योगी की गोरखपुर यात्रा

डॉ दिलीप अग्निहोत्री


योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री पद के दायित्वों का कर्मयोगी की भांति निर्वाह करते हैं। गुरु पूर्णिमा पर उनकी गोरखपुर यात्रा में एक बार फिर उनकी यह चिर परिचित कार्यशैली दिखाई दी। गुरु पूर्णिमा पर उन्होंने गुरु गोरक्षनाथ एवं नाथपंथ के गुरुजन की विशिष्ट पूजा की। गुरु पूर्णिमा पूजन का अनुष्ठान सुबह पांच बजे से सात बजे तक चला। सामूहिक आरती के साथ अनुष्ठान की पूर्णता हुई। उन्होंने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच सभी गुरुओं और मंदिर परिसर के सभी देव विग्रहों के समक्ष विधि विधान के साथ पूजन किया। वह बाबा गंभीरनाथ, अपने दादागुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ और गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ समेत ब्रह्मलीन गुरुओं की समाधि पर गए। सभी का वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पूजन कर आशीर्वाद लिया।

गोरखनाथ मंदिर में नाथपंथ की विशिष्ट परंपरा के अनुसार मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ ने गुरु गोरखनाथ को रोट का महाप्रसाद अर्पित किया।  इस अवसर पर सभी नाथ योगियों ने भी गोरक्षपीठाधीश्वर का नाथ परम्परानुसार आशीर्वाद लिया। योगी आदित्यनाथ मंदिर की गोशाला भी गए। यहां उन्होंने गोवंश को उनके नाम से पुकारा और उनके पास आने पर खूब दुलारा। अपने हाथों से उन्हें गुड़ खिलाया। योगी आदित्यनाथ गोरखपुर यात्रा इस गुरु पूर्णिमा अनुष्ठान तक सीमित नहीं थी। इसमें मुख्यमंत्री पद के संवैधानिक दायित्व भी शामिल थे। उन्होंने गोरखपुर पोस्ट मास्टर जनरल कार्यालय भवन और आरोग्य मंदिर उप डाकघर के शिलान्यास और पार्सल हब एवं नोडल डिलीवरी सेंटर का लोकार्पण किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नए भारत की नई तस्वीर डाक सेवाओं के क्षेत्र में भी दिखती है। एक समय जब संचार क्षेत्र में डिजिटल क्रांति आई तो लगता था डाक सेवाएं बंद हो जाएंगी। पीएम मोदी के नेतृत्व में डाक सेवाएं भी डिजिटल क्रांति से जुड़े और अपनी सेवाओं को नया आयाम भी दिया। जब सुदूर क्षेत्रो तक कोई आवागमन के साधन नहीं होते थे, तब भी डाकिए गांव गांव पैदल पहुंचकर चिट्ठी, मनी ऑर्डर आदि उपलब्ध कराते थे। आज बैंकिंग व बीमा सेवाओं से जुड़कर डाक विभाग के नए स्वरूप का दर्शन हो रहा है। स्मृति डाक टिकटों के माध्यम से डाक विभाग ने अतीत को वर्तमान से जुड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। कोरोना संकटकाल में डाक विभाग की सेवाएं अति सराहनीय रही हैं। संकट का साथी विश्वसनीय साथी होता है और कोरोना के समय डाक विभाग ने संकट के साथी की ही भूमिका निभाई। जब सारी व्यवस्थाएं ठपप्राय थीं, तब डाकियों ने गांव-गांव जाकर लोगों को उनके अपनों द्वारा भेजी गई धनराशि उपलब्ध कराई।

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