दो टूक : भाजपा सरकार जानती है सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से खोलने का हुनर

राजेश श्रीवास्तव

लखनऊ। अगर आप सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर और केंद्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार के उसके क्रियान्वयन पर नजर डालें तो आपको तमाम ऐसी चीजें नजर आयेंगी जिससे साबित हो जायेगा कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के सुप्रीम फैसलों से किस तरह खोल करती है। पिछले 15 दिनों के ही फैसलों की तफ्तीश करें तो मिलेगा कि हर बार जब देश की जनता सुप्रीम कोर्ट की ओर टकटकी लगाये देखती है और सुप्रीम कोर्ट उसके मनमुताबिक फैसला भी करता है तो भी आम जनमानस को राहत मिलती नहीं दिखायी देती है। बीते दिनों के फैसलों को देखों तो मिलता है कि ईडी के निदेशक की सेवा विस्तार का मामला हो, दिल्ली अध्यादेश का मामला रहा हो या फिर राहुल गांधी की सजा पर रोक का मामला हो। तीनों ही मामलों में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की मंशा पर काम नहीं किया। दिलचस्प यह है कि सभी मामलों में सुप्रीम कोेर्ट को सरकार ने बड़ी आसानी से चकमा दे दिया और सुप्रीम कोर्ट लाचारी से देखता रहा गया। सिर्फ इतना ही क्यों अभी आपने पिछले महीने आये मणिपुर के वीडियो मामले में आये फैसले पर भी सरकार लीपा-पोती ही करती नजर आयी।

सबसे पहले बात राहुल गांधी की सजा बहाली पर सुप्रीम कोर्ट ने दो साल की सजा पर रोक लगाते हुए तमाम टिप्पणियां करते हुए दो साल की सजा पर रोक लगा दी। लेकिन जिस तरह से सजा होने का ऐलान होते ही राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म कर दी गयी थी, उसी तरह इसको पलटा नहीं गया, अब सूत्र जो बता रहे हैं उसके मुताबिक सरकार राहुल गांधी की सदस्यता को बहाल नहीं करेगी, हालाकि कांग्रेस एक-दो दिन और इस पर इंतजार करने के बाद इसको लेकर फिर सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। लेकिन लोकसभा सचिवालय नियमों से खेलकर उनकी सदस्यता बहाल करने में निश्चित रूप से खेल करेगा क्योंकि राहुल के आने से संसद में सरकार को घोरने में आसानी होगी। इसलिए सत्ता पक्ष नहीं चाहता कि राहुल गांधी की सांसदी बहाल हो और विपक्ष राहुल के नेतृत्व में लामबंद हो।

दूसरा फैसला दिल्ली अध्यादेश का है जिसमें पांच जजों की पीठ ने फैसला किया था कि एलजी और मुख्यमंत्री मिल-जुल कर काम करें लेकिन केंद्र सरकार ने एक नियम का हवाला देकर दिल्ली के सबंंध में एक अध्यादेश लाकर मुख्यमंत्री केजरीवाल की सरकार को मात्र नुमाइशी बना दिया है। उसके सारे अधिकार सीज कर दिये हैं। पुलिस और कानून-व्यवस्था पहले भी उसके हाथ में नहीं थी। अब बाबू से लेकर अफसरशाही तक के फैसले एलजी ही करेंगे। यानि अब केजरीवाल सरकार किस तरह काम कर पायेगी और सरकार चला पायेगी, यह तो समय ही बतायेगा। दरअसल मोदी सरकार तमाम कोशिशों के बावजूद पिछले 25 सालों से दिल्ली की सत्ता से दूर है। पिछले विधानसभा चुनावों में तो खुद देश के गृहमंत्री अमित शाह ने पूरी ताकत लगा दी थी। खुद घर-घर जाकर पर्चे तक बांटे थे, लेकिन उसके बावजूद भाजपा सरकार को दिल्ली में मुंह की खानी पड़ी थी। यहीं नहीं, पिछले दिनों हुए नगर निकाय के चुनाव में भी केजरीवाल ने भाजपा सरकार को पटकनी दे दी थी। और निकाय चुनाव में उनका सूपड़ा साफ कर दिया था।

ऐसे में आने वाले दिनों में भी दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल सरकार के पर कतरे जा सकें, इसीलिए दिल्ली अध्यादेश के जरिये केजरीवाल सरकार पर नकेल कसने की तैयारी मोदी सरकार ने कर ली है। साफ है कि दिल्ली के मंत्रियों को जेल भोजने और पिछले दिनों जलभराव की समस्या को लेकर केजरीवाल सरकार को घेरने के बावजूद जब भाजपा को वहां कोई विरोध का माहौल बनता नहीं दिखा तब सरकार ने अध्यादेश की राजनीति चली। भाजपा का वर्तमान नेतृत्व अपने पिछले नेतृत्व की कसीदें तो पढ़ता है पर उस पर अमल नहीं करता। खुद अटल बिहारी वाजपेयी, सुषमा स्वराज सभी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करते रहे। एक बार तो आंदोलन भी हुआ और खुद प्रधानमंत्री मोदी उसमें शामिल हुए थे। लाठीचार्ज भी हुआ था। शायद वह भी उसकी प्रताड़ना झेले होंगे। लेकिन वह सत्ता पाकर यह सब भूल गये कि उनकी ही पार्टी के नेता चाहते थे कि दिल्ली पूर्ण राज्य बने लेकिन उन्होंने सत्ता की खातिर उसको पूरा तो नहीं किया बल्कि और उसे पंगु बना दिया। भले ही आज दिल्ली अध्यादेश के जरिये केजरीवाल सरकार को घेरने की नीति बनी हो लेकिन आगे आने वाले समय में यह अध्यादेश सभी दलों के लिए खुद भाजपा के लिए भी मुसीबत बनेगा, यह निश्चित है।

इसी तरह इडी के निदेशक संजय मिश्र के कार्यकाल का मामला हो तब भी सुप्रीम कोर्ट ने उनके तीसरे सेवा विस्तार को लेकर केंद्र पर गंभीर टिप्पणियां की थीं लेकिन केंद्र सरकार की जिद के चलते उनके तीसरे सेवा विस्तार को मंजूरी दे दी गयी थी। मतलब साफ है कि अदालतों का फैसला मानना मोदी या फिर भाजपा सरकार के लिए जरूरी हो, ऐसा नहीं है। हां फैसला सुप्रीम कोर्ट करता है पर उसको किस तरह पलटना है, इसका हुनर भाजपा नेताओं और शीर्ष नेतृत्व को भलीभांति पता है।

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