कन्नौज लोकसभाः अखिलेश के सामने BJP के ‘मिस्टर भरोसेमंद’, बड़ी चुनौती

समाजवादी पार्टी (SP) के प्रमुख अखिलेश यादव कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। आज यानी गुरुवार दोपहर 12 बजे अखिलेश कन्नौज से नामांकन करेंगे। अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर लिखा कि कन्नौज से BJP की पराजय इतिहास में कन्नौज क्रांति के नाम से जानी जाएगी। कन्नौज-क्रांति होकर रहेगी। सपा ने पहले यहां से तेज प्रताप को टिकट दिया था, लेकिन पार्टी ने अपना मन बदलकर अखिलेश को उम्मीदवार बना दिया। कन्नौज लोकसभा सीट SP का गढ़ रही है। अखिलेश यादव पहली बार साल 2000 में कन्नौज से सांसद बने थे। उपचुनाव में उन्होंने जीत हासिल की थी। उसके बाद वह 2004 और 2009 में भी इसी सीट से सांसद रहे। उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद लोकसभा से इस्तीफा देने के चलते 2012 में कन्नौज सीट पर हुए उपचुनाव में अखिलेश की पत्नी डिपल निर्विरोध चुनी गई थीं।

साल 2019 में सपा की डिम्पल यादव को मिली थी हार

वर्ष 2014 के आम चुनाव में भी डिम्पल ने इसी सीट से जीत दर्ज की थी। हालांकि साल 2019 के चुनाव में वह बीजेपी के सुब्रत पाठक से पराजित हो गई थीं। अखिलेश यादव वर्तमान में करहल विधानसभा सीट से विधायक हैं और उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता विपक्ष हैं। वह 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में करहल सीट से पहली बार विधायक बने थे। अखिलेश तीन बार कन्नौज सीट से सांसद रहे, जबकि एक बार आजमगढ़ से चुने जा चुके हैं। कन्नौज सीट से अखिलेश सपा के लिए जीत की गारंटी रहे हैं। अखिलेश का कॉन्फिडेंस भी देखने लायक है। वह जीत को लेकर आश्वस्त दिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि जनता ने मन बना लिया है कि इंडिया गठबंधन भविष्य बनकर आ रहा है और बीजेपी इस चुनाव में इतिहास बन जाएगी। कन्नौज में लोकसभा चुनाव के चौथे चरण के तहत आगामी 13 मई को मतदान होगा। इस सीट के लिए नामांकन गुरुवार 25 अप्रैल को शुरू होंगे।

कन्नौज में अखिलेश का सामना बीजेपी के सुब्रत पाठक से है। सुब्रत यहां के मौजूदा सांसद हैं। सुब्रत पाठक कन्नौज से ही चुनाव लड़ते आए हैं। साल 2019 के चुनाव में उन्होंने डिम्पल यादव को हराया था। अखिलेश के चुनाव मैदान में आते ही सुब्रत पाठक ने कहा कि वह अखिलेश की सांप्रदायिक राजनीति खत्म कर देंगे। कन्नौज को इतिहास रचने की आदत है और चार जून को कन्नौज नया इतिहास लिखेगा। उन्होंने कहा कि सपा अखिलेश की पार्टी है और उनकी जेब में पड़ी है। जब जिसको चाहे जेब से टिकट निकालकर दे दें और जब चाहे किसी का भी टिकट काट सकते हैं। कन्नौज से अखिलेश के अलावा किसी ने चुनाव लड़ा तो उसकी जमानत जब्त हो जाएगी। चाहे वो सैफई से ही प्रत्याशी क्यों ना हो। अखिलेश का घमंड टूट गया है। सुब्रत आगे कहते हैं कि अगर अखिलेश यादव कन्नौज से चुनाव लड़ेंगे, तो कम से कम एक बराबरी की लड़ाई होगी, क्योंकि हम कन्नौज के जन्मे लोग दूसरी मिट्टी के होते हैं, जब तक लड़ाई बराबरी की नहीं होती तब तक मजा नहीं आता है।

सुब्रत पाठक भारतीय जनता युवा मोर्चा (BJYM) के अध्यक्ष रह चुके हैं। उनका जन्म कन्नौज में ही हुआ। कन्नौज में वह BJP का चेहरा रहे हैं। पार्टी उनपर विश्वास जताती रही है। कन्नौज में वह BJP के मिस्टर भरोसेमंद रहे हैं। 2009 के चुनाव में उन्हें अखिलेश के हाथों हार मिली थी, लेकिन इसके बाद भी 2014 के चुनाव में पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया। इस चुनाव में उन्हें अखिलेश की पत्नी डिम्पल से शिकस्त मिली। 2019 के चुनाव में सुब्रत पाठक ने पलटवार किया और डिम्पल को हराकर संसद पहुंचे। यानी सुब्रत के जरिए ही बीजेपी समाजवादी पार्टी का यह गढ़ भेदने में कामयाब हो पाई थी।

साल 1990 के बाद से कन्नौज सीट पर सपा का ही दबदबा दिखा है। जबकि BJP सिर्फ दो बार ही जीत हासिल कर सकी है। तो BSP का यहां पर अब तक खाता भी नहीं खुला है। ऐसे में यहां पर मुकाबला कड़े होने के आसार हैं। पिछले 2 मुकाबले में हार-जीत की अंतर बेहद कम रहा था। इत्र की खुशबू दुनियाभर में फैलाने वाले कन्नौज जिला उत्तर प्रदेश की सियासत में अहम स्थान रखता है। यह सीट प्रदेश में हाई प्रोफाइल सीटों में गिनी जाती है। यहां से विख्यात समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के अलावा तीन पूर्व मुख्यमंत्री भी यहां से सांसद रह चुके हैं। मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव यहां से सांसद चुने गए थे। कन्नौज जिले में भी राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी के गढ़ में पिछली बार सेंध लगाने वाली BJP यहां पर फिर से कमल खिलाने के मूड में है तो SP अपनी सीट फिर से वापस पाना चाहेगी। कन्नौज संसदीय सीट अभी बीजेपी के पास है।

देश के प्राचीन शहरों में शुमार किया जाने वाले कन्नौज शहर की अपनी पुरातात्विक और सांस्कृतिक विरासत है। यहां का प्राचीन नाम कन्याकुज्जा या महोधी हुआ करता था (वाल्मीकि रामायण, महाभारत और पुराण के अनुसार) बाद में कन्याकुज्ज का नाम बदल कर कन्नौज हो गया और यह आज भी यही नाम प्रचलित है। बताया जाता है कि अमावासु ने एक राज्य की स्थापना की, बाद में कन्याकुज्जा (कन्नौज) इसकी राजधानी बनी। महाभारत काल में यह क्षेत्र बेहद चर्चित रहा। कंम्पिला दक्षिण पंचला की राजधानी थी और यहीं पर द्रौपदी के प्रसिद्ध स्वयंवर हुआ था।

वर्ष 2019 के चुनाव में किसे मिली थी जीत

कन्नौज संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें तीन कन्नौज जिलें में पड़ती हैं तो एक-एक सीट औरैया और कानपुर देहात जिले में पड़ती है। छिबरामऊ, तिर्वा, कन्नौज, बिधूना (औरैया) और रसूलाबाद (कानपुर देहात) यहां की विधानसभा सीटें हैं। साल 2022 में प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में कन्नौज संसदीय सीट पर 4 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था। जबकि एक सीट (बिधूना सीट) सपा के खाते में गई थी।

2019 के संसदीय चुनाव में कन्नौज संसदीय सीट के परिणाम को देखें तो यहां पर बीजेपी के सुब्रत पाठक और सपा की डिपल यादव के बीच कड़ा मुकाबला रहा। 2014 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर सुब्रत पाठक को डिपल यादव के हाथों हार मिली थी। लेकिन इस बार उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया और डिपल को हरा दिया। इस चुनाव में सपा और बसपा के बीच चुनावी समझौता हुआ था और इस वजह से यह सीट सपा के खाते में गई। लेकिन सुब्रत पाठक ने महज 12,353 मतों के अंतर से मुकाबला जीतकर बड़ा उलटफ़ेर कर दिया।

सुब्रत पाठक को चुनाव में 563,087 वोट मिले तो डिपल के खाते में 550,734 वोट आए। यहां पर इन दोनों नेताओं को कुल मिले वोटों का 98 फीसदी से भी अधिक वोट मिले थे। तीसरे स्थान पर नोटा रहा जिसके खाते में 8,165 वोट आए थे। कन्नौज सीट पर तब के चुनाव में कुल 18,27,515 वोटर्स थे, जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 10,03,437 थी जबकि महिला वोटर्स की संख्या 8,23,990 थी। कुल 11,40,496 वोट पड़े।

कन्नौज का संसदीय इतिहास

कन्नौज संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो इस सीट से कई बड़े चेहरे चुनाव मैदान में उतरे और लोकसभा में पहुंचे। कन्नौज सीट पहले फर्रुखाबाद संसदीय का हिस्सा हुआ करती थी। 1967 में यहां पर हुए पहले संसदीय चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर महान समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया विजयी हुए। इस तरह से वह यहां से पहले सांसद बने। 1971 में कांग्रेस के सत्य नारायण मिश्रा को जीत मिली। 1977 में जनता पार्टी के राम प्रकाश त्रिपाठी तो 1980 में जनता पार्टी के ही टिकट पर छोटे सिह यादव सांसद चुने गए। 1984 के चुनाव में शीला दीक्षित ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव में जीत हासिल की। शीला बाद में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं और लगातार 15 साल तक पद पर बनी रहीं। 1989 और 1991 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर छोटे सिह यादव ने जीत हासिल की। वह 3 बार सांसद चुने गए। 1996 के चुनाव में बीजेपी ने यहां पर जीत का खाता खोला और चंद्र भूषण सिह सांसद बने। 1998 में यह सीट सपा के पास चली गई। 1999 के लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिह यादव ने अपनी किस्मत आजमाई और सांसद चुने गए। लेकिन बाद में उन्होंने यह सीट छोड़ दी जिस वजह से उपचुनाव कराया गया। 2000 के उपचुनाव में मुलायम के बेटे अखिलेश यादव विजयी हुए। अखिलेश 2004 और 2009 के चुनाव में भी सपा के टिकट पर सांसद चुने गए। 2012 के उपचुनाव में अखिलेश की पत्नी डिपल यादव ने भी किस्मत आजमाई और वह निर्विरोध चुनी गईं।

वर्ष 2014 में जीतीं, 2019 में हार गईं डिम्पल

साल 2014 के चुनाव में उत्तर भारत में मोदी लहर का असर दिखा, लेकिन कन्नौज सीट इससे बेअसर रहा क्योंकि डिपल यादव ने यहां से जीत हासिल की थी। हालांकि डिपल के लिए जीत हासिल करना आसान नहीं रहा क्योंकि उन्हें बीजेपी के सुब्रत पाठक को हराने के लिए खासा संघर्ष करना पड़ा। वह महज 19,907 मतों के अंतर से चुनाव जीत सकी थीं। 2019 के चुनाव में भी कांटे का संघर्ष रहा और इस बार जीत बीजेपी के खाते में चली गई। डिपल यादव को महज 12,353 मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा।

कन्नौज का जातिगत समीकरण

समाजवादी पार्टी का गढ़ कहे जाने वाले कन्नौज क्षेत्र के जातिगत समीकरण को देखें तो यहां पर यादव और मुस्लिम वोटर्स की संख्या अधिक है। यादव बिरादरी के वोटर्स की संख्या 16 फीसदी है और इतनी ही संख्या मुस्लिम वोटर्स की भी है। ब्राह्मण वोटर्स की संख्या 15 फीसदी के करीब है तो राजपूत की संख्या 11 फीसदी है। 1990 के बाद से कन्नौज सीट पर सपा का ही दबदबा दिखा है। जबकि बीजेपी सिर्फ 2 बार ही जीत हासिल कर सकी है। तो बसपा का यहां पर अब तक खाता भी नहीं खुला है। ऐसे में यहां पर मुकाबला कड़े होने के आसार हैं। पिछले 2 मुकाबले में हार-जीत की अंतर बेहद कम रहा था, इसलिए 2024 के चुनाव में भी कुछ भी हो सकता है। जीत किसी भी पार्टी के खाते में जा सकती है। लेकिन देखना होगा कि बीजेपी और सपा समेत अन्य विपक्षी दल किस तरह की अपनी तैयारी के साथ कन्नौज सीट पर उतरते हैं।

क्या अखिलेश सुब्रत से ले पायेंगे डिम्पल की हार का बदला

लोकसभा के लिए चौथे चरण में नामांकन प्रक्रिया पूरी हो गई। कन्नौज लोक सभा क्षेत्र के लिए दो प्रत्याशियों ने पर्चे वापस लिए हैं। अब 15 प्रत्याशियों के लिए मतदान होगा। इन सभी को चुनाव चिह्न आवंटित कर दिए गए हैं। कन्नौज लोकसभा सीट में पांच विधानसभा है। कन्नौज छिबरामऊ तिर्वा और सदर है जबकि कानपुर देहात की रसूलाबाद व औरैया की बिधूना विधानसभा शामिल है। लोक सभा के लिए चौथे चरण में नामांकन प्रक्रिया पूरी हो गई। कन्नौज लोक सभा क्षेत्र के लिए दो प्रत्याशियों ने पर्चे वापस लिए हैं। अब 15 प्रत्याशियों के लिए मतदान होगा। इन सभी को चुनाव चिह्न आवंटित कर दिए गए हैं। कन्नौज लोकसभा सीट में पांच विधानसभा है। कन्नौज छिबरामऊ, तिर्वा और सदर है, जबकि कानपुर देहात की रसूलाबाद व औरैया की बिधूना विधानसभा शामिल है। 18 से 25 अप्रैल तक हुई नामांकन प्रक्रिया में सपा, भाजपा और बसपा समेत 28 प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किया था।

शुक्रवार को रिटîनग आफिसर शुभ्रान्त कुमार शुक्ल और सामान्य प्रेक्षक संदीप कुमार की उपस्थिति में छह निर्दलीय और पांच दलीय प्रत्याशियों के नामांकन पत्र खारिज किए थे। सोमवार को भाजपा सांसद सुब्रत पाठक की पत्नी नेहा पाठक और पूर्व सांसद राम बक्श सिह ने पर्चा वापस लिया है। पूर्व सांसद के बेटे आलोक वर्मा मैदान में है। जिले में 13 मई 2024 को जनपद में मतदान और चार जून 2024 को मतगणना कार्य संपन्न होगा। कन्नौज लोकसभा सीट से सपा मुखिया अखिलेश यादव, भाजपा से सुब्रत पाठक और BSP से इमरान बिन जफर चुनाव मैदान में है। इसके अलावा अन्य दल और निर्दलीय भी मैदान में है।

इस अवसर पर उप जिला निर्वाचन अधिकारी आशीष कुमार सिह, प्रशिक्षु आइएएस स्मृति मिश्रा, सहायक जिला निर्वाचन अधिकारी विनीत कटियार सहित विभिन्न पार्टी की प्रत्याशी व प्रस्तावक उपस्थित रहे। सपा मुखिया अखिलेश यादव, भाजपा के सुब्रत पाठक और बसपा के इमरान बिन जफर के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होगा। तीनों प्रमुख दल अपनी-अपनी ताकत दिखाने में लगे हुए हैं। इस सीट पर पूरे उत्तर प्रदेश की निगाहे टिकी हुई है।

अखिलेश तीन बार रह चुके सांसद

2000 के उपचुनाव अखिलेश यादव ने चुनाव लड़ा था। उनको यहां जीत मिली। इसके बाद 2004 और 2009 में लगातार जीत दर्ज कर हैट्रिक लगाई। वर्ष 2012 में फिर उपचुनाव हुआ तो अखिलेश की पत्नी डिपल यादव निर्विरोध निर्वाचित हुई थीं। वर्ष 2014 में भी डिपल ने जीत दर्ज की, लेकिन 2019 में भाजपा के सुब्रत पाठक ने डिपल को चुनाव हराकर इस सीट पर कमल खिलाया।

2019 में डिम्पल को मिली हार

वर्ष 2019 में सपा प्रत्याशी डिपल यादव को भाजपा के सुब्रत पाठक ने करीब 12 हजार मतों से पराजित किया था। इस बार सपा मुखिया स्वयं मैदान में हैं। इससे कन्नौज लोकसभा का चुनाव दिलचस्प हो गया है। अब देखना है कि इस सीट पर इस बार क्या सुब्रत पाठक का कब्जा बरकरार रहता है या फिर सपा मुखिया अपने पुराने गढ़ को सुरक्षित रख पाते हैं।

अखिलेश के प्रस्तावक पूर्व विधायक का बेटा मैदान में

पूर्व विधायक कलियान सिह दोहरे सपा प्रमुख अखिलेश यादव के प्रस्तावक है। पूर्व विधायक के बेटे भानु प्रताप सिह निर्दलीय मैदान में है। उनको चुनाव चिह्न आटो रिक्शा दिया गया है।

जातीय समीकरण बिगड़ता देख दिग्गजों की उड़ी नींद

चुनावी मैदान में आकर अन्य दलों के प्रत्याशी भी दिग्गजों को हराने का दम रखते हैं। इस बार लोकसभा चुनाव में छह दलों के प्रत्याशियों ने सपा भाजपा और बसपा उम्मीदवारों के सामने ताल ठोंक दी है। इससे अब जातीय आधार पर यह यह छह उम्मीदवार दिग्गजों पर भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं। इससे अब गठजोड़ कर इन्हें पाले में लाने की कवायद तेज हो गई। चुनावी मैदान में आकर अन्य दलों के प्रत्याशी भी दिग्गजों को हराने का दम रखते हैं। इस बार लोकसभा चुनाव में छह दलों के प्रत्याशियों ने सपा, भाजपा और बसपा उम्मीदवारों के सामने ताल ठोंक दी है। इससे अब जातीय आधार पर यह यह छह उम्मीदवार दिग्गजों पर भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं। इससे अब गठजोड़ कर इन्हें पाले में लाने की कवायद तेज हो गई।

लोकसभा चुनाव 2024 में सपा मुखिया अखिलेश यादव, भाजपा से सुब्रत पाठक और बसपा से इमरान बिन जफर मैदान में हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी से आलोक वर्मा, भारतीय कृषक दल से प्रमोद यादव, भारतीय किसान परिवर्तन पार्टी से शैलेंद्र कुमार, भारतीय शक्ति चेतना पार्टी से सुनील कुमार, आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक से सुभाष दोहरे और राष्ट्रीय क्रांति पार्टी से ललित कुमारी ने भी मैदान में हैं।

कयास लगाई जा रही थी कि इनमें से कुछ नाम वापस ले सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह प्रत्याशी पार्टी के कैडर वोट के अलावा खुद के बल पर भी खासे वोट पाएंगे। राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी से उम्मीदवार आलोक वर्मा पूर्व सांसद राम बक्स वर्मा के बेटे हैं। लोधी वोट पर राम बक्स वर्मा की अच्छी पकड़ मानी जाती है। इसके अलावा भारतीय कृषक दल से प्रमोद यादव भी लंबे समय से किसानों के बीच जा रहे हैं। यादव समाज में भी प्रभावशाली हैं। इसके अलावा सुभाष दोहरे भी करीब 15 साल से राजनीति में सक्रिय हैं। ऐसे में अब सपा, भाजपा और बसपा प्रत्याशी इन उम्मीदवारों के प्रभाव और जातीय आंकड़ों को लेकर विचलित हैं। तीनों उम्मीदवार अब इन्हें अपने-अपने पक्ष में लाने की रणनीति में गठजोड़ कर रहे हैं।

आधी आबादी से इकलौती दावेदारी

कन्नौज लोकसभा में 1967 से शुरू हुए चुनाव में पहली बार 1984 में महिला प्रत्याशी शीला दीक्षित ने कांग्रेस से जीत हासिल की थी। इसके बाद वर्ष 2012 में हुए उपचुनाव में महिला प्रत्याशी डिपल यादव निर्विरोध सांसद चुनी गई। इसके बाद 2014 में भी डिपल यादव ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 2019 में डिपल यादव को हार का सामना करना पड़ा। लोकसभा सीट पर कुल 16 बार हुए चुनाव में 11 महिला प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा। इस बार 2024 लोकसभा चुनाव में आधी आबादी से सिर्फ ललित कुमार राष्ट्रीय क्रांति पार्टी से मैदान में हैं।

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