भारतीय कम्पनियां बना रहीं मौत का ‘सिरप’

आशीष दूबे


नई दिल्ली। गाम्बिया में हाल ही में 69 बच्चों की मौत के बाद भारतीय दवा कम्पनियां फिर से सुर्खियों में आ गई हैं। खबरें आईं कि मरने वाले बच्चों को भारत में निर्मित कफ सिरप दी गई थी। इसे पीने के बाद बच्चों की हालत बिगड़ी और उनकी मौत हो गई। इस सिरप का निर्माण भारतीय कम्पनी मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड ने किया था और चार अलग-अलग ब्रांडों के तहत इसे अफ्रीकी देश में निर्यात किया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा कि मेडन फार्मास्युटिकल्स द्वारा बनाई गई चार दवाओं में डाइथाइलीन ग्लाइकोल और इथाइलीन ग्लाइकोल की मात्रा सुरक्षित मानकों से ज्यादा है। ये उत्पाद दूषित थे और इनके इस्तेमाल से पेट दर्द, उल्टीदस्त, पेशाब में परेशानी, सिरदर्द, मानसिक स्थिति में बदलाव जैसे वे लक्षण दिखने शुरू हुए जिनसे मौत हो सकती है। वहीं मेडन फार्मास्युटिकल्स की ओर से जवाब आया कि वह उत्पादन की प्रक्रिया में स्वास्थ्य अधिकारियों के प्रोटोकॉल का सही तरीके से पालन कर रहा था और इस घटना से काफी दुखी है। गाम्बिया की घटना को लेकर केंद्र सरकार ने पूरे मामले की जांच के लिए विशेष पैनल गठित किया है। फिलहाल, पैनल ने अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है।

 

 

DW के वरिष्ठ पत्रकार मुरली कृष्णन लिखते हैं कि भारत में साल 1940 में बने ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के तहत दवा से जुड़े नियमों का पालन किया जाता है। बाद में इसमें थोड़े-बहुत बदलाव किए गए हैं, लेकिन भारत जैसे बड़े बाजार जो राज्यों का एक संघ है उसे सही तरीके से संचालित करने के लिए ये नियम पर्याप्त नहीं हैं। दवा उद्योग के क्षेत्र में बतौर अधिकारी काम कर चुके स्वास्थ्य कार्यकर्ता दिनेश ठाकुर के अनुसार दवा के निर्माण और वितरण से जुड़े नियमों का पालन कराने की जिम्मेदारी जिस नौकरशाही पर है वह बेकार, अक्षम और भ्रष्ट है।

बड़े कारोबार को लग सकता है धक्का

भारत टीकों के निर्माण के मामले में दुनिया का अग्रणी देश है और जेनेरिक दवाओं का बड़ा उत्पादक है। वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं की 20 फीसदी आपूर्ति भारत करता है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी का अनुमान है कि बढ़ती निर्यात हिस्सेदारी के साथ भारत का दवा उद्योग बढ़ता रहेगा और अगले साल तक यह उद्योग लगभग 60.9 अरब डॉलर पर पहुंच जाएगा। सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (Central Drug Standard Control Organization)  के अनुसार भारतीय बाजार में मौजूद कुल जेनेरिक दवाओं में लगभग 4.5 फीसदी दवाएं घटिया थीं। हालांकि, एक विशाल दवा बाजार में नकली दवाओं के उत्पादन और वितरण का भी खतरा होता हैं।

घोटालों से पटा भारतीय बाजार

गाम्बिया की घटना इस तरह की पहली घटना नहीं है। दो साल पहले, डिजिटल विजन नामक कम्पनी के बनाए गए सिरप के सेवन से जम्मू और कश्मीर में 17 बच्चों की मौत हो गई थी। इस घटना की जांच में पाया गया कि सिरप में डाइथाइलीन ग्लाइकोल की मात्रा काफी ज्यादा थी। गाम्बिया में हुई मौत के बाद WHO की रिपोर्ट में भी पाया गया कि वहां भेजे गए कफ सिरप में डाइथाइलीन ग्लाइकोल और इथाइलीन ग्लाइकोल की मात्रा सुरक्षित मानकों से अस्वीकार्य स्तर तक ज्यादा थी। जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) की घटना के बाद सरकार ने इस कफ सिरप के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। वहीं साल 2016 में दो भारतीय दवा कम्पनियों पर डायबिटीज के नकली दवाओं के निर्यात का आरोप लगा था।

वर्ष 2013 में रैनबैक्सी कम्पनी को मिलावटी दवाओं के निर्माण और वितरण के लिए दोषी ठहराया गया था। अमेरिकी न्याय विभाग के साथ एक समझौते के तहत कम्पनी 50 करोड़ डॉलर की जुर्माना राशि का भुगतान करने के लिए तैयार हुई। पिछले साल जब भारत कोरोना वायरस की लहर से जूझ रहा था, तब काफी संख्या में रेमडेसिविर की नकली शीशियां ज्यादा कीमतों पर बाजार में बेची गई और निर्यात भी की गई। Covid-19 महामारी के दौरान इस एंटीवायरल दवा की मांग काफी ज्यादा बढ़ गई थी। भारत के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) के अनुसार फार्मास्यूटिकल प्रॉडक्ट ऑफ इंडिया लिमिटेड (Pharmaceutical Products of India Limited) और वेनवरी नाम की दो कम्पनियां डायबिटीज की दवा मेटफॉर्मिन हाइड्रोक्लोराइड (Metformin Hydrochloride) की अवैध रूप से रीब्रांडिंग कर रही थीं और उन्हें बांग्लादेश, ब्राजील, मेक्सिको और पाकिस्तान को निर्यात कर रही थीं। यह अवैध कारोबार बरसों से फल-फूल रहा था।

हजारों दवाएं सुरक्षा जांच में फेल

यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव (USTR) की एक रिपोर्ट में पाया गया कि भारतीय बाजार में बिकने वाले सभी दवा उत्पादों में से 20 फीसदी नकली हैं। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2007 और वर्ष 2020 के बीच भारत के मात्र तीन राज्य और तीन केंद्र शासित प्रदेशों से जांच के लिए इकट्ठा किए गए नमूने में से सात हजार 500 से अधिक दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में फेल हो गईं। इसके अलावा भारत में मौजूद 12 हजार से अधिक विनिर्माण इकाइयों में से महज एक चौथाई ही WHO के मानकों के मुताबिक उत्पादन करती हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के कोच्चि चैप्टर के पूर्व अध्यक्ष राजीव जयदेवन के अनुसार मरीजों और डॉक्टरों को फिलहाल कोई खतरा नहीं है। अगर गाम्बिया जैसी घटनाएं होती हैं, तो प्रतिष्ठा प्रभावित हो सकती है। नकली दवा के लिए माफी की गुंजाइश नहीं है। यह शून्य होना चाहिए। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी के मुताबिक नकली दवा तस्करों पर लगाम लगाने के लिए स्वास्थ्य आपूर्ति श्रृंखला के सभी चरणों की उच्च स्तर की निगरानी और मूल्यांकन होना चाहिए।

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