समझने की कोशिश में जुटा नेपाल, बड़े देशों से क्यों मिल रही है इतनी अहमियत

उमेश तिवारी

काठमांडू/नेपाल। हाल के हफ्तों में अमेरिका के तीन बड़े अधिकारियों ने नेपाल की यात्रा की। इसी बीच भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा भी दो दिन की यात्रा पर नेपाल आए। इन यात्राओं को लेकर यहां कूटनीतिक और राजनीतिक हलकों में गरमागर्म चर्चा जारी है। अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में अचानक नेपाल को मिल रही असाधारण अहमियत के कारणों को समझने की यहां कोशिश की जा रही है। अमेरिका की विदेश उप मंत्री विक्टोरिया नुलैंड, यूएसएड की प्रमुख समांत पावर और अमेरिकी विदेश मंत्रालय में दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों की प्रभारी आफरीन अख्तर ने तीन हफ्तों के अंदर नेपाल का दौरा किया है। अख्तर इसी बुधवार को दो दिन रहने के बाद यहां से रवाना हुई हैं।

नेपाल के विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस बारे में कहा है- ‘अमेरिकी अधिकारियों ने खुद हमसे उन्हें आमंत्रित करने को कहा। हमने आमंत्रण नहीं भेजा था। वे अपनी सुविधा से यहां आए और अपनी चिंताओं और शिकायतों की जानकारी हमें दी।’ अखबार काठमांडू पोस्ट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां सरकारी अधिकारियों के साथ अपनी बैठक के दौरान अमेरिकी अधिकारियों ने पूछा कि नेपाल अमेरिका के स्टेट पार्टनरशिप प्रोग्राम (एसपीपी) में शामिल क्यों नहीं हुआ। एसपीपी में शामिल ना होने का फैसला पूर्व की शेर बहादुर देउबा सरकार के समय किया गया था। इसके अलावा अमेरिकी अधिकारियों ने परोक्ष रूप से चीन को लेकर आगाह भी किया।

नुलैंड ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि नेपाल को पड़ोसी देशों से संबंध बनाते वक्त अपनी संप्रभुता की रक्षा करनी चाहिए। साफ तौर पर उनका इशारा चीन की तरफ था। इसके अलावा अमेरिकी अधिकारियों ने यूक्रेन युद्ध समेत कई अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर नेपाल का समर्थन मांगा। इस बारे में नेपाल के अधिकारियों ने मीडिया से कहा है कि संयुक्त राष्ट्र में लाए जाने वाले प्रस्तावों आदि जैसे मसलों पर किसका समर्थन या विरोध किया जाए, इस बारे में फैसला नेपाल अपनी कसौटियों के आधार पर करता है। इस बीच ऐसे संकेत हैं कि जल्द ही अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में दक्षिण एशिया मामलों के वरिष्ठ निदेशक रियर एडमिरल एलीन लौबेचर भी नेपाल आएंगे। नेपाल के कूटनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक नेपाल में नई सरकार बनने के कारण अमेरिकी अधिकारी लगातार काठमांडू की यात्रा कर रहे हैं।

पूर्व राजदूत अर्जुन कार्की ने कहा है- ‘आम चिंताएं जताने के अलावा अमेरिका लोकतंत्र, मानव अधिकारों, शरणार्थी अधिकारों आदि को लेकर भी आवाज उठाता रहा है। साथ ही वह नेपाल में राजतंत्र के बाद लंबी खिंच रही न्याय प्रक्रिया और अमेरिकी सहायता से चलने वाली परियोजनाओं को समय पर पूरा करने लेकर भी चिंतित रहा है। अमेरिका जानना चाहता है कि नेपाल की नई सरकार कैसी नीति अपनाएगी।’ विदेश नीति के विशेषज्ञ टीकाकार चंद्र देव भट्ट ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा कि अमेरिकी अधिकारियों की यात्रा का कारण इस क्षेत्र में बढ़ी भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा है। इसके बीच यहां सरकार बदलने के कारण उनका ध्यान यहां टिका हुआ है। उन्होंने कहा- ‘सरकार बदलने के कारण हमारे विदेशी दोस्तों और निवेशकों में जिज्ञासा पैदा हुई है। अपने हितों की रक्षा के लिए उन्होंने यहां संपर्क बढ़ाया है।

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