महालया को देवी की निकलेगी पालकी

 

 

  • आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नौ दिन देवी के नौ रूपो की उपासना
  • सती के अंग जहा़ गिरे वहां बने शक्तिपीठ
  •  शक्ति उपासना से जगती है दिव्य शक्तियां
    बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
    आश्विन कृष्ण अमावस्या (महालया के दिन)को मां गौरी कैलाश पर्वत से अपने मायके जाती हैं,हर साल महालय से जाते समय कभी पालकी से तो कभी नौका पर सवार होकर कभी घोड़ा तो कभी हाथी पर सवार होकर आती है। नौ दिन की यात्रा मे देवी के नौ स्वरुप होते हैं,जो नव दुर्गा कहलाते हैं। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक शैलपुत्री,ब्रह्मचारिणी,चंद्रघंटा,कुष्मांडा,स्कंद माता,कात्यायनी,कालरात्रि,महागौरी,सिद्धिदात्री का उनका स्वरूप होता है‌‌। समस्त दैवता,ऋषि मुनि,मानव उनकी पूजा अर्चना करते हुए,उनकी कृपा की अभिलाषा करते हैं। विजय दशमी को उनके दिव्य अस्त्र शस्त्र की पूजा होती है। उसी दिन राजा लोग अपनी विजय यात्रा निकलते रहै‌।

माता सती के समस्त अंग जहां गिरे शक्तिपीठ के रूप मे पूजित

जगत का कल्याण करने वाले आदिदेव महादेव की भार्या सती थीं। जब वे अपने पिता दक्ष प्रजापति के घर होने वाले यज्ञ मे शामिल होने गईं। तो सभी देवाताओं के आसन दिखे। शिव के लिए कोई स्थान नहीं था। इस पर वे अपने पिता पर कुपित होगई और यज्ञ स्थल पर ही योगाग्नि मे अपने को जला डाला। सुन कर शिव बहुत क्रोधित हुए। उनकी जटायें खुल गईं। एक बाल तोड़ कर पटक दिया तो वीरभद्र प्रकट होगया‌। उन्होंने दक्षयज्ञ को नष्ट करने का आदेश दिया। यज्ञ का तो उसी समय विध्वंस होगया था,जब देवी सती जल गई थी। वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट कर यज्ञ कुंड मे डाल दी, दांत दिखा कर हंस रहै पूषा के दांत तोड़ दिये भृगु महाराज की दाढ़ी नोच ली। दक्ष पत्नी विलाप करने लगी चारो तरफ हाहाकार मच गया‌। दक्ष पत्नी की करुण प्रार्थना सुन कर शिव प्रकट हुए।

दक्ष के धड़ पर यज्ञ पशु के रूप मे बंधे बकरे का सिर काट कर लगा दिया और उन्हें जीवित कर दिया‌। सती का शव देख शिव पुन: क्रोधित होगए‌ अधजले शरीर को दोनों हाथो से उठा कर तांडव नृत्य करने लगे‌। समुद्र मे ज्वार उठने लगा, घनघोर आंधियां चलने लगी.. ब्रह्मांड मे उथल पुथल मच गया‌‌ क्रोध शांत न होता देख श्री हरि ने सुदर्शन चक्र से अंग काट कर गिरा दिए‌,जहां जहा देवी के अंग गिरे वहां वहां शक्ति पीठ बन गया। कुल 51जगह उनके अंग व वस्त्र गिरे। इस तरह नारी का हर अंग पूजनीय होगया। शिव ने देवी के शक्ति स्वरुप को विश्व व्यापी बना दिया।

शारदीय नवरात्र मे देवी का वाहन

शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे।
गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥ (देवीभाग्वत पुराण)
इस श्लोक के अनुसार- सप्ताह के सातों दिनों के अनुसार देवी के आगमन का अलग-अलग वाहन बताया गया है. इसके अनुसार, नवरात्रि का आरंभ सोमवार या रविवार से हो तो मां हाथी पर आती हैं. शनिवार और मंगलवार से हो तो मां अश्व यानी घोड़े पर आती है. गुरुवार और शुक्रवार के दिन से नवरात्रि की शुरुआत होने पर माता रानी डोली या पालकी पर आती हैं. वहीं बुधवार के दिन से नवरात्रि की शुरुआत होने पर मां दुर्गा का वाहन नाव होता है.
अलग-अलग वाहन का क्या है संकेत
पालकी पर आना: शुभ संकेत नहीं

घोड़े पर आना: शुभ संकेत नहीं

हाथी पर आना: बहुत शुभ

नाव पर आना: बहुत शुभ

homeslider Religion

बत्तीसी पूर्णिमा व्रत: सुख-समृद्धि और मोक्ष का दुर्लभ अवसर

राजेन्द्र गुप्ता मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा सनातन धर्म में सर्वोत्तम पूर्णिमा मानी जाती है। भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में स्वयं कहा है – “मासानां मार्गशीर्षोऽहम्”। इसी पावन तिथि से शुरू होने वाला 32 पूर्णिमाओं का अनुष्ठान “बत्तीसी पूर्णिमा व्रत” कहलाता है। इस वर्ष यह शुभारंभ 4 दिसंबर 2025 को हो रहा है। बत्तीसी पूर्णिमा व्रत […]

Read More
homeslider Religion

पिशाचमोचन श्राद्ध: प्रेतयोनि से मुक्ति का पावन अवसर

राजेन्द्र गुप्ता हिंदू धर्म में पितरों की शांति और उनकी सद्गति के लिए कई विशेष श्राद्ध तिथियाँ निर्धारित हैं। इन्हीं में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि है पिशाचमोचन श्राद्ध। यह श्राद्ध मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह पवित्र तिथि 3 दिसंबर, बुधवार को है। खास तौर […]

Read More
homeslider Religion

मत्स्य द्वादशी आज है जानिए पूजा विधि और शुभ तिथि व महत्व

राजेन्द्र गुप्ता मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष के द्वादशी को मनाया जाने वाला यह मत्स्य द्वादशी का पर्व अत्यंत पावन माना जाता है इस दिन श्रद्धापूर्वक पूजा करने से घर परिवार में सुख शांति आती है और संकट दूर होते हैंकहा जाता है कि भगवान विष्णु मत्स्य का रूप धारण करके दैत्य हयग्रीव से चारों […]

Read More