यात्रा का नकारात्मक संदेश

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

पिछले कुछ महीने से कांग्रेस में महात्मा गांधी के प्रति अप्रत्याशित सम्मान दिखाई दे रहा है। सत्याग्रह और पद यात्रा के माध्यम से गांधी से राष्ट्रीय भाव का जागरण कर रहे थे। उनकी प्रयोग सफल हुए थे। कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व भी सत्याग्रह और यात्रा का प्रयोग कर रहा है। लेकिन इसके सकरात्मक परिणाम को लेकर संशय है। यह गांधी जी का मार्ग है। इसकी सफ़लता के लिए सच्चे अर्थों में गांधीवादी बनना अपरिहार्य है। साधन और साध्य दोनों पवित्र होने चाहिए। ईमानदारी और सादगी का जीवन भी इसमें सहायक होता है। इस कसौटी पर कांग्रेस को आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है। उसने पहला सत्याग्रह नेशनल हेराल्ड मसले पर किया। घोटाले के आरोप का विषय न्यायपालिका के विचाराधीन है। ईडी इसी संबंध में छापेमारी और पूछताछ कर रही थी। कांग्रेस की वर्तमान और निवर्तमान अध्यक्ष आरोपी हैं। दोनों पेरोल है। इस संबंध में अंतिम निर्णय न्यायपालिका को ही करना है। इसलिए इस मसले पर सत्याग्रह या आंदोलन का कोई मतलब ही नहीं था। इसी प्रकार कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा सवालों के घेरे में हैं। पार्टी के वर्तमान नेतृत्व का यूपीए सरकार पर पूरा नियन्त्रण था। दस वर्षों तक इस सरकार को कार्य करने का अवसर मिला था। भारत को कितना जोड़ने का प्रयास किया गया। संविधान का अनुच्छेद 370 अस्थाई था। इसमें अलगाववादी तत्व थे।

कांग्रेस इसको स्थाई रखने के लिए कटिबद्ध थी। कश्मीर घाटी में अलगाववादी तत्वों का वर्चस्व था। हुर्रियत के अलगाववादी नेताओं का दिल्ली में स्वागत किया जाता था। यूपीए सरकार के प्रधानमन्त्री और गृहमंत्री उनसे वार्ता करते थे। देश के करीब एक तिहाई में नक्सलियों का प्रकोप था। तुष्टीकरण की राजनीति चल रही थी। कांग्रेस के नेता और मंत्री भगवा आतंकवाद का निराधार आरोप लगा रहे थे। यही लोग वास्तविक आतंकवाद के विरोध में बोलने से बचते थे। गलतफहमी यह कि कांग्रेस देश को एक रखने के लिए प्रयास कर रही है। इसीलिए पार्टी भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने जा रही है। राहुल गांधी तो लन्दन तक भारत की छवि को गलत रूप में प्रस्तुत कर चुके हैं। वहाँ उन्होने कहा था कि भारत में बारूद बिछा दी गई है, केवल एक चिंगारी लगाने की जरूरत है। राहुल का लन्दन में दिया गया बयान राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल था। ऐसा लग रहा था जैसे वह भारत की नहीं अफगानिस्तान सीरिया पाकिस्तान लेबनान आदि की बात कर रहे थे। इसके पहले यूपीए सरकार के मंत्रियों और कांग्रेस के दिग्गजों ने हिन्दू आतंकवाद का विषय उठाया था, तब इसका फायदा पाकिस्तान ने उठाया था। वह खुद आतंकवादी मुल्क है। आतंकवाद को वहाँ संरक्षण मिलता है। ऐसा देश भारत से हिन्दू आतंकवाद पर रोक लगाने की बात करने लगा था। यह भारतीय विदेश नीति की बड़ी विफलता थी।

सर्वाधिक दंगे कांग्रेस के शासन काल में हुए। आज उसके नेता कह रहे है कि नफरत को खत्म करने के लिए कांग्रेस जनता के बीच जा रही है। देश में धर्म के नाम पर लगातार नफरत की बातें की जा रही हैं। अगर सही समय पर इस माहौल को सुधारा नहीं गया तो देश में गृह युद्ध की स्थिति पैदा हो जाएगी। गहलोत ने कहा कि महात्मा गांधी के देश में नफरत की कोई जगह नहीं हैं। राहुल गांधी नफरत की दीवार तोड़ने के लिए और लोगों को एक करने के लिए आगे आए हैं। यह देश के लिए खुशी की बात है। राहुल ने नफरत के चलते अपने परिवार को खोया है। वह चाहते हैं कि नफरत के चलते देश बंटने न पाए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से नफरत के माहौल को खत्म करने का प्रयास कर रही है राहुल गांधी ने कहा कि नफरत और बंटवारे की राजनीति में उन्होंने अपने पिता को खो दिया। अब वह देश को खोना नहीं चाहते हैं। हमारा प्यार नफरत को जीत लेगा। यही आशा डर को हरा देगी। राहुल का यह कथन वर्तमान परिस्थियों पर लागू ही नहीं होता है। राजीव गांधी की हत्या श्री लंका के हिंसक लिट्टे संघर्ष के दौरान हुई थी। आज उसका संदर्भ देना निराधार है। वह देश को खोने की बात कर रहे है। यह कथन तो बहुत ही आपत्ति जनक है। भारत का अस्तित्व शाश्वत है। यूपीए सरकार ने तो भगवा आतंकवाद का निराधार आरोप गढ़ कर भारत की छवि को बिगाड़ने का कार्य किया था।

वही लोग अब भारत जोड़ने की बात कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल और केरल की राजनीतिक हिंसा पर मौन रहने वाले नफरत बढ़ने की बात कर रहे है। यह नहीं भूलना चाहिए कि यूपीए सरकार में यंत्रणा झेल रहे असीमानन्द को अंततः न्याय मिला था। राष्ट्रीय जांच एजेंसी की विशेष अदालत ने उन्हें रिहा कर दिया था। यह मसला पांच लोगों की रिहाई तक सीमित नहीं था। बल्कि इसके माध्यम से भगवा आतंकवाद शब्द भी निर्मूल साबित हुआ था। यह शब्द दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को अपमानित करने वाला था। इस मसले पर विस्फोट की घटना और उसके लिए कांग्रेस के नेताओं द्वारा इस्तेमाल किया गया शब्द दोनों गलत था। मक्का मस्जिद या समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट करने का अपराध जघन्य था। जिसने भी इसे अंजाम दिया, उसे कानूनी शिकंजे में लाने का पूरा प्रयास करना चाहिए था। लेकिन इस मसलों पर तत्कालीन यूपीए सरकार का नजरिया हैरान करने वाला था। यह लग ही नहीं रहा था कि तत्कालीन सरकार की वास्तविक अपराधी को पकड़ने में दिलचस्पी थी। वह तो भगवा या हिन्दू आतंकवाद के प्रचार में लगी थी। इस मसले और शब्द को इतना तूल दिया गया कि तहकीकात का वास्तविक मकसद पीछे छूट गया था। एक पल को मान भी लें कि इस बम ब्लास्ट में किसी हिन्दू का हाँथ था। फिर भी इस आधार पर भगवा आतंकवाद शब्द का प्रयोग आपत्तिजनक था।

दुनिया की सबसे प्राचीन इस सभ्यता के संदर्भ में आतंकवाद जैसा प्रयुक्त नहीं किया गया था। सभ्यताओं के टकराव में भी हिन्दू शामिल नहीं थे। इसमें तो वसुधा को कुटुंब माना गया। कभी तलवार के बल पर अपने मत के पचार का प्रयास नहीं किया। ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है। सभी पंथों के सम्मान का विचार केवल हिन्दू संस्कृति में ही है। इसमें परम् सत्ता तक पहुंचने के सभी मार्गो अर्थात उपासना पद्धति को सम्मान दिया गया। यह नहीं कहा गया कि हिन्दू  हिन्दू संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है। या ईश्वर तक पहुंचने का यही एक मार्ग है। सबके कल्याण की कामना की गई। सभी पंथ, उपासना पद्धति को अच्छा बताया गया। ऐसे चिंतन में कभी आतंकवाद पनप ही नही सकता। इसकी संभावना वही होती है, जो अन्य मजहबों के प्रति असहिष्णुता का विचार रखता है। आज दुनिया किस प्रकार के आतंकवाद से परेशान है, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। पाकिस्तान से लेकर सीरिया, लेबनान तक आतंकवाद का कहर है। अमेरिका और यूरोप के देश भी आतंकी हमला झेल चुके है। आज भी इन्हें अपने को आतंकी हमले से बचने के लिए विशेष सुरक्षा प्रयास करने पड़ रहे है। विश्व की प्रायः सभी बड़ी आतंकी घटनाओं को उठा कर देखिये, कही भी हिन्दू आतंकवाद शब्द नहीं मिलेगा। इस वैश्विक माहौल में कांग्रेस के दिग्गजों ने भगवा आतंकवाद शब्द का प्रयोग किया था।

यह बात किसी साधारण नेता ने कही होती तो इसे नजरअंदाज किया जा सकता था। लेकिन यह बात यूपीए सरकार के गृह मंत्री, वित्त मंत्री और कांग्रेस संघठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और महामंत्री जैसे लोगों के कही थी। इनमें से किसी के पास हिन्दू या भगवा आतंकवाद के कोई प्रमाण नहीं थी। यह शब्द गढ़ने वाले वही लोग थे, जो कहते रहे है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। हिन्दू आतंकवाद का झूठा शब्द गढ़ते समय इन्हें एक बार भी अपना कथन ध्यान नहीं आया कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। लेकिन कांग्रेस के दिग्गज इसे बार बार दोहराते रहे। उनका आकलन था कि इससे मजहब विशेष के लोग उनसे खुश होंगे। उनका वोटबैंक मजबूत होगा। इसके लिए इन्होंने भारतीय समाज और विदेशनीति दोनों का नुकसान किया था। हिन्दू आतंकवाद पर फोकस करने से वास्तविक अपराधी की ओर से ध्यान हट गया था। यूपीए सरकार के इस नजरिए का सर्वाधिक फायदा इन्हीं तत्वों ने उठाया था। विदेश नीति के अंतर्गत उस सरकार ने भारत वीरोधी तत्वों को हमले का अवसर दिया था। इससे सर्वाधिक खुशी पाकिस्तान को हुई थी। वह इस्लामी आतंकवाद को संरक्षण देने का आरोप झेल रहा था। प्रत्येक आतंकी घटना के तार किसी न किसी रूप में पाकिस्तान से जुड़े मिलते थे। वहां आतंकी संघठनो को खुली पनाह मिलती है। सेना आतंकियों को प्रशिक्षण देती है।

ऐसा पाकिस्तान उल्टा भारत पर आरोप लगाने लगा। पाकिस्तान जैसे आतंकी मुल्क को यह मौका यूपीए सरकार और कांग्रेस पार्टी ने दिया था। यूपीए की सरकार ने कई एजेंसियां से जांच कराई थी। अंत में राष्ट्रीय जांच एजेंसी को कार्य सौंपा गया। लेकिन हिन्दू आतंकवाद कहीं नजर नहीं आया था। कांग्रेस का सेक्यूलर चेहरा अवश्य बेनकाब हुआ। वोट बैंक की राजनीति के लिए ये किसी भी हद तक जा सकती है। चुनाव में कांग्रेस के नेता मंदिर मंदिर दौड़ते रहे। यह जनेऊधारी रूप था। पूर्वोत्तर राज्यों में चर्च का प्रभाव दिखा। कर्नाटक में वोट के लिए हिन्दू धर्म को ही विभाजित कर दिया। लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा दे दिया। यह कार्य भी लोगो को मूर्ख बनाने के लिए किया गया। पहला यह कि राज्य सरकार को ऐसा करने का कोई अधिकार ही नहीं था। दूसरा यह कि विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के कुछ दिन पहले इसका वैसे भी कोई महत्व नहीं था। लेकिन मसला फिर वही है। वोट के लिए कुछ भी किया जा सकता है। भगवा आतंकवाद शब्द का जबाब मतदाताओं ने दिया था। भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से कांग्रेस भारतीय चिंतन और संस्कृति को अपमानित कर रही है।

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