दो टूक : खटाई में पड़ेगा इंडिया गठबंधन

राजेश श्रीवास्तव

सपा प्रमुख अखिलेश यादव इन दिनों कांग्रेस से इतने नाराज हो गए कि उसे ‘धोखेबाज’ और उसके प्रदेश अध्यक्ष को ‘चिरकुट’ तक कह डाला। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और सपा की तल्खी से भाजपा विरोधी विपक्षी गठबंधन के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा? क्या लोकसभा चुनाव तक इंडिया गठबंधन एकजुट रह पाएगा? हालांकि शनिवार को गठबंधन को खतरे में पड़ता देख दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व ने आपस में बातचीत की उसके बाद अखिलेश ने अपने नेताओं को नसीहत दी कि कांग्रेस नेताओं के विरुद्ध कोई अनर्गल बयान न दें। इसके बाद सपा प्रवक्ताओं और नेताओं की ओर से एक्स पर अनर्गल बयानों के ट्वीट हटा लिये गये हैं। लेकिन यह समझने की जरूरत है कि क्या मध्य प्रदेश की लड़ाई क्या उत्तर प्रदेश की राजनीति पर असर डालेगी, क्या यह लोकसभा चुनाव के लिए परेशानी की शुरुआत है?

जैसा कि गठबंधन के गठन के समय लगता था कि ये दल बहुत गर्मजोशी से एकसाथ आ जाएंगे तो जमीन पर ऐसा नहीं दिख रहा है। जिनकी अपनी सीटों पर क्षेत्रीय ताकत है, उसे वो कैसे जाने दे सकते हैं? आगे क्या होगा, यह देखना होगा, लेकिन अभी तो यह परेशानी की शुरुआत दिखाई दे रही है। जो बात अखिलेश यादव ने कही है, अजय राय ने उसका जवाब दिया। यह संवाद व्यक्तिगत स्तर पर चला गया। यह अप्रिय स्थिति है, लेकिन मूल बात यह है कि क्या अखिलेश को लगता है कि उनके साथ धोखा हुआ है? अगर वो इस बात को समझ रहे हैं तो उन्हें इंडिया गंठबंधन को छोड़ देने का एलान कर देना चाहिए था, लेकिन वे ऐसा नहीं कह रहे हैं। जहां तक इंडिया गठबंधन की बात है तो वह भी एक तरह का स्वार्थ है क्योकि सबका दुश्मन एक ही है। यहां हमें यह भी समझना होगा कि दरअसल इस देश में विपक्ष का जन्म ही कांग्रेस के खिलाफ हुआ है, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। अब गैर कांग्रेस वाद बहुत पीछे चला गया है। अब लड़ाई गैर भाजपावाद की है। लेकिन अभी भी क्षेत्रीय दल अपनी जमीन पर कांग्रेस को खाद-पानी मुहैया नहीं कराना चाहते।

चाहे यूपी हो, पंजाब हो, दिल्ली हो, बिहार हो, पश्चिम बंगाल हो। इसीलिए गाहे-बगाहे इन सभी राज्यों के क्ष्ोत्रीय क्षत्रप कांग्रेस को कोसते रहते हैं। यह कांग्रेस का साथ केवल इसलिए दे रहे हैं क्योंकि इन सबके मुखिया भाजपा की जांच एजेंसियों से पीड़ित हैं और अकेले उनमें भाजपा से भिड़ने की कूबत नहीं है। लिहाजा यह मजबूरी और विवशताओं पर टिका हुआ गठबंधन है तो उसे गठबंधन नहीं कहते हैं। मजबूरियों का साथ कभी भी स्थाई नहीं होता है। इसमें तीन बातें निहित हैं। मध्य प्रदेश में भले ही समाजवादी सत्ता में नहीं रहे, लेकिन उनकी एक ताकत वहां रही है। कांग्रेस को यह समझना चाहिए। इन विधानसभा चुनावों से एक संदेश जाना चाहिए था। इस पर मुझे एक कविता याद आती है-‘इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो! जमीन है न बोलती न आसमान बोलता, जहान देखकर मुझे नहीं जबान खोलता, नहीं जगह कहीं जहां न अजनबी गिना गया, कहां-कहां न फिर चुका दिमाग-दिल टटोलता, कहां मनुष्य है कि जो उमीद छोड़कर जिया, इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो।’

दरअसल सभी क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस की ही जमीन ली है। 1993 में जब मुलायम सिह को सरकार बनाने के लिए सीटें कम पड़ रहीं थीं, तब कांग्रेस ने समर्थन दिया था। उसी तरह सपा ने केंद्र में कांग्रेस को समर्थन दिया। दोनों एक दूसरे को स्पेस नहीं देना चाहते हैं। कांग्रेस के लोग मानते हैं कि अगर हमने मध्यप्रदेश में छह सीटें दे दीं और उनमें से तीन सपा जीत गई तो वो तीन कहां जाएंगे, यह कोई नहीं कह सकता है। इंडिया गठबंधन एक नेता के इर्दगिदã हुआ गठबंधन नहीं है बल्कि यह नेताओं के बीच हुआ गठबंधन है। यह अविश्वास हमेशा बना रहेगा। सही पूछिये तो गठबंधन की कोई भी न्यूनतम शर्त यह गठबंधन पूरा नहीं करता है? 1975 के दौर की एकता अभी दिखाई नहीं देती है। जो बैठकें हो रही हैं, उससे ज्यादा तो शादियों में ये नेता मिलते हैं। रहीम ने कहा है कि कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग। वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग? कहने का मतलब है कि बेर और केर एक साथ हैं, जब भी हवा चलेगी तो डालियां लहराएंगी तो केले का पत्ता ही फटेगा। आप यूं देखिए कि कौन है, जो अपनी जमीन छोड़ना चाहता है। ऐसा कोई नहीं दिख रहा है। गैर कांग्रेसवाद से उपजी हुईं क्षेत्रीय पार्टियां कभी भी कांग्रेस को जमीन नहीं देंगी।

मैं हमेशा मानता हूं कि देश की जनता कम से कम केंद्र में तो पूर्ण जनादेश देना चाहती है। यह अंकड़े बताते हैं कि 1952 से अब तक समाजवाद के लिए सबसे बड़ा जो अवसर था, वह 195० के दशक का था। लेकिन 5० साल में वामपंथ और समाजवाद की विफलता की वजह से दक्षिणपंथी विचारधारा का पूरी दुनिया में विस्तार हुआ। कांग्रेस जानती है कि जनता को यह पता है कि देश का प्रधानमंत्री अगर भाजपा या कांग्रेस से होगा तो ही पांच साल की सरकार बनेगी। कांग्रेस जानती है कि वह तीन अंकों में नहीं गई तो उसके लिए नेतृत्व करना मुश्किल होगा। इसीलिए कांग्रेस बहुत ज्यादा क्षेत्रीय क्षत्रपों के आगे हाथ पसारने में असहज महसूस कर रही है।

Raj Dharm UP

कब होगा आईजी प्रिजन ऑफिस एसोसिएशन का चुनाव! पिछले सात साल से है लम्बित

कर्मचारियों की समस्याएं सुनने का मुख्यालय में नहीं कोई फोरम विभाग में कर्मचारियों की तानाशाही चरम पर, दबे कुचले कर्मियों का कोई पुरसाहाल नहीं राकेश यादव लखनऊ। कारागार मुख्यालय में आईजी प्रिजन ऑफिस एसोसिएशन का चुनाव पिछले सात साल से नहीं हुआ है। यह बात सुनने में भले अटपटी लगे लेकिन सच है। एसोसिएशन की […]

Read More
Raj Dharm UP

पर्चियां भेजकर जेलों से अफसर मंगा रहे बांसमती चावल!

खानपान की वस्तुओं के साथ मंगाई जा रही महंगी विलासिता की वस्तुएं आईजी जेल से हुई शिकायत से हुआ मामले का खुलासा राकेश यादव लखनऊ। कारागार मुख्यालय के उच्चाधिकारी जेल की सब्जी और दूध के साथ अब घरों के लिए होम एप्लायंस के साथ विलासिता की अन्य सामग्री भी मंगाने लगे हैं। इस गड़बड़ झाले […]

Read More
Raj Dharm UP

मुख्यमंत्री के मंसूबों पर पानी फेर रहे नौकरशाह!

गृह सचिव का आदेश के बाद भी प्रमुख सचिव कारागार ने नहीं की कोई कार्यवाही शासन-मुख्यालय ने दबाई 12 जेल अधीक्षकों के निलंबन की फाइल दंडित करने के बजाए शासन ने दी दोषियों को प्राइज पोस्टिंग राकेश यादव लखनऊ। प्रदेश के नौकरशाह मुख्यमंत्री के मंसूबों पर पानी फेर रहे हैं। उच्च स्तर के निर्देश पर […]

Read More