“पितृपक्ष” पर विशेष : जीवात्मा क चंद्रलोक से ऊपर पितृलोक में प्रतिष्ठित करे खातिर श्रद्धा से श्राद्ध करल बा जरूरी,

लखनऊ। सनातन धर्म संस्कृति में आश्विन कृष्ण पक्ष यानी पितृपक्ष क बड़ा महत्व होला। अइसन कहल जाला कि इ १६ दिन में पितर लोगन के खातिर श्राद्ध, तर्पण अउरी पिंडदान आदि कइल सबकर कर्तव्य ह। जवन भी लोग अपने पितर लोगन  के नाम पर श्राद्ध, तर्पण अउरी पिंडदान आदि नाहीं करेले उनके सनातन हिन्दू नाहीं मानल जा सकल जाला! काहे की सनातन धर्म क शास्त्रन के अनुसार मानव शरीर क त्याग कइले के बाद जीवात्मा चंद्रलोक क ओर गमन करत होखे अउर ओहु में ओहु से भी ऊंचा उठ के पितृलोक में पहुंचेला।

अइसने में इ मृतात्मा के वहवा तक पहुंचउले के खातिर शक्ति क आवश्यकता होला अउर इ शक्ति उनके पिंडदान अउर श्राद्ध के विधान से मिलेला। श्राद्ध में पितर लोगन के नाम पर यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन अउर दान भी कइल जाला शास्त्र के अनुसार इ पुण्य फल से ही पितर लोगन क संतुष्ट भइल मानल गइल बा। पितर लोगन के आशीर्वाद से आयु, पुत्र, यश, बल, वैभव, सुख अउरी  धन धान्य क प्राप्ति होला। एही खातिर सनातन धर्म में आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन नियम पूर्वक स्नान कइके पितर लोगन क तर्पण कइल जाला।

“सीता माता द्वारा दिया श्राद्ध भोज

जवन दिन (मृत्युतिथि) उनके पितर लोगन क होला ओही दिन अपने शक्ति अउरी सामर्थ्य के अनुसार ब्राम्हण लोगन क भोजन कराके उनके वस्त्र आदि दान देके संतुष्ट कइल जाला। अइसन कइले पर ही पितर लोग संतुष्ट अउरी शक्तिमान बने ले अउर परिवार क ढेरों आशीर्वाद प्रदान करे ले। आज लोग आधुनिक हो गइल बाडे। पितृकर्म, श्राद्ध, पिण्डदानादि के ढोंग अउर अन्धविश्वास माने लगल बाडे। इहे कारन बा कि आज कहे क त लोग अनेकों प्रकार क धर्म कर्म करत रहेले, पर पितर लोगन क श्राद्ध के नाम पे अवहेलना ही दिखाई पडेला। अपने पितर लोगन क केहु याद भी नाहीं कइल चाहेला जबकि तर्पण अउर श्राद्ध पिता,  पितामह अउर परपितामह यानी की तीन पीढ़ियन के खातिर कइल जाला। श्राद्ध कर्म करत समय जवन वस्तु क सबसे अधिक आवश्यकता होला ओके श्रद्धा कहल गइल बा।

पितरों की मुक्ति हेतु गया श्राद्ध

हम “प न पा” इ जरुर बतावल चाहीब कि बिना श्रद्धा के कइल श्राद्ध कदापि फलीभूत नाहीं होला। मृतात्मा के प्रति श्रद्धा पूर्वक कइल गइल कार्य क ही श्राद्ध कहल जाला। श्राद्ध से श्रद्धा जीवित रहेला अउरी पितर लोगन के खातिर  श्रद्धा प्रकट कइले क माध्यम केवल श्राद्ध ही होला। पितृपक्ष में तर्पण कइले से पितर लोगन के जीवन क उत्थान होला अउरी उनके शांति भी मिलेला अउर पितर लोगन क अंतरात्मा से तर्पण करे वाले के प्रति आशीर्वचन निकलेला। एही खातिर जीवन क सुखमय बनावे रखे खातिर प्रत्येक मनुष्य के पितृपक्ष में श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध तर्पण आदि कर्म अवश्य करत रहे क चाही। सौभाग्य से यदि सनातन हिन्दू के घर जन्म भइल बा त सनातन क मान्यता के जरुर माने के ही चाही। जे ए मान्यता के नाही मानके एके ढोंग अउरी अन्धविश्वास कहे ला, उनके हिन्दू के घर में जन्म लीहल ही व्यर्थ ह।

पनपा

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