ह्रीं कारी प्रतिपालिका~महागौरी उपासना

  • महागौरीति चाष्टमम्
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

शरीर मे ताकत हो,तो संसार के कार्य सधते हैं..साथ ही अध्यात्म भी सध जाता है। यदि शक्ति हीन होगए तो अपना शरीर संभालना कठिन है,दूसरे की सेवा क्या करेंगे। शरीर मे जड तक जिये शक्ति होना जरुरी है‌। इसलिए शक्ति को देवी भताते हुए उसकी आराधना की जाती है‌। हर छ: माह बाद नवरात्र के नौदिन शक्ति उपासना का विशेष समय निर्धारित किया गया। ऋतु परिवर्तन का शरीर ,मन बुद्धि पर भी असर होता है। अत: चैत्र मास मे बासंतीय नवरात्र और आश्विन मे शारदीय नवरात्र के रूप में शक्ति उपासना की जाती है। हमारे पूर्वज ऋषियों ने सूक्ष्माति सूक्ष्म चिंतन कर व्रत,उपासना आदि को जीवन शैली मे ढाल दिया.. पर्व और उत्सव बना दिए। नवरात्र के आठवें दिन देवी के महागौरी स्वरूप की वंदना और आराधना है। देवी सीता और देवी रुक्मिणी नित्य गोरी पूजन को जाती रहीं..इसका पुराणो मे उल्लेख है।

पति देवता सुतीय मन मातु प्रथम तव रेख।

महिमा अमित न जाय कहि,सहस सारदा सेष।।

मां गौरी शांत मन से अपने स्वामी और चराचर जगत के कल्याण कर्ता शिव की प्रिया है। जिनकी आराधना कर कुंवारी कन्यायें उत्तम वर प्राप्त करती हैं,एक सुंदर गृहस्थी सजाती हैं और पुरुष समाज को जीवन मे सुख और शांति मिलती है। एक गृहस्थ की सुंदर गृहस्थी तब सजती है। जब उत्तम संतान हो आदर्श जीवन शैली है। इसके लिए गृहस्थ जीवन में प्रत्येक स्त्री- पुरुष.. को शक्ति की आराधना (महागौरी की उपासना)आवश्यक है।धरती उत्तम होगी तो बीज डालने पर फसल भी अच्छी होती है। श्रेष्ठ माता पिता की संताने महापुरुष होती है, जिनसे सदा लोक कल्याण होता है।

” पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीं।
तारिणीं दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम्।।”

महागौरी प्रतिपालिका शक्ति होने से इनका बीज अक्षर ‘ह्रीं’ कहा गया। माता का शांत गरिमायुक्त स्वरुप है। जो हर जीव जगत का पोषण करती है।

आठवें दिन की महादेवी-महागौरी
“माहेश्वरी वृषारुढा: कौमारी शिखिवाहना।

श्वेतरूप धरा देवी ईश्वरी वृष वाहना।।”
मां महागौरी बीज मंत्र- श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।

माँ महागौर्ये नमो नम:।

श्वेते वृषे समारुढ़ा, श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया।।

आज अष्टम नवरात्र में “महागौरी” यानि देवी मां गौरी को जो भगवान शिव की अर्धांगनी और गणेश जी की माता हैं, की पूजा की जाती है। माँ का यह रूप श्वेतांबर, शांत, करुणामय, सात्विक भावमय है।

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