रतन गुप्ता
काठमांडू। नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने नागरिकता बिल को मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। राष्ट्रपति के सलाहकार लालबाबू यादव ने पुष्टि की है कि भंडारी ने ‘संविधान की रक्षा’ के लिए विधेयक को प्रमाणित करने से इंकार कर दिया है। इससे पहले संसद को दोनों सदनों द्वारा इस बिल को दोबार पारित किया गया था और राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा गया था।
नेपाल में गहरा सकता है संवैधानिक संकट
संविधान के मुताबिक, किसी बिल को संसद के दोनों सदन दोबारा भेजते हैं तो 15 दिन के अंदर राष्ट्रपति को फैसला लेना होता है। लेकिन यहां राष्ट्रपति ने इस बिल को मंजूरी देने मना कर दिया है। राष्ट्रपति के इस फैसले के बाद नेपाल में संवैधानिक संकट गहराने के आसार बढ़ गए हैं। राष्ट्रपति के राजनीतिक सलाहकार लालबाबू यादव ने कहा कि भंडारी ने संवैधानिक व्यवस्था के अधिकार का इस्तेमाल किया गया है।
संविधान की रक्षा करना राष्ट्रपति का काम
सलाहकार लालबाबू यादव ने कहा कि अनुच्छेद 61(4) में कहा गया है कि राष्ट्रपति का मुख्य कर्तव्य संविधान का पालन करना और उसकी रक्षा करना होगा। इसका मतलब राष्ट्रपति का काम संविधान के सभी हितों की रक्षा करना है। केवल अनुच्छेद 113 को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि राष्ट्रपति ने ऐसा नहीं किया। यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 113(2) में कहा गया है कि राष्ट्रपति के सामने पेश किए जाने वाले बिल को 15 दिनों में मंजूरी देनी होगी और दोनों सदनों को इसके बारे में सूचित किया जाएगा।
संवैधानिक रूप से विधेयक को मंजूरी देने के लिए राष्ट्रपति बाध्य
नेपाल की संविधान के प्रावधान के अनुसार, राष्ट्रपति संवैधानिक रूप से किसी भी विधेयक को मंजूरी देने के लिए बाध्य है जिसे सदन द्वारा एक बार पुनर्विचार के लिए वापस भेजने के बाद फिर से राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत किया जाता है। राजनीतिक सलाहकार ने कहा, यह बिल संविधान के भाग-2 के प्रावधानों का पूरी तरह से पालन नहीं करता है, महिलाओं के साथ भेदभाव करता है और प्रांतीय के साथ एकल संघीय नागरिकता का प्रावधान नहीं है।
इससे पहले भी राष्ट्रपति ने लौटाया था बिल
मंगलवार की आधी रात तक राष्ट्रपति के लिए उस बिल को प्रमाणित करने की समय सीमा थी जो अब खत्म हो चुकी है। ऐसा माना जा रहा कि नेपाल अब एक संवैधानिक संकट की स्थिति में आ चुका है। इससे पहले भी राष्ट्रपति भंडारी ने 14 अगस्त को नागरिकता विधेयक वापस कर दिया था, जिसे प्रतिनिधि सभा और नेशनल असेंबली दोनों द्वारा पारित किए जाने के बाद प्रमाणीकरण के लिए उनके पास भेजा गया था। बता दें कि ये विधेयक पिछले तीन साल से लटका पड़ा है। राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी इस पर और गंभीर चर्चा चाहती हैं।
राष्ट्रपति भंडारी ने उठाए थे 2 मुद्दे
राष्ट्रपति ने अगस्त माह में विधेयक को वापस भेजते समय 2 मुद्दे उठाए थे। संविधान के अनुच्छेद 11(6) के मुताबिक अगर कोई विदेशी महिला नेपाली नागरिक से शादी करना चाहती है तो वह नेपाल की प्राकृतिक नागरिकता प्राप्त कर सकती है, जैसा कि संघीय कानून में प्रावधान है। लेकिन राष्ट्रीय संसद द्वारा पारित विधेयक में यह प्रावधान नहीं है। इसके साथ ही राष्ट्रपति ने बच्चों को नागरिकता प्रदान करते हुए एक महिला द्वारा स्व-घोषणा की आवश्यकता के प्रावधान पर भी सवाल उठाया।