनों का समय ही शेष रह गया है। इससे पहले राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर रही है। इसी क्रम में लखनऊ से सटी मोहनलालगंज सीट से बीजेपी ने केंद्रीय राज्य मंत्री कौशल किशोर पर फिर से भरोसा जताया है। जबकि पूर्व मंत्री व कद्दावर नेता आरके चौधरी इंडिया गठबंधन के संयुक्त कैंडिडेट होंगे। सपा ने आरके चौधरी को उम्मीदवार उतारा है। मोहनलालगंज सीट पर भले ही मौजूदा समय में बीजेपी का कब्जा है लेकिन इस बार कांटे की टक्कर होने की पूरी उम्मीद है। वहीं बीजेपी कौशल किशोर कांग्रेस की बराबर करने के लिए जीत की हैट्रिक लगाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। कौशल किशोर की पत्नी मोहनलालगंज विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक है। कौशल किशोर ने 2014 में मोदी लहर में जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2019 में सपा-बसपा गठबंधन का संयुक्त प्रत्याशी होने के बाद भी बीजेपी सांसद ने ठीक-ठाक मार्जिन के साथ मोहनलालगंज सीट पर कमल खिलाया था। जिसके बाद उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिली थी।

साल 1962 में स्थापित मोहनलालगंज लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इसलिए इस सीट पर करीब-करीब 34 फीसदी अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं। जबकि अनुसूचित जनजाति 0.01 प्रतिशत है। इसके अलावा इस सीट की कुल आबादी 26 लाख 95 हजार से भी ज्यादा है। जिसमें तीन चौथाई ग्रामीण आबादी शामिल है और एक चौथाई शहरी आबादी आती है। यानी 75.19 प्रतिशत ग्रामीण और 24.81 प्रतिशत शहरी आबादी आती है। इस तरह ये वोटर जिस करवट होते हैं, सीट उसी उम्मीदवार की होती है। हालांकि सबसे दिलचस्प बात ये है कि सुरक्षित सीट होने बाद भी बहुजन समाज पार्टी कभी खाता भी नहीं खोल पाई। इस सीट पर मौजूदा समय में बीजेपी का कब्जा है। लेकिन बीजेपी के अलावा सपा और कांग्रेस के उम्मीदवार भी चुनाव जीतकर संसद पहुंच चुके हैं।

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1991 में बीजेपी का खाता खुला,कांग्रेस का रहा है दबदबा

मोहनलालगंज सीट पर अबतक 15 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है। पहली बार 1962 में कांग्रेस उम्मीदवार गंगा देवी ने जीत दर्ज की थी। उन्होंने लगातार तीन बार 1962, 67 और 71 में कांग्रेस के टिकट पर जीत की हैट्रिक मारी थी। इस तरह कांग्रेस कुल 5 बार चुनाव जीत चुकी है। जबकि सपा और बीजेपी ने 4-4 बार अपना परचम लहराया है। बीजेपी ने पहली बार 1991 में इस सीट से जीत दर्ज की थी। बीजेपी के छोटेलाल ने 1991 में चुनाव जीता था। इसके बाद 1996 में पूर्णिमा वर्मा इस सीट से बीजेपी सांसद के रूप में चुनी गई। बीजेपी 1998 में बीजेपी यहां से हार गई और तब पहली बार सपा ने अपना खाता खोला था। इस सीट से एक बार जनता दल और जनता पार्टी के कैंडिडेट चुनाव जीत चुके हैं।

वहीं लखनऊ से सटी मोहनलालगंज सीट पर बीजेपी का खाता 1991 में खुला था। बीजेपी इस सीट से 4 बार चुनाव जीत चुकी है। बीजेपी ने एक बार फिर कौशल किशोर पर भरोसा जताया है। वहीं कौशल किशोर जीत की हैट्रिक लगाकर कांग्रेस उम्मीदवार गीता देवी की बराबरी करने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इस बार का चुनाव 2०19 से भी कांटे का होने जा रहा है। सपा ने पूर्व मंत्री मंत्री व कद्दावर नेता आरके चौधरी को कैंडिडेट घोषित किया है। चौधरी ने 2०19 में कांग्रेस के टिकट पर मोहनलालगंज से चुनाव लड़ा था। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत बहुजन समाज पार्टी से की थी। वो वह बसपा के संस्थापक सदस्य भी रह चुके हैं।

कौशल को बस मोदी के नाम का सहारा

अब भाजपा के कौशल किशोर के सामने हैट्रिक लगाने का मौका आया है। पर, उनके लिए यह उपलब्धि हासिल करना काफी चुनौतीपूर्ण है। राजधानी की विधानसभा सीट सरोजिनीनगर, मलिहाबाद (सु.), बख्शीतालाब, मोहनलालगंज (सु.) और सीतापुर की मिश्रिख (सु.) सीट मिलाकर बनी इस संसदीय सीट के गांवों में चुनावी लड़ाई दो खांचों मोदी के साथ और मोदी के खिलाफ बंटी दिखती है जो इंडी गठबंधन से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे आर.के.चौधरी को ताकत दे रही है। ऐसा नहीं है कि लगभग 4० प्रतिशत दलित आबादी वाली इस सीट पर बसपा के समर्थक नहीं हैं। खूब हैं । शायद ही कोई गांव ऐसा हो जहां दलित आबादी हो और मायावती या बसपा का समर्थक न हो । पर, रमपुरवा के रावत बिरादरी से लेकर कुम्हरावां की बाजार में चाय के साथ चुनावी चर्चा में व्यस्त जाटव बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले बाबादीन तक का दर्द है कि बसपा को वोट देने से उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा।

LOKSABHA VIDISHA: BJP के अभेद किले में ‘मामा’ के सामने ‘दादा’

बहुत कुरेदने पर बोलते हैं, वही पुराना वाला मामला है। भले ही सांसद जी और विधायक जी न दिखें हों लेकिन मोदी जी तो गरीबों के लिए काम कर ही रहे हैं। इनकी नजर में आर.के.चौधरी अच्छे आदमी है लेकिन मायावती को मिला धोखा इन्हें बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर रहा है। भाजपा लगातार सत्ता में है तो चुनाव प्रचार में ठसक अस्वाभाविक नहीं। यह ठसक तब और ज्यादा दिखती है जब वे किसी कस्बाई इलाके में या सामान्य जाति की आबादी के बीच होते हैं। मीसा से गोसाई गंज की तरफ आगे बढ़ने गांव में एक छप्पर के नीचे बैठे राम कुमार, विश्वनाथ, हरबदीन व मिथलेश कुमार कहते हैं कि यहां तो साइकिल दौड़ेगी। 1० साल हो गए सांसद से एक हैंडपंप कहा था वह भी आज तक नहीं लगा। सड़क तो अब बनी है जब चुनाव है।

कभी ठेकेदारी करने वाले बुजुर्ग किशनलाल सांसद कौशल किशोर की काफी आलोचना के बावजूद धीरे से कहते हैं, हम लोग तो वोट न देबे लेकिन दिल्ली महिहा सरकार तो मोदी केर ही बनी। इमा कुछ संशय नाहीं है। मोहनलालगंज विधान सभा क्षेत्र के मीसा चौराहे पर चाय की दुकान पर चुनावी चक्कलस कर रहे निखिल मिश्र, विनय वर्मा, देवेन्द्र सिह व निगोहा में चुनावी चर्चा कर रहे कृष्ण मोहन तिवारी, सुशील रावत, वीरेन्द्र सिह व प्रमोद पाल के पास स्थानीय मुद्दा कम मोदी मुद्दा ज्यादा दिखा। यहां अधिकतर गांव में पहुंचिए तो सांसद के क्षेत्र में न दिखाई देने या सिर्फ कुछ चुनिदा लोगों तक ही संपर्क रखने की शिकायतें आम हैं। मोहनलाल गंज में इन शिकायतों को 2०22 में विधानसभा की मोहनलालगंज सीट से विधायक चुने गए अमरेश कुमार ने और बढ़ाया है। इसकी एक वजह क्षेत्र में यह प्रचार है कि अमरेश कौशल के रिश्तेदार हैं।

लोकसभा चुनाव का रण: पूर्वांचल में मज़बूत दिख रहा महागठबंधन, जीत की जगी आस

मोहनलालगंज सुरक्षित सीट में कुल जनसंख्या 2695769 है। इसमें 75.19 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र और 24.81 प्रतिशत शहरी आबादी है। यहां हुए अब तक के 17 चुनाव में से सात बार कांग्रेस, चार बार सपा, चार बार भाजपा, जनता दल एक बार, जनता पार्टी एक बार जीती। यहां अनसूचित वोटरों की संख्या 38.7% (पासी 21% अनुसूचित जाति 14.5%), यादव 11.1%, कायस्थ 1%, मुस्लिम 14.2%, लोध 5.3%, गड़ेरिया, काछी, कहार 2-2%, कुर्मी 3.1%, ब्राह्मण 8.3% राजपूत 7.3% व 5% अन्य जातियां हैं।

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