

दुष्कर्म इतने नही करने चाहिए कि
मौत आने पर लोगों को त्यौहार के
जैसा एहसास भी लगने लग जाये,
शोक नहीं, ये दुनिया ख़ुशी मनाये।
कोई दुर्दांत डाकू बन लूटता है,
माफिया बन जग को सताता है,
झूठा सन्त बन दुष्कर्म करता है,
पैसे से ग़रीब का खून चूसता है।
नेता बन जनता को धोखा देता है,
ताक़त की हवस में पीड़ा देता है,
माफिया बन कर कलह मचाता है,
आतंकवादी बन आतंक फैलाता है।
रावण, कंस से अतीक, अशरफ़,
सबका हश्र लोमहर्षक ही होता है,
पूरा कुनबा ही नष्ट हो जाता है,
पानी देने वाला कोई नहीं होता है।
आदित्य अति का भला न बोलना,
और वैसे ही अति की भली न चूप,
ना अच्छा होता, अति का बरसना,
और ना ही अति की भली है धूप ।