Mahaparinirvan Day Special : स्व-मूल्यांकन की मांग करते बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर

डॉ. कन्हैया त्रिपाठी
डॉ. कन्हैया त्रिपाठी

हमारे देश में बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर का जो स्थान है वह आज़ादी के बाद कदाचित उस कालखंड में जन्म लेने वालों को नहीं मिला। वह हमेशा सम्मान की नज़र से प्रतिष्ठित हैं और जब तक भारत रहेगा उनका वह स्थान सुरक्षित है, ऐसा कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । सबसे बड़ी बात कि उन्होंने देश के संविधान के साथ जो संकल्प प्रकट किया उसके पीछे उस मनुष्य का निर्माण था जो मुख्यधारा में कभी शामिल ही नहीं किए गए थे। निःसन्देह, इतिहास ऐसे महापुरुषों को कालजयी महापुरुष के रूप में स्मरण रखता है। वैसे तो भारत का इतिहास बहुत से महान लोगों के बलिदान और पराक्रम से समृद्ध है। यहां वीरों ने जन्म लिया और अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से आने वाले समय में और अपने जीवनकाल में बहुतेरे लोगों को प्रभावित किया। यहां की स्त्रियां अपने शौर्य और शीलता के लिए प्रसिद्ध हुईं और उनके भी अवदान को इतिहास सम्मानित तरीके से हमें उन्हें स्मरण दिलाता है। यह इसलिए होता है क्योंकि हमारे देश के वीर सपूत और वीरांगनाओं ने इस पृथ्वी को सम्मान दिया। वे आभूषण बनकर पृथ्वी पर सुशोभित हुए और हमेशा उन सब ने यह कोशिश की कि भारत और पृथ्वी सबके सम्मान के साथ कैसे जुड़े। बाबासाहेब  डॉ. आंबेडकर का नाम ऐसे ही सपूतों में अंकित है जो पृथ्वी पर व्याप्त किसी भी प्रकार की हिंसा के बरक्स एक ऐसी सभ्यता के जनक बने जो सम्मान और गरिमा के साथ कोई समझौता करने को राजी नहीं हुए।

बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने जब महाड़ सत्याग्रह शुरू किया था तब उसकी आलोचना हुई और उस समय के धनाढ्य और सशक्त व सक्षम जाति के लोग इसे मजाक के तौर पर देख रहे थे लेकिन महाड़ सत्याग्रह का परिणाम क्या हुआ, उसका असर आज़ भी दिखता है। आज भी यदि दमित लोग किसी प्रतिरोध की बात सोचते हैं तो बाबासाहेब उन्हें स्मरण हो आते हैं। उन्हें वह आत्मशक्ति मिलती है बाबासाहेब से जिससे वह आवाज़ उठाते हैं और आगे बढ़ने का संकल्प लेते हैं। बाबासाहेब इस प्रकार उस चेतना के प्रतिनिधि हैं जो साहस करके आगे बढ़ती है और चेंज-परिवर्तन चाहती है। दुनिया में अनेक परिवर्तन हो रहे हैं लेकिन दमितों और शोषितों के हितों के लिए अभी भी बड़े पैमाने पर संवाद की मांग है। बीसवीं सदी के मध्य तक बाबासाहेब के दिखाए गए रास्ते, जब कभी भी कोई ऐसा संवाद होगा तो उसमें औषधि की भांति होंगे और आत्मोत्सर्ग की नई इबारत लिखने के लिए उन्हें संबल प्रदान करेंगे। उनसे प्रेरणा लेकर ऐसे लोगों के उत्थान के लिए जो आगे आएंगे उनके लिए बाबासाहेब का विचार होगा, आज़ ऐसा लगता है। परिवर्तनकारी युग में एक विचार इतना उत्कृष्ट व सतत सत्व लिए होगा, यह विचारक या महापुरुष जानबूझकर नहीं करते, बल्कि उनके किये गए यत्न ही उस विचार का मूल बन जाते हैं। फिर भी बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के विचार से विरत होती आबादी को कैसे जोड़ा जाए यह आज़ एक चुनौती है। यह इसलिए आज कहना पड़ रहा है क्योंकि विचार हमेशा पवित्र मन से धारण किए जाते हैं और तभी विचार विस्तार पाते हैं। विगत कुछेक वर्षों में बाबासाहेब के विचारों से उपजी और दम तोड़ती बहुजन समाज वादी पार्टी ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। और यह लगता है कि वह लगभग जो बाबासाहेब के मूल्यों के साथ आगे बढ़ने की चेष्ठा कर रही थी वह खुद नेपथ्य में चली गई है और अपना जनाधार खो दी है। इसके पीछे हम कतई यह नहीं स्वीकार कर सकते कि बाबासाहेब के विचारों ने दम तोड़ा है बल्कि इसके अलंबरदार कहीं न कहीं उस सत्व को खो दिए जिससे बाबासाहेब के विचारों को जो प्रौढ़ता मिल रही थी, वही खोने लगी। इसके मूल्यांकन की आज़ बारी है और यह किया जाना आवश्यक है।

मूल्यांकन सामाजिक बदलाव की भी हों और साथ ही उन कारणों के जिनसे ऐसे बदलाव दिख रहे हैं। आखिर वे कौन सी वजहें हैं जिससे एक पार्टी अपने अस्तिव को खोती जा रही, सवाल यह है। महाराष्ट्र में जब मैं था तो बाबासाहेब के परिनिर्वाण दिवस पर बड़े आयोजन हुआ करते थे। महापरिनिर्वाण दिवस के दिन श्वेत वस्त्र में नगाड़े और बैंड के साथ बाबासाहेब को मराठी लोग अपनी आदरांजलि उनके पुतले पर देने आते थे। महाराष्ट्र के लोग कहते थे कि यह सामाजिक चेतना का स्वर केवल यहीं मिलता है देश में सब जगह इस प्रकार बाबासाहेब को लोग नहीं स्मरण करते। इस पर मेरा जवाब होता था कि फिर भी उत्तर प्रदेश में ऐसा होता है जो अन्य राज्यों में नहीं होता। वहां तो शासन और व्यवस्था से परिवर्तन होते हैं। यह सुन सभी उत्तर प्रदेश में बहन मायावती और आंबेडकर की नई जमीन को देखकर प्रसन्न होते थे। वह समय था। आज यह सवाल है कि आखिर बाबासाहेब के वे कौन से मूल्य थे जो अब जनाधार के टूटने की कहानी लिख रहे हैं या उनके विचार को आगे ले जाने वालों में ही कोई खामी है।

भारत में बहुत कुछ बदला है। इस बदलाव में एक अन्य पार्टी बाबासाहेब की तस्वीर पंजाब में हर ऑफिस में लगा रही है। तो क्या कुछ कंधे थक गए और कुछ दूसरे कंधे बाबासाहेब को ढोने के लिए आगे बढ़ गए, ऐसा माना जाए। ऐसे अनेकों सवाल भारतीयों के मन में आते हैं। ऐसा जब जब होगा तब तब ऐसे सवाल मानों लोगों के जेहन का हिस्सा बनेंगे। इस पर से सवाल यह उठता है कि बाबासाहेब को दिल से सब कब स्वीकार करेंगे? कब उनकी वह भारत की तस्वीर भारत को मिलेगी जिसमें समतामूलक समाज की संकल्पना थी। जिसमें सबके सम्मान और गरिमामय जीवन की सच्ची गाथा थी। आज़ बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर को संपूर्णता में अपनाने से कतराती पार्टियां और लोग खुद अपनी बाबासाहेब के प्रति प्रतिबद्धता को प्रश्नांकित कर रहे हैं। भारत के लोग भारत के अपने नेतृत्वकर्ताओं से सवाल कर रहे हैं कि बाबासाहेब को संपूर्णता में कब अपनाया जएगा?

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यह ज़रूरी नहीं होता कि कोई एक व्यक्ति या विचारधारा पूरे राष्ट्र की वाहक बन जाए। लेकिन सवाल समाज करता है और समाज में रहने वाले लोग करते हैं वर्तमान से और कुछ समय बाद उस समय की पीढ़ियां करती हैं अपने अतीत से। बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण दिवस पर बाबासाहेब के मूल्यों के साथ जुड़ने वाले अपने दिल पर हाथ रखकर पूछ लें कि वे उस सत्व को अपनाकर कितने समय आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। यदि नैतिक लोग आगे बढ़कर बाबासाहेब की वैचारिकी को संवाद का हिस्सा बनाएं तो निःसन्देह उस महान सपूत के उस महान संकल्प को बल मिलेगा जिससे दमितों और शोषितों का उत्थान होना है। वरना वही हाल होगा जो एक दम तोड़ती पार्टी का हुआ है। वह पार्टी बहके-बहके स्वभाव से भले अपने होने का दम्भ भरे लेकिन बाबासाहेब के सपने टूटने और उनके विचारों के टूटने की जो हानि हुई है उसे कैसे झुठला पाएगी?

हर संकल्प का अपना सत्व होता है और बाबासाहेब सौ कैरेट शुद्ध लोगों से यह आह्वान करते हैं कि वे उनके विचार के साथ आएं। भ्रष्टाचारी और धन के लालच में रहने वाले लोग उनके समय में भी जब उन्हें सहयोग नहीं करते थे तो उन्होंने नाराजगी जताई थी। आज बाबासाहेब नहीं हैं लेकिन उनके मूल्य 40 खंडों में प्रकाशित डॉ. भीमराव आंबेडकर संपूर्ण वांग्मय के उन पन्नों को देखने की अपील जरूर कर रहे हैं। जिनमें उनकी नाराज़गी के शब्द हैं। वे कभी नाराज़ होकर अपनी बात कहते थे, क्या उन्हें पढ़कर उन्हें आत्मसात करने को लोग तैयार हैं? यदि ऐसा नहीं करते हैं तो मेरी दृष्टि में एक महानपुरुष के साथ विचारधारा के नामपर राजनीति करने वालों का यह एक छलावा है, इसे बंद करना चाहिए। बाबासाहेब यह कभी नहीं कहते कि उन्हें अधूरे मन से स्व-लाभ के लिए अपने स्वार्थों की सिद्धि के लिए कोई भी शुरुआत की जाए। यदि सच्चे हैं तो बाबासाहेब के हैं। वस्तुतः, आज़ भारत के लोगों को उस सच में स्वयं को परखने के दिवस है।


पता: डॉ. कन्हैया त्रिपाठी, डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर-470003 मध्य प्रदेश
मो. 9818759757 इमेल: [email protected]


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