भ्रष्ट वर्दीधारियों की हकीकत: दामन पर दाग, इतनी सख्ती के बावजूद नहीं सुधर रहे पुलिसकर्मी

  • पिछली घटनाओं की तरह एक बार फिर पांच खाकी वर्दी वालों का चेहरा हुआ बेनकाब
  • झूठा मुकदमा लादकर चार बेगुनाहों को भेजा था सलाखों के पीछे
  • एंटी-करप्शन टीम ने जांच की तो सच हुआ उजागर, अब खाएंगे जेल की हवा

ए अहमद सौदागर

लखनऊ। कानून-व्यवस्था और लोगों की सुरक्षा के मसले पर चौतरफा घिरे जिम्मेदार अफसरों द्वारा हर दिन नए-नए फरमान जारी कर रहे हैं, विभाग में तैनात कुछ पुलिसकर्मी सुधरने के बजाए बिगाड़ रहे माहौल। जिन पर सेवा, सुरक्षा और सहयोग की सर्वाधिक जिम्मेदारी है वही पुलिस के आलाधिकारियों के निर्देशों पर खरे नहीं उतर रहें हैं। अक्सर लूट, डकैती, छेड़छाड़, चंद रुपयों के खातिर किसी को साजिश के तहत सलाखों के पीछे भेजना दागी पुलिसकर्मियों का नाम आ रहा है। सख्ती और कार्रवाई के बाद भी वे सबक नहीं ले रहे हैं। बंथरा और कृष्णा नगर में तैनात दरोगा संतोष कुमार, सिपाही घसीटे लाल सोनकर, भूपेंद्र सिंह, अवनीश कुमार और चालक प्रवीण यादव ये नाम नहीं बल्कि पुलिस विभाग के जवान हैं। इनकी तनख्वाह भी मतलब भर फिर भी इनके भीतर ऐसी बेइमानी का भूत सवार हुआ कि बीते साल 30 दिसंबर 2020 विशाल आयरन स्टोर में हुए कांड के मामले बंथरा निवासी विकास गुप्ता, दर्शन लाल, लालता सिंह, कौशलेंद्र व कल्लू गुप्ता को पकड़ कर 42 हजार रुपए की सरिया की बरामदगी दिखा सलाखों के पीछे भेज दिया था। यही नहीं जेब गरम होते ही आनन-फानन में चारों आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट भी लगा दी थी। चंद रुपयों के खातिर गुड वर्क करने वाले पुलिसकर्मियों के काले कारनामों की जांच शासन ने एंटीकरप्शन को सौंपी तो इन लालची पुलिसकर्मियों का चेहरा बेनकाब हो गया। इस मामले ने एक बार फिर पुराने जख्मों को ताजा कर दिया।

इससे पहले भी कई पुलिसकर्मी वर्दी के दामन पर दाग लगा चुके हैं,

वर्ष 2019  :  गोसाईगंज में कोयला व्यापारी के घर पुलिस ने डकैती डाली, दो दरोगा आशीष, पवन व सिपाही प्रदीप सहित चार गिरफ्तार हुए।

वर्ष 2021 :  गोरखपुर में कानपुर निवासी मनीष गुप्ता की हत्या कर दागी पुलिसकर्मियों ने लूटपाट की।

वर्ष 2018 : मड़ियांव में इंस्पेक्टर व दो दरोगाओं ने आगरा के सराफा कारोबारी विशाल जैन से चेकिंग के नाम पर लूट की।

वर्ष 2024 :  वाराणसी में दागी पुलिसकर्मियों ने चौक के सराफा व्यवसाई के दो कर्मचारियों से 42.50 लाख लूट की घटना को अंजाम देकर एक बार फिर पुलिस महकमे को शर्मसार किया।

यूपी में हुई उक्त घटनाओं से साफ है कि खाकी पुलिसिंग छोड़ हर फन में माहिर है। गोसाईगंज में कोयला व्यापारी के घर डकैती का मामला हो या वाराणसी में सराफा व्यवसाई से लाखों की हुई लूट ये कानून-व्यवस्था संभालने की जगह लूटने में जुटी हुई है। यह तो महज एक बानगी भर है इससे पहले भी कई बार दागी पुलिसकर्मियों की हरकतें खाकी को दागदार कर चुके हैं। दरअसल यूपी पुलिस और अपराध का नाता नया नहीं है। चंद दागी पुलिसकर्मियों के कारनामों की वजह से पूरे पुलिस महकमे पर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। कानून-व्यवस्था बनाए रखने और अपराध नियंत्रण की जिम्मेदारी भूल कर कुछ पुलिसकर्मी दूसरे कामों में रुचि ले रहे हैं।

बंथरा और कृष्णा नगर में तैनात रहे पुलिसकर्मियों की हरकत सामने आने के बाद एक बार फिर पुराने जख्मों को ताजा कर दिया है। हालांकि पुलिस के आलाधिकारियों ने दागी पुलिसकर्मियों को निलंबित करने के साथ विभागीय कार्रवाई भी की, लेकिन इसके बावजूद दागी पुलिसकर्मी खाकी वर्दी पर दाग लगाने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। यही नहीं लखनऊ का श्रवण साहू हत्याकांड में आरक्षी धीरेन्द्र यादव व अनिल सिंह सिंह अन्य दागी पुलिसकर्मियों ने पुलिस महकमे को बदनाम किया था। हालांकि तत्कालीन एसएसपी ने सभी दागी पुलिसकर्मियों को बर्खास्त कर दिया था। यही नहीं गौर करें तो वर्ष 2006 में गोमतीनगर से प्रापर्टी डीलर लोकनाथ के अपहरण में एक पुलिस अधिकारी तक की भूमिका सामने आई थी। सीओ की गर्दन फंसते देख महकमे की इज्जत दांव पर लगी तो आनन-फानन में एक अपराधी को मुठभेड़ में ठिकाने लगा कर मामला रफा-दफा कर दिया। सवाल है कि पुलिस महकमे में कुछ दागी पुलिसकर्मी बहुत पहले से बदनाम करते चले आ रहे हैं। पुलिस महकमे में निचले स्तर के पुलिसकर्मियों में पनप रही अपराधिक प्रवृति के लिए बड़े अफसर भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। इस मामले जब भी किसी जिम्मेदार पुलिस के आलाधिकारी से बात की जाती है तो बस उनका एक ही जवाब होता है कि कानून-व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।

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