राजधानी का एक अनूठा केंद्र, जहां आकर शरण पा जाते हैं विकलांग

हाथ-पैर से लाचार 58 विकलांग हैं मदर टेरेसा के करूणालय में
विकलांगों के लिए कुछ करने से आत्मसंतोष मिलता हैः डॉ रवि
अंत्येष्टि स्थल या विकलांगों के बीच जाने से ही आत्मज्ञान फूटता हैः मोहिता
मदर टेरेसा की संस्था करूणालय मे विकलांगों के दर्शन मात्र से ही खुल जाती हैं आंखें

विजय श्रीवास्तव

लखनऊ। भारत की राजनीति अब जातीय आधार पर होने लगी है। कोई पार्टी महिलाओं की हितैषी तो कोई दलितों का हितचिंतक। कोई पिछड़ों का हिमायती तो कोई जनजातियों का शुभचिंतक। लेकिन इन जातियों के बीच एक नई जातियां भी राजनीति का शिकार हो रही हैं, वो हैं विकलांग।

कोई भी देश में विकलांगों के बारे में नहीं सोचता। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में 11 करोड़ से अधिक विकलांग हैं। कइयों को राज्य सरकार या केंद्र सरकार से सरकारी सहायता मिलती है, बहुतो को नहीं, क्योंकि वो पंजीकृत नहीं हैं। लेकिन किसी ने ये नहीं सोचा कि दिव्यांगों का वोट तो विकलांग नहीं होता है। भारत में विकलांग व्यक्ति को आम आदमी की तरह जीवन जीने का कोई हक नहीं मिलता। न किसी से प्रेम कर सकता, और है न ही कोई उसके प्रेम को समझता है। अगर शादी हो तो किसी विकलांग लड़की से ही हो?

ये कहाँ का नियम है? हमारे संविधान में अगर कोई किसी को जातिसूचक शब्द कहता है तो उसे सजा तक हो सकती है पर कोई भी विकलांग को लंगड़ा, लूला, अंधा, बहरा आदि से संबोधित करता है तो उसे कुछ नहीं होता। लेकिन आप जानकर अचम्भित हो जाएंगे कि राजधानी लखनऊ में एक ऐसी संस्था है, जिसने करीब 58 दिव्यांगों को रैन-बसेरा दे रखा है। वो संस्था कोई और नहीं, बल्कि मदर टेरेसा का करूणालय है।

दुनिया भर मे फैले मां मदर टेरेसा की विकलांगों हेतु संस्थाओं मे लखनऊ के मोहनलालगंज की करूणालय संस्था में इस 58 विकलांग रह रहे हैं। करूणालय के व्यवस्था प्रभारी प्रफुल्ल ने बताया कि वैसे तो पूरी दुनिया में मदर टेरेसा की यह संस्था (करुणालय) फैली हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की संस्था अहम है। यहां के लोगों की पूरी व्यवस्था उसी तरह होती है, जैसी मदर टेरेसा किया करती थीं।

उन्होंने बताया कि करुणालय का कलकत्ता में मुख्य कमांड कार्यालय है। यहीं से समूचे हिन्दुस्तान में पुरूषों के लिए करीब 50 विकलांग करुणालय व महिलाओं के लिए हजारों करुणालय संचालित हो रहे हैं। संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट (SGPGI) के करीब 10 किमी प्रयागराज रोड पर स्थित इस करुणालय के सदस्य बड़ी शान से अपना जीवन गुजर-बसर कर रहे हैं। यह संस्था मोहनलालगंज थाने से करीब एक किमी की दूरी है, जिससे यहां की सुरक्षा व्यवस्था भी चाक-चौबंद रहती है।
दिव्यांगों के प्रति दिल में खास जगह रखने वाले डॉ. रवि सपत्नीक (डॉ. अंशू) अपनी मां की पुण्यतिथि (26 मई) पिछले माह यहां पहुंचे थे। उन्होंने अपनी मां की याद में यहां रह रहे दिव्यांगों को न केवल भोजन, फल दिए, बल्कि वहां वस्त्र से लेकर जरूरत के ढेर सारे सामान मुहैया कराये। साथ ही उनके स्वास्थ्य का निरीक्षण भी किया। उक्त अवसर पर उनके साथ पिता वी. श्रीवास्तव, आंटी मोहिता और परिवारीजन विजय सिंह, प्रफुल्ल, मनोज सहित पचासों विकलांग व सेवादार उपस्थित रहे।

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विकलांगों के सेहत की खबर पूछने पर उन्होंने अपना वाकया बताया। वो कहते हैं कि अगर किसी परेशान व्यक्ति को देखकर आपका भी मन द्रवित होता है तो इनके लिए भी कुछ करिए। ये ऐसे लाचार हैं जो अपने हाथ-पैर से कुछ नही कर पाते हैं। ईश्वर ने उन्हें किस बात की सजा दी है, ये तो वो ही जानें। पर जो लोग गरीब, मजबूर, किस्मत के मारे लोगों को देखते ही आपा खो देते हैं, उन्हें कभी-कभी अन्त्येष्टि स्थल के अलावा इन विकलांगों के बीच भी जाने का समय निकालना चाहिए। अपनी गाढ़ी कमाई का कुछ अंश इनकी सेवा में लगाना चाहिए। ऐसा करने से जीवन मे जाने-अनजाने हुई गलतियों पर जहां पश्चाताप करने का मन करता है।

वहीं आगे से कोई जानबूझकर बड़ी गलती न हो, खुद का मन सजग रहता है। वो बताते हैं कि बीते छह बरसों से अपनी मां के याद में वो 26 मई को विकलांग सेवा दिवस मनाते हैं। बताते चलें कि डॉ. रवि राजधानी लखनऊ से संचालिए एक प्रसिद्ध अस्पताल आशीर्वाद हास्पिटल के संचालक हैं। उनकी पत्नी डॉ. अंशू भी पूरे मनोयोग से मरीजों की सेवा करती हैं। भोजन, फल और मिष्ठान वितरण के बाद भावुक मन से डॉ. रवि बताते हैं कि सामाजिक संबंधों की कमी के कारण शारीरिक रूप से दिव्यांग व्यक्ति तनाव का शिकार होता है।

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से व्यक्ति को कई स्थितियों में अनिश्चितता और असुरक्षा का सामना करना पड़ता है।

डरावने हैं भारत में विकलांगता के आंकड़ें
साल 2011 की जनगणना के अनुसार देश में दिव्यांग लोगों की संख्या 2.68 करोड़ यानी करीब 2.2 फीसदी के करीब है। भारत में महिलाओं की तुलना में पुरुषों का एक उच्च अनुपात विकलांग था, और शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में विकलांगता अधिक प्रचलित थी। सहायता के बिना चलने-फिरने में असमर्थता सबसे आम विकलांगता थी।
दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के अंतर्गत दंड
मध्यप्रदेश के सतना निवासी अंकित कुमार साकेत अपने एक लेख में लिखते हैं-
• अधिनियम दिव्यांग व्यक्तियों के खिलाफ किए गए अपराधों और नए कानून के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए दंड का प्रावधान करता है।
• कोई भी व्यक्ति जो अधिनियम के प्रावधानों, या इसके तहत बनाए गए किसी नियम या विनियम का उल्लंघन करता है, को छह महीने तक के कारावास और/या 10,000 रुपये के जुर्माने, या दोनों के साथ दंडित किया जाएगा। किसी भी बाद के उल्लंघन के लिए, दो वर्ष तक की कैद और/या 50,000 रुपये से पांच लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
• जो कोई भी जानबूझकर किसी दिव्यांग व्यक्ति का अपमान करता है या डराता है, या विकलांग महिला या बच्चे का यौन शोषण करता है, उसे छह महीने से पांच वर्ष के कारावास और जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
• दिव्यांग व्यक्ति के अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों को संभालने के लिए प्रत्येक जिले में विशेष न्यायालयों को नामित किया जाएगा।
यहां की जा सकती है मदद
उन्होंने कहा कि जो लोग अपने पूर्वजों आदि के नाम किसी भी रूप मे जैसे वस्त्र फल मिठाई खाना आदि व नगदी देना चाहते हैं, यहां आकर दे सकते हैं। लेकिन जो लोग दूर-दराज के हैं, वे नगद राशि हमारे बैंक खाता नाम – missonaries of charity और खाता संख्या 4512967707 व आईएफएस कोड KkBk0005198 शाखा अतरौली- मोहनलालगंज में भेज सकते हैं। संस्था के प्रभारी से मो. 7970713771 व उनके असिस्टेंट मनोज से मो. 8910501108 पर सम्पर्क किया जा सकता है।

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