डॉ दिलीप अग्निहोत्री
महामना मदन मोहन मालवीय का जीवन साधारण था। लेकिन इस सहज समान्य तरीके से उन्होंने असाधारण कार्य किए। उन्होंने अपने आचरण से प्रमाणित किया कि समाज के लिए भिक्षावृत्ति आध्यात्मिक कार्य है। महामना समाज की शक्ति को समझते थे।आज उनके विचारों से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। वह मजबूत समाज का निर्माण चाहते थे। इसके लिए आजीवन प्रयास करते रहे। य़ह विचार राज्यसभा सदस्य प्रो राकेश सिन्हा ने व्यक्त किए। उन्होंने लखनऊ के मालवीय मिशन द्वारा महामना जयन्ती समारोह को संबोधित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मालवीय मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रभु नारायण श्रीवास्तव ने किया। इसके पहले प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ एके त्रिपाठी ने अतिथियों का स्वागत किया। प्रो राकेश सिन्हा ने कहा कि वैचारिक संघर्ष को समझने की आवश्यकता हैं। महामना युग द्रष्टा थे। उन्होने परतंत्रता के समय इस तथ्य को समझा था। वही समाज को इसके अनुरूप प्रेरणा देते रहे।
वह करीब आधी शताब्दी तक कांग्रेस में सक्रिय रहे। दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने। चार बार केंद्रीय विधान परिषद के सदस्य रहे। यहां रहकर वह ब्रिटिश शासन को कठघरे में खड़ा करते रहे। एक बार वह बिना कोई कागज लिए चार घण्टे तक बोलते रहे। वह निर्भय होकर विचार यात्रा पर चलते रहे। कांग्रेस में सक्रिय रहते हुए भी क्रान्तिकारियों को बचाने में लगे रहे। ब्रिटिश निरंकुश तंत्र का वह सदैव विरोध करते रहे। करीब डेढ़ सौ क्रान्तिकारियों को इलाहाबाद हाई कोर्ट से बरी कराया। वह मानते थे कि क्रांतिकारी देशभक्त हैं। भगत सिंह की सजा रोकने के लिए उन्होंने वायसराय को पत्र लिखा। वह कांग्रेस के अन्य नेताओं से अलग दिखाई देते थे।
कांग्रेस के नेता क्रान्तिकारियों पर मौन रहते थे। महामना क्रान्तिकारियों की पैरवी करते थे। हिन्दू संस्कृति में उदारता है। इसको संस्था मे सीमित नहीं किया। यहां तक कि प्रभु श्रीराम और श्रीकृष्ण ने भी कोई संस्था नहीं बनाई। यहां ज्ञान की कोई सीमा नहीं हैं। कोई दायरा या सीमा में विचारों को सीमित नहीं किया गया। महामना जैसे लोग ऐसी ही जीवन पद्धति में उभरते हैं। काकोरी की घटना क्रांति के अंतर्गत आती हैं। षड्यंत्र तो अंग्रेज कर रहे थे। उन्होंने षड्यंत्र के माध्यम से भारत पर अवैध कब्जा जमाया था।