भारत का एक ऐसा शहर जहां धान की झालरों से की जाती है लक्ष्मी की अगवानी

जगदलपुर से हेमंत कश्यप की रिपोर्ट

दीपावली के अवसर पर मां लक्ष्मी का स्वागत करने लोग धान की बालियों से तैयार किया गया झालर तोरण के रूप में अपने द्वार में सजाते हैं। धान झालर को समृद्धि का प्रतीक के अलावा पुण्य प्राप्त करने का माध्यम भी माना जाता है। दीपावली के अवसर पर शहर में धान झालर का बाजार सजा हुआ है। प्रति दिन सैंकड़ों झालर की बिक्री हो रही है। डिमांड को देखते हुए उड़ीसा के धान शिल्पी भी झालर बना तथा कार में रख इन्हे बेचने शहर पहुंचे हैं। हर साल धान कटाई के समय धान के बालियों से झालर तैयार किया जाता है। इसे पवित्र और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

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इसलिए बाजारों में भी इसे बेचने लाया जाता है। बस्तर और सीमावर्ती ओडिशा के सैकड़ों ग्रामीण गुरुमुखिया धान की बालियों के विभिन्न प्रकार का झालर बनाकर बेचते हैं। पुण्य प्राप्ति काआधार भी दीपावली के अवसर पर बांधा गया धान का यह झालर पूर्ण कमाने का आधार भी माना जाता है। बताया गया था धान की फसल समेटने के बाद गौरैय्या जैसी छोटे पक्षियों का दाना खेतों में नहीं रह जाता, इसलिए सेवा भाव से लोग दीपावली के दिन अपने घरों में इसे बांध अन्नपूर्णा का आव्हान करते हैं। लोक मान्यता है कि देवी देवता परिंदों के रूप में उनके घर आ अन्न ग्रहण करते हैं और तृप्त होकर अपना आशीर्वाद देते हैं।

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बाहर के लोग लेकर जाते हैं इसे

बस्तर के विभिन्न शासकीय तथा गैर सरकारी संस्थाओं के बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ के मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोग अपनी सेवाएं दे रहे हैं, और हर साल दीपावली मनाने अपने घर लौटते समय वस्तरिया धान झालर, उमरकोटिया दीया और टोरा तेल ले जाना नहीं भूलते।

 

 

 

 

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