कांची शंकराचार्य का पर्यावरण, शिक्षा, सीमा सुरक्षा पर ज़ोर!

के. विक्रम राव

अपने पूर्व के 69 शंकराचार्यों की आस्थावाली परंपरा को व्यापक तथा विस्तीर्ण बनाते हुये, 70वें जगद्गुरु कांची-कामकोटि के पीठाधिपति शंकर विजयेंद्र सरस्वती ने कश्मीर घाटी में शांति से लेकर पूर्वोत्तर सीमांत क्षेत्र अरुणाचल की सुरक्षा पर स्फुट विचार व्यक्त किये। अमूमन धर्मगुरु के प्रवचन से तात्पर्य केवल आध्यात्मिक चर्चा से ही होता है। मात्र जीवन तथा सदाचार से संबन्धित विषय पर ही। परंतु 57-वर्षीय जयेन्द्र सरस्वती महास्वामी ने अपने उद्बोधन में अतीत की रीतियों और परिपाटियों को वर्तमान की अपेक्षाओं एवं आकांक्षाओं से जोड़ा। विलक्षण जन सरोकार सर्जाया। उदाहरणार्थ शंकराचार्यजी का सुविचारित सुझाव है कि पूर्वोत्तर भारत में प्राचीन मंदिरों की सम्यक देखभाल हो ताकि सैन्यबल को भारत की सुरक्षा हेतु गहरी प्रेरणा मिलेगी। काशी नरेश चेतसिंह के गंगातटीय किले में आयोजित इस लंबे “मीडिया संवाद” (3 अगस्त 2023) में मुझे भी भागीदारी का अवसर मिला। मेरा आग्रह रहा कि राष्ट्र के एकसूत्रीकरण को गतिमान बनाया जाए।

कश्मीर के बारे में जगद्गुरु ने स्पष्टतया बताया कि इस पुरातन पुण्यक्षेत्र का आदि शंकराचार्य से नाता रहा। वे इस हिमालयी घाटी में गए थे। आदि शंकराचार्य (ज्येष्ठेश्वर) मंदिर कश्मीर के (श्रीनगर में) जबरवान रेंज पर्वतमाला पर भगवान शिव को समर्पित है। यह घाटीतल से 300 मीटर की ऊंचाई पर है। श्रीनगर शहर को देखता है। इसका सबसे पहला ऐतिहासिक संदर्भ कवि कल्हण से मिलता है, जिन्होंने इसे “गोपाद्रि” कहा। हेराथ जैसे त्योहार इस क्षेत्र में महाशिवरात्रि के नाम से जाने जाते हैं। इस मंदिर के दर्शन आदि शंकराचार्य ने किए थे। अतः मंदिर और पहाड़ी का नाम शंकराचार्य पड़ा। यहीं पर साहित्यिक कृति “सौंदर्य लहरी” की रचना उन्होंने की थी। उस समय इस क्षेत्र में शक्ति की प्रमुख आस्था स्वीकार हुई थी। शक्तिवाद की तरह शिव और शक्ति का मिलन श्रीयंत्र के प्रतीकवाद में बदल गया था।

शिवशक्ति के प्रतीक स्वामी विजयेंद्र सरस्वती का बालक की अवस्था में ही अतींद्रियदर्शी किशोर के रूप में विकास हुआ था। आठ वर्ष की आयु में ही उन्होंने वेद पाठशाला में अध्ययन किया। वेद, उपनिषद आदि का ज्ञान पाया। वे जब केवल तेरह वर्ष के थे तो एक समागम में शामिल हुये। जहां उन्होंने पाठ में एक त्रुटि बता दी। शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती इस किशोर से अत्यधिक प्रभावित हुए। उन्होंने महापेरियार शंकराचार्य चंद्रशेखेरेंद्र की अनुमति से बालक विजयेंद्र को शिष्य बना लिया। संस्कृत और तमिल के ज्ञाता इस तेलुगूभाषी किशोर ने फिर क्रमशः शास्त्र, उपनिषद, मीमांसा आदि चिंतन क्षेत्र में नैपुण्य प्राप्त किया। आध्यात्म तथा मठ की अन्य कार्यक्रमों में पारंगत हुये। धर्म-कर्म के साथ लोकहितकारी योजनाएं जैसे जनस्वास्थ्य, बुनियादी शिक्षा, धर्म केंद्रों की स्थापना आदि में जुट गए।

एकदा वे मानवकृत दुर्घटना के शिकार भी हुए। एक शासकीय समारोह में तमिलनाडु के राज्यपाल भी थे। तमिल-संस्कृत शब्दकोश का विमोचन हो रहा था। तमिल प्रदेशगान गाया गया। तब विजयेंद्र सरस्वती ध्यानमग्न थे। (वीडियो में दिख रहा था) मगर तुरंत बाद जब राष्ट्रगान “जन गण मन” गाया गया तो वे खड़े हो गए थे। कुछ राजनेताओं ने शंकराचार्य विजयेन्द्र सरस्वती पर तमिल गान  के अपमान का मुकदमा दायर कर दिया। पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की। मगर मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जी. आर. स्वामीनाथन ने (दिसंबर 2021) इस याचिका को खारिज कर शंकराचार्य विजयेंद्र सरस्वती को निर्दोष करार दिया। अन्य 69 शंकराचार्यों की तुलना में विजयेन्द्र सरस्वती की चरित्रकथा अनोखी है। उनका जन्म 1969 में तिरुवल्लूर में अरानी के पास पेरियापलायम गांव में शंकरनारायणन शास्त्री के रूप में हुआ था। उन्होंने गाँव के एक स्कूल में पढ़ाई की। अपने पिता, कृष्णमूर्ति शास्त्री, वैदिक विद्वान और शिक्षक, के साथ वेदों का अध्ययन किया। जब वे केवल 13 वर्ष के थे वे कांची कामकोटि पीठ में शामिल हुए। उन्हें 1983 में 70वें पीठाधिपति का नाम दिया गया। शंकर विजयेंद्र सरस्वती ने पंजाब, हिमाचल प्रदेश, असम, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और दक्षिणी भारत के अन्य सभी हिस्सों का दौरा किया है। अपने गुरु जयेंद्र सरस्वती के साथ 1998 में नेपाल भी गए।

उन्होंने मठ को एक नई दिशा दी। सिर्फ आध्यात्मिक कार्यों तक पहले मठ सीमित था। उन्होंने सामाजिक कार्यों से उसे जोड़ा। देशभर में लोकप्रिय हुए। कांची मठ कई स्कूल और अस्पताल संचालित करता है। मठ के जरिए समाज के सबसे निचले स्तर पर खड़े लोगों को मदद पहुंचाने के लिए वह हमेशा प्रयासरत रहे। पहले मठ का प्रभाव तामिलनाडु तक ही सीमित था। इसे उत्तर-पूर्वी राज्यों तक वे ले गए। काशी के अपने प्रवचन में विजयेंद्र सरस्वतीजी ने इन सीमावर्ती क्षेत्रों की परंपरा और प्रकृति को बचाने का अनुरोध किया। पर्यावरण के हित में अभियान की राष्ट्र को जरूरत है। विजयेंद्र सरस्वती ने कहा कि पृथ्वी पर जो भी है प्रभु की आशीर्वाद से है। उसे अक्षुण्य रखने के लिए मनुष्य को कृतज्ञ होना चाहिए। प्रकृति ने हमें जो कुछ भी दिया है, उसके साथ छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए।

नए पाठ्यक्रम का उद्देश्य बच्चों को अपनी संस्कृति के बारे में जानकारी देना है। पीठ ने भारत की नदियों, रामायण, महाभारत और वेदों के पात्रों को भी कोर्स में शामिल किया है। नीता प्रकाशन, दिल्ली, और कांची कामकोटि पीठ ने इन किताबों का प्रकाशन किया है। इसे पीठ के स्कूलों समेत दक्षिण भारत के कई स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है। शंकराचार्यजी ने कहा कि वर्ण-बोध और गोल्डन रीडर अक्षर ज्ञान के साथ-साथ पौराणिक पुरुषों के उल्लेख द्वारा ज्ञान बढ़ाने का यह एक प्रयास है।

सावन में काशी केसरिया रंग में डूबता दिखाई देता है। हर तरफ कावंड़ियों और संत-समाज का बोलबाला रहता है। गत माह वाराणसी पहुंचते ही स्वामी विजयेंद्र सरस्वतीजी ने श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में दर्शन-पूजन किया। धाम में ज्योर्तिंलिंग पर रुद्राभिषेक कर, देश-दुनिया के कल्याण के लिए चातुर्मास व्रत का संकल्प लिया। वे काशी में 88 दिन (29 दिसंबर 2023) गुजारेंगे। धार्मिक कार्यक्रमों, सम्मेलनों, पुराणों पर प्रवचन, हवन, यज्ञ में भाग लेंगे। वे यहां विविध धार्मिक कार्यक्रमों, सम्मेलनों, पुराणों पर प्रवचन, हवन, यज्ञ में भाग लेंगे।

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