राजेश श्रीवास्तव
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दो दिन का भारत दौरा किया। यह दौरा दोनों देशों के संबंधों को मजबूत करने के लिहाज से बहुत अहम था। अब इस बात की चर्चा भी शुरू हो गयी है या यूं कहें कि बेहद गंभीरता से हो रही है और हिसाब-किताब भी बनाया जा रहा है कि आखिर इस दौरे से भारत को क्या फायदा हुआ। पुतिन के इस दौरे पर दुनियाभर की नजर टिकी हुई थी। ट्रंप के टैरिफ की धमकियों और रूस पर लगे प्रतिबंधों के बीच दोनों देशों के लिए यह दौरा कितना मायने रखता है? पुतिन के इस दौरे से दुनिया के वर्ल्ड ऑर्डर पर क्या असर पड़ सकता है? इन सवालों पर चर्चा जरूरी है। 2014 में जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने, तब से दुनियाभर के नेताओं से उनके रिश्ते अच्छे रहे हैं। रूस के साथ भारत का तो पुराना संबंध रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के बारे में रूस का यह कहना कि पीएम मोदी अगर हस्तक्षेप करेंगे तो यूक्रेन के साथ युद्ध रुक सकता है। वहीं, जेलेस्की का भी यही कहना कि पीएम मोदी के हस्तक्षेप से युद्ध रुक सकता है यह उनके स्वीकार्यता को बताता है। इस वक्त रूस का भारत आना प्रधानमंत्री मोदी के लिए बड़ी चुनौती होगी। दुनिया के तमाम देशों के रूस के खिलाफ खड़े होने के बाद भी भारत का पुतिन को बुलाना बड़ा कदम है। चार साल बाद वो लौटे हैं। भविष्य में क्या ऐसा कोई गठजोड़ बन सकता है जिसमें रूस चीन और भारत हों यह देखना होगा। इस दौरे का असर आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा।
पुतिन का जिस प्रकार स्वागत हुआ यह देखना होगा। इससे दुनिया को एक संदेश गया है। जिस प्रकार ट्रंप पिछले एक साल से भारत और प्रधानमंत्री मोदी के बारे में टिप्पणी कर रहे हैं। भारत को धमकियां दे रहे हैं। इन सबके बीच में जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन का स्वागत किया वो ‘सौ सुनार की एक लोहार की’ वाली कहावत को चरितार्थ करता है। इससे उन्होंने ट्रंप को सीधा संदेश दे दिया है। ट्रंप का स्वभाव पुराने समय में दुकान पर बैठने वाले सेठ की तरह जो ग्राहकों पर चिड़चिड़ाता था। उस सेठ को प्रधानमंत्री मोदी ने जवाब दे दिया है। आर्थिक और समारिक दोनों दृष्टि से रूस और भारत के रिश्ते पांच दशक से ज्यादा पुराने हैं। दोनों के रिश्ते में जो मजबूती है वो अमेरिका को खल रही है। इससे भारत रूस और रूस के माध्यम से चीन भी भारत के करीब आ गया है। पिछले चार दशक से हमारे रिश्ते अमेरिका से बेहतर हो रहे थे, लेकिन ट्रंप ने आकर उसे झटका दिया है। भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के निर्माण में रूस का योगदान अतुलनीय रहा है। रूस अगर साथ में है तो कहीं न कहीं हम चीन को न्यूट्रलाइज कर सकते हैं। और अगर चीन न्यूट्रलाइज हुआ तो पाकिस्तान भी न्यूट्रलाइज होगा। मुझे लगता है कि कूटनीतिक दृष्टि से, रक्षा संबंधों की दृष्टि से यह दौरा के बड़ी उपलब्धि साबित होगा। भारत और रूस के बीच संबंधों की कहानी केवल कूटनीति या व्यापार का अध्याय नहीं, बल्कि विश्वास, निरंतरता और रणनीतिक दूर दृष्टि की एक अनूठी गाथा है। बदलते वैश्विक समीकरणों, महाशक्तियों के बीच तनाव और क्षेत्रीय अस्थिरताओं के बावजूद यह साझेदारी समय की कसौटी पर खरी उतरी है। 2025 का वर्ष इस संबंध का नया स्वर्ण अध्याय लेकर आया है, जिसमें रक्षा सहयोग सबसे मजबूत स्तंभ के रूप में उभर रहा है।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के दौरे से भारत और रूस के संबंधों की गर्मजोशी दिखाई दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ख़ुद एयरपोर्ट पहुंचकर उनका स्वागत किया, फिर अगली सुबह पुतिन का राष्ट्रपति भवन में औपचारिक भव्य स्वागत हुआ। यानी हर तरह से भारत की ओर से ये संकेत साफ़ तौर पर दिया जा रहा था कि ये दोस्ती ख़ास है। दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ा है। प्रतिबंधों के बावजूद भारत का रूस से कच्चा तेल ख़रीदना जारी है, भारतीय सेना आज भी रूस से मिले हथियारों पर भरोसा करती है। इससे पहले पुतिन करीब चार साल पहले भारत आए थे। मगर तब से अब तक बहुत कुछ बदल गया है। रूस-यूक्रेन युद्ध जारी है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बने, भारत-अमेरिका रिश्तों में तनाव है और रूस-चीन करीब आ गए हैं। पश्चिमी देश रूस को अलग-थलग करने में लगे हैं, तब भारत उसके साथ और क़रीब खड़ा है, ये यात्रा बेहद अहम है।
रूस के नज़रिए से यह दौरा बेहद सकारात्मक है और भारत ने व्लादिमीर पुतिन को वह सम्मान दिया है जो उन्हें दुनिया में और कहीं मिलना मुश्किल है। मैं तो यह भी कहूँगा कि डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए, क्योंकि भारत और रूस जिस तरह एक-दूसरे के क़रीब आए, वह उनकी वजह से ही हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी और भारत के साथ जैसा व्यवहार किया, उसके प्रति एक तरह की नाराज़गी हम सबके बीच है इसीलिए रूस के राष्ट्रपति पुतिन को भारतवासी ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। जब अमेरिका ने टैरिफ़ पर पीएम नरेंद्र मोदी को बुली करना शुरू किया और इसके बाद भारत को ज़बरदस्ती किनारे लगाना शुरू किया, उसी दिन से पीएम मोदी ने भू-राजनीति की लगाम अपने हाथ में ले ली और नए ग्लोबल इकोनॉमिक चेस गेम की शुरुआत कर दी थी। आज एक तरफ़ पीएम नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति मिल रहे हैं और दूसरी ओर से फ़्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिग बीजिग में मिल रहे हैं। इस बीच में क्रिसमस पार्टियों में व्यस्त है। लेकिन पुतिन और मोदी की दोस्ती से अमेरिका और पाकिस्तान भी सदमें में हैं। हालांकि रूस भारत का कोई नया दोस्त नहीं है। वह शुरू से ही भारत के अच्छे मित्रों की सूची में शुमार है।
