प्रभु राम ने किया था दंडकारण्य को भयमुक्त

  • प्रमाण: वाल्मिकी रामायण, रामचरित मानस, बंगला कृतिवासी रामायण और कालीदास की रघुवंश में दंडकारण्य का वर्णन

हेमंत कश्यप

जगदलपुर। बस्तर कभी महाकांतार, भ्रमरकोट के नाम से चर्चित रहा। यह भू भाग त्रेता युग में दंडकारण्य कहलाता था और यहीं प्रभु राम ने खर- दूषण, ताड़का, सुबाहु, मारीच और विराध जैसे राक्षसों को मार विश्वामित्र जैसे ऋषि – मुनियों के साथ जन सामान्य को भी भयमुक्त किया था इसलिए वानरों अर्थात वन में रहने वाले नरों ने उनकी सहायता की थी। उपरोक्त बातों का उल्लेख वाल्मीकि रामायण, रामचरित मानस के अलावा बंगला कृतिवासी रामायण तथा महाकवि कालीदास की रघुवंश में किया गया है। श्रीराम लगभग दस वर्ष दण्डकारण्य में व्यतीत किये थे और यहीं से माता सीता का हरण हुआ था। इतिहासकार बताते हैं कि नासिक में गोदावरी के मुहाने से उत्कल प्रांत तक का समूचा भू- भाग दण्डकारण्य कहलाता था। जिसके एक तरफ़ गोदावरी तो दूसरी तरफ महानदी का प्रवाह है।

वाल्मीकी रामायण में दंडकारण्य

वाल्मीकी रामायण का अरण्य काण्ड भगवान राम के वनवास काल में दण्डकारण्य में हुई घटनाओं का वर्णन करता है। दण्डकारण्य का प्रथम उल्लेख अयोध्या काण्ड के नवें सर्ग में हुआ है। उल्लेखित है कि दण्डकारण्य के बैजयन्त नगर में शम्बरासुर नामक असूर रहता था। जिसने इन्द्र से युद्ध छेड़ दिया था। राजा दशरथ ने देवताओं की सहायता की थी। उस समय दशरथ ने कैकई को दो वर का आश्वासन दिया था। जिसके चलते ही कैकेयी ने राम के लिए चौदह वर्षों का वनवास और भरत के लिए युवराज पद माँगा था।

श्रीराम के वनवास के सम्बन्ध में कैकई कहती है-

यथा-यो दूसरो वरो देव दत्तः प्रीतेन मे त्वया ।

तदा देवासुरे युद्धे तस्य कलोऽयमागतः ।

नवपञ्च वर्षाणि दण्डकारण्यमाश्रितः ।

चीरादिंद्रो धीरो रामो भवतु तापसः।

भरतो भजतामद्य यौवराज्यमकण्टकम् ॥

अयोध्याकांड के ही उन्नीसवें सर्ग में श्रीराम कैकेयी से कहते हैं-

दण्डकारण्यमेशोऽहं गच्छम्येव हि सत्वरः।

अविचार्य पितुर्वाक्यं समाकविं चतुर्दशः।।

वाल्मीकि रामायण के अरण्य काण्ड के 11 वें सर्ग से लेकर 75 वें सर्ग तक दण्डकारण्य का वर्णन है।

रामचरित मानस में दंडकारण्य

गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस में भी दण्डकारण्य का वर्णन आया है। अरण्यकाण्ड में अगस्त्य ऋषि श्रीराम से कहते हैं। प्रभु परम आनंद ठाऊँ। पावन पंचवटी तेहि नाऊँ ॥ दंडक वन पुनीत प्रभु करहू। उग्रताप मुनिवर कर हरहू ॥
इसके बाद लंकाकाण्ड में दण्डकारण्य का वर्णन है। रावण का वध करने के उपरान्त जब श्रीराम पुष्पक विमान पर सवार हो अयोध्या लौट रहे थे। तब तुलसीदास जी कहते हैं तुरत विमान वहां चल आवा। दंडकवन जहँ परम सुहावा ॥

कृतिवास रामायण में दंडकारण्य

कृतिवास ओझा द्वारा बंगला भाषा में रचित कृत्तिवासी रामायण में भी दण्डकारण्य का वर्णन है। अत्रि मुनि श्रीराम से कहते हैं-
,आशीर्वाद करितेन अत्री महामुनि । करिलेन उपदेश उपयुक्त वाणी ॥ सुन राम, राक्षस प्रधान एह देश । सदा उपद्रव करे देय बहु क्लेश ॥ अग्रेते दंडकारण्य अति रम्य स्थान । तथा गिया रघुवीर कर अवस्थान।।

कालीदास के रघुवंश में भी

महाकवि कालिदास रचित ‘रघुवंश’ के द्वादश सर्ग के कुछ श्लोकों में दण्डकारण्य को इंगित किया गया है। श्रीराम पुष्पक विमान से सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या की ओर वापस होते हैं। तब दण्डकारण्य तथा पंपासर का भी स्पष्ट वर्णन रघुवंश के त्रयोदश सर्ग के 22 वें श्लोक से लेकर 35 वें श्लोक तक मिलता है।

दंडकारण्य बगैर रामकथा अधूरी

बस्तर के जाने माने शिक्षाविद् डा. बीएल झा बताते हैं कि कोई भी रामकथा दण्डकारण्य के वर्णन के बिना अधूरी होगी, चूंकि यहीं श्रीराम, लक्ष्मण और सीता ने अपने वनवास का अधिकांश समय व्यतीत किया था।

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