Ramotsava Exclusive : गुप्तेश्वर, यहां भगवान राम ने बिताया था चातुर्मास

लखनऊ। छत्तीसगढ़ और उड़ीसा प्रांत के मध्य बहने वाली शबरी (कोलाब) नदी किनारे गुप्तेश्वर धाम आस्था का बड़ा केंद्र है। महाशिवरात्रि पर लाखों की भीड़ यहां जुटती है। इस शिवालय के बगल में कारी गाय नामक प्राकृतिक गुफा है। चूना पत्थर से निर्मित यहां की संरचनाएं आगंतुकों को भाव विभोर करती है। गुफा के भीतर एक छोटा शिवलिंग भी है जिसके ऊपर लगातार चट्टानों से रिस कर दूधिया जल टपकता रहता है इसलिए इसे गाय की गुफा कहा जाता है। इन दिनों जगदलपुर से जैपुर होकर गुप्तेश्वर पहुंचा जा सकता है।

मंदिर का इतिहास

पौराणिक मान्यता है कि जब भस्मासुर भगवान शिव से मिले वरदान का परीक्षण करने शिव जी के ऊपर हाथ रखने का प्रयास किया तो महादेव इसी गुफा में छुप कर अपने ऊपर आए संकट को टाले थे। दूसरी मान्यता यह है कि भगवान राम वनवास के दौरान जब दंडकारण्य पहुंचे थे। उन्होंने गुप्तेश्वर की गुफा में ही अपना चातुर्मास व्यतीत किया था। जनश्रुति है कि भस्मासुर वाली घटना के बाद भगवान शिव इसी गुफा में रहते थे और शबरी नदी के किनारे टहलते थे। एक दिन शिकार करने आए आदिवासियों के झुंड के एक व्यक्ति ने उन्हें देख लिया। शिव जी ने उन्हें सचेत किया कि इस बात की जानकारी वह किसी को न दे, अगर उसने किसी को यह जानकारी दी तो उसका सर विखंडित हो जाएगा।

इस घटना के बाद वह आदिवासी खुश होकर “मैंने देखा पर बता नहीं सकता” यह कहते हुए गांव- गली में भटकने लगा। इस बात की जानकारी जैपुर महाराजा को मिली। उन्होंने आदिवासी को बुलाया और पूछा कि आपने क्या देखा और क्या बता नहीं सकते? राजा द्वारा नहीं बताने पर दंड दिए जाने की चेतावनी सुन आदिवासी ने शिव दर्शन के बात महाराजा को बतला दी। ऐसा करते ही आदिवासी का सर फट गया और उसकी मौत हो गई। राजा को अपने किए पर पछतावा हुआ और गु फा की तलाश में निकल पड़ा। वर्ष 1760 के आसपास उन्होंने इस गुफा की खोज की यह स्थल छत्तीसगढ़ और उड़ीसा की अमरनाथ गुफा के नाम से चर्चित है।

मंदिर की विशेषता

शबरी नदी किनारे एक छोटी पहाड़ी पर गुफा में प्राकृतिक शिवलिंग है इसकी ऊंचाई लगभग पांच फीट तथा गोलाई आठ फीट है 265 सीढ़ियां चढ़ने के बाद गुप्तेश्वर दर्शन होते हैं। गुफा के ठीक सामने नंदी की विशाल प्रतिमा है। वही दोनों तरफ श्रृंगी और भृंगी की प्रतिभाएं है। गुप्तेश्वर में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर तीन दिवसीय मेला आयोजित किया जाता है। बस्तर की तरफ से लोग गुप्तेश्वर पहुंच सके इसलिए वन विभाग द्वारा पथरीली शबरी नदी के लगभग 700 मीटर क्षेत्र में बांस की चटाई बिछाकर मार्ग सुलभ किया जाता है। गुप्तेश्वर के संदर्भ में कई उड़िया साहित्य उपलब्ध हैं।

त्रेता युग से आराधना

गुप्तेश्वर क्षेत्र का सर्वाधिक चर्चित शिवधाम है। त्रेता युग से यहां भोलेनाथ की पूजा हो रही है। कालांतर में यह गुफा सघन वन क्षेत्र और हिंसक वन्य प्राणियों की वजह से हजारों वर्षों तक श्रद्धालुओं से दूर रही। लगभग दो सौ चौसठ साल पहले गुफा की खोज के बाद भक्त लगातार यहां आ रहे हैं। श्रावण मास में शबरी नदी के जल से भोलेनाथ का अभिषेक करने ओडिश, छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश से हजारों भक्त गुप्तेश्वर पहुंचते हैं।

– दीनबंधु महापात्र, पुजारी।

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