लेखक सुरेश चंद्र शुक्ल ‘शरद आलोक’
समीक्षक- डॉ ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी
कहानीकार शरद आलोक ने शादीशुदा होने के बावजूद, पराई स्त्री पर डोरे डालने की हसरत रखने वाले राहुल नाम के युवक के सिर से आशिकी का भूत उतारने की घटना की इस लघु कथा में चर्चा की है। कथानक मे राहुल और आर्यन दो मित्र हैं और दोनों शादीशुदा है। फिर भी राहूल दिलफेंक तबीयत का इंसान है और आर्यन से किसी लड़की से मिलवाने की बात बारम्बार यानी हर क्षण करता रहता है।
आर्यन उसकी पत्नी और राहुल की पत्नी मिल कर योजना बनाते है। राहुल की पत्नी को अपने ड्राईग रूम में बिठाकर आर्यन राहुल से अपने घर पर मिलवाने की योजना बनाता है। जब राहुल उसके घर पहुंचता है, तो आर्यंन बताता है लड़की मेरे ड्राईंग रूम में है जाकर मिल लो। भीतर दरवाजे की तरफ पीठकर एक महिला बैठी होती है। राहुल जब भीतर जाता है तो बिना देखे प्रेमालाप शुरु कर देता है। लड़की जब मुड़ती है तो राहुल के होश फाख्ता हो जाते हैं, यह देखकर कि यह तो उसी की पत्नी ममता है। फिर ममता सैंडल निकालकर उसकी पिटाई शुरु कर देती है, तब तक बीच-बचाव करने आर्यन आ जाता है। उसे भी एकाध सैंडिल लग जाता है। इस तरह राहुल के प्रेम का भूत जल्दी ही उतर जाता है।
कहानीकार ने दिल-फेंक आशिकों पर करारा व्यंग्य किया है जो शादी के बावजूद अपनी हरकतो से बाज नहीं आते। लघुकथा में सीधी-सादी सरल भाषा का प्रयोग है। ममता का यह कथन “तुम्हारा मन तो न जान सकी पर तुम्हारी जान तो लेही सकती हूं” राहुल को झटका लगाने के लिए पर्याप्त था। अंत मे ‘गुस्सा छोड़ दो भाभी’ कहते हुए आर्यन विषयांतर करते हुए चाय पीने की पहल करता है। शीर्षक कथानक के अनुरुप है। कहानी ऐसे आशिक मिजाज नवयुवाओ के लिए सबक है।