- देव नवांश, नर नवांश और राक्षस नवांश के नाम से जाने जाते हैं नवमांश
- यदि ग्रह अच्छी स्थिति या उच्च के हों तो वर्गोत्तम की स्थिति होती है उत्पन्न
-राजेन्द्र गुप्ता, ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
वैदिक ज्योतिष में नवमांश कुण्डली को कुण्डली का पूरक माना गया है। यह एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कुण्डली मानी जाती है क्योंकि इसे लग्न कुण्डली के बाद सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। जहां लग्न कुण्डली देह को दर्शाती है वहीं नवमांश कुण्डली आत्मा को अभिव्यक्त करती है। पराशर संहिता अनुसार व्यक्ति की जन्म कुन्डली का संबंध नवांश कुण्डली के साथ उचित प्रकार से बन जाता है तो वर्गोत्तम नवमांश बनता है और ऎसा होने पर व्यक्ति को अच्छे फलों की प्राप्ति होती है।
नवांश कुण्डली में यदि ग्रह अच्छी स्थिति या उच्च के हों तो वर्गोत्तम की स्थिति उत्पन्न होती है और व्यक्ति शारीरिक व आत्मिक रुप से स्वस्थ हो शुभ दायक स्थिति को पाता है। यदि कोई ग्रह जन्म कुण्डली में नीच का हो, परंतु नवांश कुण्डली में वह उच्च का हो तो वह अच्छे फल प्रदान करने वाला होता है और यही तथ्य नवांश कुण्डली की महत्ता को दर्शाते हैं। नवांश कुण्डली को नौ भागों में बांटा जाता है. जिसके आधार पर जन्म कुण्डली का विवेचन होता है।
देव नवांश
0 डिग्री से 3 डिग्री 20 मिनट, 10डिग्री से 13 डिग्री 20 मिनट और 20डिग्री से 23 डिग्री 20 मिनट तक को देव नवांश कहा जाता है। अर्थात 1,4 और 7 नवांश को देव नवांश के नाम से जानते हैं। कुछ ज्योतिष शास्त्रियों के कथन अनुसार देव नवांश सात्विक गुणों से युक्त माना गया है। यदि सप्तम नवांश या सप्तमेश देव नवांश से संबंध बनाता है तो व्यक्ति को जीवन साथी का सुख प्राप्त हो सकता है। इस नवांश का संबंध होने पर व्यक्ति में उदारता और त्याग करने की प्रवृत्ति होती है। ऎसा व्यक्ति धर्म को मानने वाला और न्याय और धर्म नीति से कार्य करने वाला होता सकता है।
नर नवांश
3 डिग्री 20 मिनट से 6 डिग्री 40 मिनट, 13 डिग्री 20 मिनट से 16 डिग्री 40 मिनट और 23 डिग्री 20 मिनट से 26 डिग्री 40 मिनट तक को नर नवांश कहा जाता है। अर्थात दूसरा, पांचवां और आठवां नवांश नर नवांश कहलाता है। ज्योतिष विद्वानों के अनुसार नर नवांश को रजो गुण वाला कहा गया है। यदि सप्तम भाव या सप्तमेश नर नवमांश में पडे़ तो जातक महत्कांक्षी और उर्जा से भरा होता है। व्यक्ति में आगे बढ़ने की दृढ़ इच्छा शक्ति देखी जा सकती है। नर नवांश होने पर व्यक्ति में सहनशीलत का गुण भी देखा जा सकता है। इस नवांश से संबंध होने पर व्यक्ति में आगे बढ़ने की चाह रहती है और वह समाज के लिए अहम भूमिका भी निभा सकता है।
राक्षस नवांश
6 डिग्री 40 मिनट से 10 डिग्री, 16 डिग्री 40 मिनट से 20 डिग्री और 26 डिग्री 40 मिनट से 30 डिग्री तक का नवमांश राक्षस नवमांश कहलाता है। अर्थात तीसरा, छठा और नवां नवांश राक्षस नवांश होता है। इस नवांश को तमोगुण वाला कहा गया है। लोभ, इच्छा, स्वार्थ सिद्धि इसके मुख्य गुण कहे गए हैं। यदि सप्तम या सप्तमेश का संबंध राक्षस नवांश से बनता है तो व्यक्ति में लालच और सभी सुख सुविधाओं को किसी भी प्रकार से पाने की इच्छा बनी रह सकती है। जातक में दूसरों पर अधिकार जताने की प्रवृत्ति देखी जा सकती है। उसे केवल अपने सुख से मतलब हो सकता है दूसरों कि इच्छा की परवाह करना उसके सामर्थ्य में नहीं होता है।
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