आखिर हरियाणा में क्यों कारगर है राम रहीम का सियासी पै‘रोल’

  • जपनामः किसी भी पार्टी के पक्ष में बदल सकता है चुनावी माहौल
  • आप’ की एंट्री से कांग्रेस, भाजपा के साथ-साथ जजपा भी गमगीन

रेप का दोषी गुरमीत राम रहीम 40 दिन की पैरोल पर जेल से बाहर आया था। वह ऑनलाइन सत्संग कर रहा था। हनुमानगढ़ जिले के पीलीबंगा में सत्संग में बीजेपी और कांग्रेस के नेता भी पहुंचे थे। राम रहीम के आगे ये सियासतदार ऑनलाइन नतमस्तक हुए। हालांकि इसमें कांग्रेस नेता ने सजा के मामले में कहा कि फैसला भगवान करेगा। कोर्ट भगवान से ऊपर तो हो नहीं सकता। लेकिन, अदालत के फैसले के बाद हरियाणा में चुनावी माहौल में डेरा के नाम पर पगने वाली सियासी चाशनी के कढ़ाहे के आसपास मक्खियों की तरह नेता भी भिनभिनाने लगे हैं। आखिर ऐन चुनाव के समय गुरमीत राम रहीम को पैरोल क्यों मिला?


नया लुक ब्यूरो


लखनऊ। जेल से बाहर आते ही राम रहीम सत्संग के नाम पर सियासत का तडक़ा यूं ही नहीं लगा रहा था। दरअसल, हरियाणा में निकाय चुनाव के सेमीफाइनल में जो नतीजे सामने आए उसने सभी दलों की माथे की शिकन ला दी है। इन नतीजों में उन्हें हार का डर सता रहा है तो अपना गढ़ खिसकने का खौफ भी। न भाजपा—जजपा गठबंधन चैन और सुकून वाली स्थिति में है और न ही कांग्रेस के लिए उम्मीद जगती नजर आई। निकाय चुनाव के जरिए किसान बाहुल्य हरियाणा राज्य में झाड़ू फेरने की जुगत में लगे केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का दामन सियासी खुशियों से भरा।

किसान आंदोलन की नाराजगी का असर सबसे ज्यादा असर पंजाब के बाद हरियाणा में लगाया जा रहा था। शायद यही वजह थी कि केजरीवाल एंड पार्टी ने पंजाब के बाद यहां भी झाड़ू की सफाई की उम्मीद सबसे अधिक लगा रखी थी। ऐसा हुआ नहीं, जेठ की तपिश के बीच सामने आए निकाय चुनावी नतीजों ने भी किसी को झुलसाया तो किसी को अपनी आंच का अहसास बखूबी कराया।

हरियाणा नगर निकाय चुनाव में कई दिग्गजों के गढ़ टूट गए। प्रदेश के कुल 43 विधायकों के विधानसभा क्षेत्र की नगर परिषद व नगर पालिकाओं के चुनाव में करीब 25 विधायकों के गढ़ टूट गए और बड़ा उलटफेर हुआ। सबसे चौंकाने वाला उलटफेर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल के चुनावी जिले करनाल में दिखा था, जहां पर चार नगर पालिकाओं में से केवल एक पर ही भाजपा जीत पाई। दो पर निर्दलीय और एक पर कांग्रेस को कामयाबी मिली थी। वहीं किसानों की नाराजगी के बावजूद खट्टर सरकार का पाला न छोडऩे वाले डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के गढ़ उचाना में पार्टी उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहा। जजपा चार नगर परिषद में से एक नूंह नगर परिषद ही जीत सकी, जबकि चौटाला अपने गृह जिले के तीन निकायों में एक पर भी गठबंधन को जीत नहीं दिला सके।

डबवाली नगर परिषद में जजपा उम्मीवार तीसरे स्थान पर रहा। टोहाना नगर परिषद में जजपा उम्मीदवार हार गया। इस विधानसभा क्षेत्र से जजपा के देवेंद्र बबली पंचायत मंत्री हैं। नरवाना में जजपा विधायक राम निवास के एरिया में निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीत गया। जजपा उम्मीदवार 6वें स्थान पर रहा। और तो और हरियाणा के बिजली मंत्री रणजीत सिंह के कट्टर समर्थक दीपक गाबा को जजपा-भाजपा गठबंधन का समर्थन प्राप्त था। खुद रणजीत सिंह ने शहर में तीन दिन कई जनसभाएं की, परंतु वह अपने समर्थक को जीता नहीं पाए। जजपा के चार विधायकों के गढ़ में निर्दलीय चुनाव जीत गए। इसी प्रकार महम में निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू के क्षेत्र में भाजपा- जजपा समर्थित उम्मीदवार जीत गया। कैथल राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला का गृह जिला है, वहां पर भाजपा उम्मीदवार जीत गया।

ऐसी बात नहीं कि भाजपा और जजपा को ही झटके लगे इनेलो के लिए भी ये कहीं खुशी कहीं गम वाले रहे। ऐलनाबाद उप चुनाव में अभय चौटाला ने दोबारा जीत हासिल की। नगर पालिका चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला रहा और कांग्रेसी ने जीत दर्ज की, परंतु इनेलो तीसरे स्थान पर रहा। पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद हरियाणा में पार्टी बड़े जोर-शोर से चुनाव प्रचार में उतरी थी। केवल आप ही थी, जिसके उम्मीदवारों के समर्थन में कुरुक्षेत्र में आम आदमी पार्टी ने रैली की थी। आप ने 48 नगर निकायों के चुनाव सिंबल पर लड़े थे, परंतु एक ही नगर पालिका की सीट जीत सकी।

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बात कांग्रेस की करें तो हरियाणा में इसके 31 विधायक हैं और जजपा की भाजपा के साथ जाने के साथ ही हरियाणा में सरकार बनाने का उसका सपना टूटा था। निकाय चुनाव में कांग्रेस के 15 विधायकों के क्षेत्रों में से दो के ही गढ़ बच सके। बाकी 13 विधायकों के गढ़ में भाजपा और निर्दलीय उम्मीदवार जीते। भाजपा के छह विधायकों के गढ़ में निर्दलीय और कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार जीत गए। निकाय चुनाव के बरअक्श हरियाणा में विस चुनाव की बिसात भी बिछनी थी। हालांकि सूबे के सबसे बड़े सियासी संग्राम के लिए 2024 तक का इंतजार है। लेकिन निकाय चुनाव को सेमीफाइनल मान 2024 में विजेता बनने की तैयारियों का आंकलन यहीं से शुरू होना तय था। नतीजे तो आ गए, लेकिन यह सभी दलों को उलझाव में डालने वाले ही रहे। यानि किसानों की नाराजगी, प्रदेश में डबल इंजन की सरकार की कवायदें और पक्ष व विपक्ष की लड़ाई में छींका टूटने की उम्मीद लगाए बैठे सियासतदार ठगे से रह गए। ऐसे में सियासत में उन्हीं पुराने टोटकों के जरिए चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिशें परवान चढऩे लगी हैं।

आदमपुर विधानसभा उपचुनाव के दौरान डेरा राम रहीम की जेल से पैरोल पर रिहा होने के सीधा हरियाणा में एंट्री ने सियासी डेरों के लिए भी उम्मीद जगा दी। बाबा के सत्संग लगे और सियासतदार सत्संग की कालीन में सीधे प्रदेश की राजनीति में कामयाबी के लिए रेड कारपेट बिछने का अहसास करने लगे। राजस्थान हो या फिर पश्चिमी यूपी का जाट बाहुल्य क्षेत्र बागपत में हुए सत्संग में सियासी नतमस्तक होने में किसी भी नेताओं ने कमी नहीं छोड़ी। राजस्थान में हनुमानगढ़ जिले के पीलीबंगा में कई नेता भी आशीर्वाद लेने पहुंच गए। इसमें बीजेपी विधायक धर्मेंद्र मोची, कैलाश मेघवाल, पार्षद, सरपंच और कार्यकर्ता शामिल थे।

पांच वर्षों से जेल में हैं बंद

डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को 2017 में CBI  कोर्ट ने यौन शोषण के मामले में 20 वर्ष की सजा सुनाई थी। उस वक्त से वह जेल में है। हालांकि, जेल से भी उनके दबदबे की खबरें आती रही हैं। शुरू में जब उसे जेल हुई तब राम रहीम और उनके समर्थकों के बीजेपी से अनबन की खबरें आईं, लेकिन बाद में पार्टी नेताओं ने कई मौकों पर उनका समर्थन भी किया और कई बार वह जेल से भी निकले।

बदलते रहे हैं स्टैंड

चुनाव में किसे वोट करना है इसको लेकर राम रहीम स्टैंड बदलते रहे हैं। उनका राजनीतिक विंग चुनाव से पहले तमाम इलाकों में लोगों से फीडबैक लेता है। फिर इसकी जानकारी राम रहीम को दी जाती है। चुनाव से ठीक पहले इसी विंग के जरिए लोगों तक सूचना पहुंचाई जाती है कि किसे वोट करना है। साल 2017 पंजाब विधानसभा चुनाव में राम रहीम की ओर से कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान किया गया था। पार्टी जीती भी। वर्ष 2014 आम चुनाव में बीजेपी को समर्थन दिया गया था। उस वक्त नरेंद्र मोदी की तारीफ भी की थी। साल 2007 में पंजाब चुनाव में कांग्रेस को समर्थन दिया था। वर्ष 2012 में राम रहीम चुनाव से दूर थे। उन्हें पक्ष में करने के लिए राजनीतिक दल पूरी ताकत लगाते रहते हैं।

सियासत पर प्रभाव

राम रहीम अपने समर्थकों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। उनके ज्यादातर अनुयायी गरीब दलित हैं, जो उन्हें सम्मान में पिताजी बुलाते हैं। उनके लिए राम रहीम की कोई बात सीधा आदेश की तरह होती है, जिसे वे पूरी तन्मयता के साथ मानते हैं। हरियाणा और पंजाब में इनके डेरों की तादाद लगभग 20 हजार है। पूरे देश में लगभग छह करोड़ अनुयायी हैं। ज्यादातर का जुड़ाव हरियाणा और पंजाब से है। अनुयायी न सिर्फ राम रहीम के सत्संग और दूसरे धार्मिक आयोजन में भाग लेते हैं, बल्कि चुनाव में किस राजनीतिक दल का समर्थन करना है इसके लिए भी उनके निर्देश का पालन करते रहे हैं। पंजाब के मालवा और हरियाणा के 40-50 विधानसभा सीटों पर उनके अनुयायी सीधे तौर पर चुनाव को प्रभावित करते हैं।

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कब-कब मिली पैरोल?

राम रहीम जब जेल गए थे तब हरियाणा में हिंसा हुई थी। उसके कुछ महीने बाद तक वे शांत रहे, लेकिन बाद में अलग-अलग बहानों से वह जेल से निकलते रहे। अपनी मां से मिलने वह कई बार अस्पताल गए। इस साल फरवरी में उन्हें 20 दिनों की पैरोल मिली। माना गया कि तब पंजाब चुनाव के कारण उन्हें पैरोल दी गई। जून महीने में राम रहीम को 30 दिनों की पैरोल मिली थी। अब 40 दिन की पैरोल मिली है। हर बार राज्य सरकार की सहमति से उन्हें जेल से बाहर आने की अनुमति मिली।

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