बाराबंकी। आचार्य शिव मोहन महाराज अपने भक्तों को इस तरह बताते हैं कि माता दुर्गा प्रतिस्वरुप जगतजननी
पराम्बा ब्रह्मण्ड को उतपन्न करने के कारण माता का नाम कूष्माण्डा पड़ा जब श्रष्टि नही था। तब देवी ने अपनी माया से ही रचना की नवरात्रि के दिनों में चतुर्थ दिन माता का पूजन धूप दीप नैवेद्य एवं लाल पुष्प चढ़ाए माता कुष्मांडा को पुआ का भोग लगाएं सभी सनातनियो को विधि विधान माता जी का पूजन व्रत जप नियम पूर्वक करने से सभी प्रकार की कामना पूर्ण करती है था। बल बुद्धि तेज प्रकट करती है। माता कुष्मांडा का अर्थ कुछ विद्वानों द्वारा भी माता को कुम्भडे की बलि अति प्रिये है। जिससे माता प्रसन्न होकर सभी भक्तो को आशीर्वाद प्रदान करती है।
कोई भी मनुष्य किसी प्रकार के दुख से रोग से अथवा जंगल मे हिंसक द्वारा फस जाने से माता के नामो का जप कर ध्यान कर सभी प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। प्रातः सभी सनातनियो को अपने धर्म से पूर्ण विस्वासात्मक दुर्गा पाठ पूजन अर्चन करने से मनुष्य के शरीर मे एक नही ऊर्जा का संचार बनता है, एवं सुख शांति प्रप्त होती है। देवी का वाहन सिंह माता कुष्मांडा हाथों में अस्त्र शस्त्र से विभूषित रहती है। हर पल भक्तो को आशीर्वाद प्रदान करती है। देवी का चमकता हुवा सौंदर्य सूर्य के ताप को भी अपने प्रभाव से व्यप्त करने की पूर्ण प्रभाव रखती है। शरीर की कांति सूर्य के समान ही देदीप्यमान रहती है। श्रद्धालु भक्त माता कुसमन्डा की जोती जलाए कर पुष्पो की माला पान का वीरा चढ़ाने से मां अति प्रसन्न रहती है।