धरती पर तूफान रहेगा !!

जब तक नस्ल भेद होगा !


के. विक्रम राव
के. विक्रम राव

बिना प्रतिहिंसा किये विरोधियों में हृदय-परिवर्तन करने की प्रक्रिया की विशिष्ट जानकारी के लिए मार्टिन ने 1959 में सत्याग्रह की प्रयोग-भूमि भारत की यात्रा की। उन्होंने गाँधी स्मारक निधि के तत्वावधान में महात्मा की विचारधारा का विशद अध्ययन किया। संत विनोबा से मिले। गांधी शताब्दी समारोह में भाग लेने आने निमंत्रण स्वीकार किया पर काल ने यह नहीं होने दिया। वे (अहमदाबाद), (पोरबंदर) और सेवाग्राम (वार्धा) आने वाले थे। अपनी प्रथम भारत यात्रा पर उन्होंने कहा थाः ”बुरे के जवाब में भला करना यीशु ने सिखाया था। भारत में गांधी ने दिखाया कि यह संभव है, कारगर भी। अहिंसा के इस उपासक का हिंसक अंत हुआ। वे लारोइन मोटेल की छत से संबोधित कर रहे थे कि ”हम अब कामयाब होंगे। शायद मैं आपके साथ मंजिल तक न पहुंच सकूं।” दूसरे दिन ही (4 अप्रैल 1963) उन्हें जेम्स अली राय नामक गोरे ने गोली मार दी। हालांकि न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि अमरीकी पुलिस इस हत्या की साजिश में लिप्त थी। हत्या के बाद सवा सौ शहरों में दंगे हुए, 46 मरे, तीन हजार घायल हुए, चैबीस हजार कैद हुये। इतना बड़ा जन विद्रोह अमरीका में कभी नहीं हुआ था।

जब तक नस्ल भेद होगा!

अब सोशलिस्ट नेता डॉ लोहिया का किस्सा। रंगभेद के कारण अमेरिकी होटल में लोहिया को नहीं जाने दिया। उन दिनों वे अमेरिका दौरे पर थे। वहां कई विश्वविद्यालयों में और नागरिक अधिकार संगठनों में उनके लेक्चर हो रहे थे। वे 27 मई 1964 को वे अमेरिका के जैक्सन शहर पहुंचे, जहां एक कॉलेज में उनका लेक्चर था। हवाई अड्डे पर स्वागत के बाद लोहिया अमेरिकी मित्रों के साथ सीधे एक होटल में खाना खाने गए, किंतु उन्हें होटल में घुसने नहीं दिया गया, क्योंकि होटल में सिर्फ गोरे ही जा सकते थे। लोहिया मानते थे कि राष्ट्रों की सीमाएं भौगोलिक बंटवारा है, परंतु इंसान के साथ कहीं भी बंटवारा नहीं होना चाहिए। विदेशी धरती पर लोहिया रंगभेद का यह अन्याय सहन नहीं कर सके। उन्होंने वहीं पर आंदोलन की घोषणा की कि अगले दिन वे फिर आएंगे और जबरन उसी होटल में प्रवेश करेंगे। दूसरे दिन लोहिया तय समय पर होटल पहुंचे। उन्हें प्रवेश द्वार पर ही रोक दिया गया। पुलिस पहले से बुला ली गई थी। वहां अपने संबोधन में लोहिया ने किसी भी मानव का रंगभेद के कारण नागरिक अधिकारों से वंचित किए जाने को जंगलीपन कहा। पुलिस और होटल मैनेजर ने लोहिया से वापस जाने को कहा, लेकिन लोहिया नहीं माने। तब पुलिस अधिकारी ने आगे बढ़कर कहा, ‘मुझे खेद है, आपको गिरफ्तार करना पड़ेगा।

लोहिया के गिरफ्तार होने की सूचना अमेरिका में करंट की तरह फैल गई। भारतीय दूतावास के अधिकारी होटल पहुंचे। एक भारतीय की अमेरिका में रंगभेद के कारण गिरफ्तारी पर अमेरिकी साख को भी बट्टा लगता दिखा। अमेरिकी गृह विभाग के भी अधिकारी हरकत में आए और लोहिया रिहा किए गए। आनन-फानन में अमेरिकी गृह विभाग ने उनसे माफी मांगने के लिए एक बड़े अधिकारी को उनके पास भेजा। तब लोहिया ने कहा, “माफी मुझसे क्यों? अमेरिकी राष्ट्रपति को दुनिया के तमाम अश्वेत लोगों से माफी मांगनी चाहिए, जिनके प्रति गोरी चमड़ी वाले अन्याय कर रहे हैं।” तो यह वीरगाथा है विभेद के विरुद्ध मानव संघर्ष की जो अभी भी यह जारी है। भारत में जातिगत अत्याचार के खिलाफ भी।

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