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Analysis

सर्कसी शेर की अब धुंधली याद ही है! न भालू रहा, न हाथी, बस घोड़ा बचा !

  तब तक टीवी ने हम लोगों की शाम को बख्श दिया था। ईजाद ही नहीं हुआ था। मोबाइल ने दिनरात हड़पे नहीं थे। वह भी नहीं बना था। उस दौर में वक्त खुद प्रतीक्षा करता था। शहर में सर्कस लगने की खबर आते ही, आग जैसी फैलती थी। परिवारों में तो खासकर। मगर अब […]

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