सुविधा शुल्क के आगे आईजी जेल के आदेश का कोई मायने नहीं

  • कैदी स्थानांतरण में भी अफसरों ने की जमकर वसूली! बागपत जेल में कैदियों के स्थानांतरण से हुआ बड़ा खुलासा

राकेश यादव

लखनऊ । डीजी पुलिस/आईजी जेल का आदेश जेल अधिकारियों के लिए कोई मायने नहीं रखता है। यही वजह है कि कमाई की खातिर जेल अफसर मुखिया के आदेश को दरकिनार कैदियों को स्थानांतरित करने में जुटे हुए हैं। आलम यह है कि कमाकर देने वाले कैदियों को मोटी रकम लेकर रोक लिया जाता है, वही निरीह कैदियों को स्थानांतरित का दिया जा रहा है। यह मामला जेलकर्मियों में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसको लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे है। चर्चा है कि कमाई के लिए मुख्यालय के आदेश का अनुपालन ही नहीं होता है।

प्रदेश की जिला जेल में विचाराधीन बंदियों और केंद्रीय कारागार में सजायाफ्ता कैदियों को रखा जाता है। सूत्रों का कहना है कि जिला जेलों में ओवरक्राउंडिंग (क्षमता से अधिक बंदी) की समस्या को देखते हुए बीते दिनों एक आदेश जारी किया गया। डीजी पुलिस/आईजी जेल एसएन साबत की ओर से जारी किए गए इस आदेश में कहा गया कि ओवरक्राउडिंग की समस्या को दूर करने के जिला जेल में बंद सजायाफ्ता बंदियों को केंद्रीय कारागारों में तत्काल स्थानांतरित किया जाए।

विभाग के मुखिया आईजी जेल के इस आदेश के बाद बागपत जिला जेल में कैदियों के स्थानांतरण में चौकाने वाली बात सामने आई है। सूत्रों का कहना है कि बागपत जेल से करीब चार दर्जन सजायाफ्ता कैदियों को आगरा सेंट्रल जेल स्थानांतरित किया जाना था। जेल अधिकारियों ने इसमें करीब दो दर्जन से अधिक कैदियों को तो स्थानांतरित कर दिया। किंतु कमाकर देने वाले कैदियों से मोटी रकम वसूल कर उन्हें रोक लिया गया। जानकारों का कहना है जेल में संचालित कैंटीन में लगे कैदी आलम, धर्मवीर, जितेंद्र और प्रवीण को पैसा लेकर रोक दिया गया। यही नहीं जेल अधीक्षक के नंबरदार कैदी बलराज (मादक पदार्थों की आपूर्ति के आरोपी), पुनीत और गौरव को भी स्थानांतरित करने के बजाए रोक दिया गया। जेलर के नंबरदार प्रवीण को भी रोक लिया गया है। रोके गए कैदियों से जमकर वसूली की गई है। उधर इस संबंध में जब बागपत जेल अधीक्षक वीके मिश्रा से बात करने का प्रयास किया गया तो कई प्रयासों के बाद भी उनका फोन नहीं उठा।

मुख्यालय में कमाकर देने बाबुओं को हटा नहीं पाते आला अफसर!

प्रदेश के कारागार मुख्यालय में भी कमाकर देने वाले बाबुओं को हटाया नहीं जाता है। अफसरों का तर्क है लंबे समय से एक ही सीट पर जमे बाबुओं को हटाने से कार्य प्रभावित होगा। यही वजह है कि ब्राड सीट में गड़बड़ी पकड़ने वाले संयुक्त सचिव के निर्देश के बाद भी बाबू अनिल कुमार, सुरेश कुमार, प्रशांत और संजय श्रीवास्तव को अभी तक हटाया नहीं गया है। इसी प्रकार गोपनीय से हटाकर निर्माण जाने वाले वीके सिंह को निर्माण, नजारत के साथ गुपचुप तरीके से गोपनीय का भी काम कराया जा रहा है। यही हाल सरवन वर्मा भी है। वह तैनात कहीं हैं और काम कहीं करते है। आधुनिकीकरण अनुभाग में काकस बनाकर ठेकेदारों से साठगांठ रखने वाले शिवांशु गुप्ता और शांतनु वशिष्ठ को मुख्यालय के अफसर हटाने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहे है। हकीकत यह है कि भ्रष्ट बाबुओं को मुख्यालय के अफसरो का संरक्षण प्राप्त है। इस वजह से इन पर कोई कार्यवाही नहीं होती है।

वित्तीय  वर्ष के अंतिम दिनों में हुई लाखों की लूट

वित्तीय वर्ष के अंतिम सप्ताह में जेल मुख्यालय के अधिकारियों और बाबुओं ने निर्माण, आधुनिकीकरण और नजारत में जमकर वसूली की गई। मुख्यालय के जानकारों का कहना है कि वित्तीय वर्ष के अंतिम सप्ताह में निर्माण और नजारत अनुभाग के प्रशासनिक अधिकारी ने निर्माण की कार्यदायी संस्थाओं और नजारत के ठेकेदारों से फोन करके जमकर वसूली की। इसके साथ ही आधुनिकीकरण अनुभाग की बची 53 करोड़ की धनराशि को बाबुओं ने कमीशन की खातिर अनाप शनाप तरीके से खर्च कर लाखों के वारे न्यारे कर अफसरों को गुमराह किया। हकीकत यह है मुख्यालय के अफसरों का बाबुओं पर कोई नियंत्रण ही नही रह गया है। यही वजह है कि वह जमकर मनमानी कर सरकारी धन का दुरुपयोग कर रहे हैं।

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