जीवितपुत्रिका व्रत आज है जानिए शुभ मूहूर्त  और पूजा विधि व कथा…

जयपुर से राजेंद्र गुप्ता 

जितिया व्रत में महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और पुत्र की लंबी आयु की कामना करती हैं। सप्तमी से शुरू होकर नवमी तिथि तक चलता है यह व्रत। हिंदू धर्म में संतान के लिए कई तरह के व्रत रखे जाते हैं जिनमें से एक है जितिया व्रत। इस व्रत को जीवितपुत्रिका व्रत और जिउतिया पर्व के नाम से भी जाना जाता है। जितिया व्रत नहाय खाय से शुरू होकर सप्तमी, आष्टमी और नवमी तक चलता है। जितिया व्रत मान्यतानुसार मां पुत्र प्राप्ति या पुत्र की लंबी आयु के लिए रखती हैं। यह निर्जला व्रत होता है जिसमें जल भी नहीं पिया जाता है।

जितिया व्रत की तारीख और शुभ मूहूर्त 

इस साल पांच अक्टूबर के दिन नहाय खाय है जिस चलते अगले दिन यानी छह अक्टूबर, शुक्रवार के दिन जितिया व्रत रखा जाएगा। इस व्रत का पारण अगले दिन सात अक्टूबर, सुबह 10 बजकर 23 मिनट पर किया जाना है।

व्रत की विधि : जितिया व्रत के दिन स्नान पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं। इस दिन भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। कुशा से बनी जीमूतवाहन भगवान की प्रतिमा के समक्ष धूप-दीप, चावल और पुष्ण अर्पित किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, व्रत में गाय के गोबर और मिट्टी से चील और सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है। पूजा करते हुए इनके माथे पर सिंदूर से टीका लगाते हैं और पूजा समाप्त होने के बाद जितिया व्रत की कथा सुनी जाती है।

शुक्रवार के दिन इन राशियों को मिल रहा है आर्थिक लाभ, जान आज का राशिफल

जितिया व्रत की कथा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार जितिया व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार जब महाभारत के युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मार दिया था तो श्रीकृष्ण ने अपनी शक्तियों से एकबार फिर उस संतान को जीवित कर दिया। जन्म के बाद इसी पुत्र का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया था। माना जाता है कि इसके बाद से ही जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत को रखने की परंपरा शुरू हुई थी।

एक और पौराणिक कथा 

कथा के अनुसार, एक बार एक गरुड़ और एक मादा लोमड़ी नर्मदा नदी के पास एक हिमालय के जंगल में रहते थे। दोनों ने कुछ महिलाओं को पूजा करते और उपवास करते देखा और खुद भी इसे देखने की कामना की। उनके उपवास के दौरान, लोमड़ी भूख के कारण बेहोश हो गई और चुपके से भोजन कर लिया। दूसरी ओर, चील ने पूरे समर्पण के साथ व्रत का पालन किया और उसे पूरा किया। परिणामस्वरूप लोमड़ी से पैदा हुए सभी बच्चे जन्म के कुछ दिन बाद ही खत्म हो गए और चील की संतान लंबी आयु के लिए धन्य हो गई। इस कथा के अनुसार जीमूतवाहन गंधर्व के बुद्धिमान और राजा थे। जीमूतवाहन शासक बनने से संतुष्ट नहीं थे और परिणामस्वरूप उन्होंने अपने भाइयों को अपने राज्य की सभी जिम्मेदारियां दीं और अपने पिता की सेवा के लिए जंगल में चले गए। एक दिन जंगल में भटकते हुए उन्‍हें एक बुढ़िया विलाप करती हुई मिलती है। उन्‍होंने बुढ़िया से रोने का कारण पूछा। इसपर उसने उसे बताया कि वह सांप (नागवंशी) के परिवार से है और उसका एक ही बेटा है। एक शपथ के रूप में हर दिन एक सांप पक्षीराज गरुड़ को चढ़ाया जाता है और उस दिन उसके बेटे का नंबर था। उसकी समस्या सुनने के बाद जिमूतवाहन ने उन्‍हें आश्‍वासन दिया कि वह उनके बेटे को जीवित वापस लेकर आएंगे। तब वह खुद गरुड़ का चारा बनने का विचार कर चट्टान पर लेट जाते हैं। तब गरुड़ आता है और अपनी अंगुलियों से लाल कपड़े से ढंके हुए जिमूतवाहन को पकड़कर चट्टान पर चढ़ जाता है। उसे हैरानी होती है कि जिसे उसने पकड़ा है वह कोई प्रति‍क्रिया क्‍यों नहीं दे रहा है। तब वह जिमूतवाहन से उनके बारे में पूछता है। तब गरुड़ जिमूतवाहन की वीरता और परोपकार से प्रसन्न होकर सांपों से कोई और बलिदान नहीं लेने का वादा करता है। मान्‍यता है कि तभी से ही संतान की लंबी उम्र और कल्‍याण के लिए जितिया व्रत मनाया जाता है।

 

Religion

कड़ा, ब्रेसलेट या लॉकेट पहनें सोच-समझकर, इससे हो सकता है नुकसान

यह रत्न कभी भी एक साथ धारण नहीं करना चाहिए ज्योतिषाचार्य उमाशंकर मिश्र आजकल हाथ में कड़ा पहनने के अलावा ब्रेसलेट आदि पहने का चलन भी हो चला है। कुछ लोग तो फैशन के चलते गले में ऐसी वस्तुएं या लॉकेट भी लटकाने लगे हैं जिनसे उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है, लेकिन फैशन […]

Read More
Religion

घर में घेर के आ रही हो परेशानी तो समझें यह विकार हो गया शुरू, जानें परेशानी की वजह, निशानी और उपाय

ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र ‘ शास्त्री’ अगर किसी की जन्म कुंडली में सूर्य, शनि साथ-साथ हों या आमने-सामने हों। अगर राहु किसी भी ग्रह के साथ हो तो उस ग्रह से जुड़ा पितृदोष बनता है। राहु सूर्य या गुरु के साथ हो तो प्रमुख पितृदोष बनता है। जन्म कुंडली के 2, 5, 9,या 12 में […]

Read More
Religion

क्या आप जानते हैं नवांश कुण्डली का महत्व और प्रभाव, यदि नहीं तो यह लेख जरूर पढ़ें…

देव नवांश, नर नवांश और राक्षस नवांश के नाम से जाने जाते हैं नवमांश यदि ग्रह अच्छी स्थिति या उच्च के हों तो वर्गोत्तम की स्थिति होती है उत्पन्न -राजेन्द्र गुप्ता, ज्योतिषी और हस्तरेखाविद वैदिक ज्योतिष में नवमांश कुण्डली को कुण्डली का पूरक माना गया है। यह एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कुण्डली मानी जाती है क्योंकि […]

Read More