दो टूक :  सांसदी बचाना नहीं भाजपा के सामने चुनौती बनना राहुल का लक्ष्य

राजेश श्रीवास्तव


शनिवार सुबह का वक्त था जब अलसुबह पांच बजे कांग्रेस नेता राहुल गांधी शिमला जाने के लिए निकले। अचानक काफिला सोनीपत की ओर घुमवा लिया। सड़क किनारे खोतों में काम कर रहे किसानों के बीच जाकर राहुल ने खोतों में धान बोये, किसानों से लेकर ट्रैक्टर चलाया। यह वह दिन था जब एक दिन पहले ही राहुल गांधी को गुजरात हाईकोर्ट से झटका मिला था। यह वाकया बताता है कि राहुल गांधी पर इस निर्णय का कोई असर नहीं पड़ा है। दरअसल कानूनी जानकार बताते हैं कि राहुल गांधी को जो सजा हुई है वह जिला जज के यहां से हुई है और उस पर अभी सुनवाई लंबित है। राहुल गांधी ने इस सजा को कम करने के लिए सेशन जज के पास जाना चाहिए था लेकिन राहुल गांधी इस पर रोक लगाने के लिए सेशन जज के पास जा रहे हैं। वहां से याचिका खारिज हो गयी और वह इसी के लिए हाईकोर्ट गये, जो वहां भी खारिज हो गयी। पिटीशन के खिलाफ जा रहे हैं वह जानते हैं कि इस मामले में उनको राहत नहीं मिलेगी लेकिन वह अदालत इस मामले में नहीं जा रहे हैं कि उनकी सजा को कम कर दिया जाये।

अगर वह सेशन जज से इस मामले में कहें कि उनकी सजा कम कर दी जाये तो उनको राहत मिलनी तय है। लेकिन खुद राहुल गांधी ऐसा नहीं चाहते हैं। वह इसे मुद्दा बनाये रखना चाहते हैं। कानूनी जानकारों का कहना है कि राहुल यह लाभ सेशन जज के यहां से कभी भी ले सकते हैं। लेकिन वह इस पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जायेंगे, जहां से भी राहत नहीं मिलेगी, लेकिन राहुल गांधी को जो मीडिया माइलेज मिल रहा है। कांग्रेस और राहुल गांधी उससे मजबूत हो रहे हैं। दरअसल राहुल बताना चाहते हैं कि भारतीय दंड संहिता के 162 सालों के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि किसी को ऐसे बयानों के लिए दो साल की सजा सुनाई गई हो। लेकिन उनके साथ मोदी सरकार जानबूझकर अन्याय कर रही है।

रणनीतिकारों की मानें तो राहुल गांधी भारत यात्रा निकालने के बाद से ही अपनी छवि में आमूल-चूल परिवर्तन कर चुके हैं। कभी वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अंतर्राष्ट्रीय छवि के मुकाबिल दिखने के लिए सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका और ब्रिटेन पहुंच जाते हैं। जहां प्रवासी भारतीयों की संख्या तकरीबन 26 फीसद है और वह भारत में वोट नहीं करते लेकिन वोटों को प्रभावित बहुत करते हैं। राहुल यह भी दिखाने की कोशिश करते हैं कि वह आम आदमी हैं जिस तक सबकी पहुंच आसान है। इसीलिए वह अमेरिका में ट्रक ड्राइवर के साथ बैठकर बाते करते हैं। और तो और अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को एयरपोर्ट पर इमीग्रेशन क्लीयरेंस के इंतजार में राहुल गांधी को दो घंटे इंतजार करना पड़ता है तो भी उनके चेहरे पर गुस्सा या शिकन नहीं दिखती वह कहते हैं कि मैं सांसद नहीं हूं और देख रहा हूं कि आम आदमी को कितनी तकलीफंे सहन करनी पड़ती है। राहुल गांधी अपने को आम आदमी दिखाने की कोशिशों कर रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि राहुल को अब सोशल मीडिया पर ज्यादा तरजीह मिल रही है वही सोशल मीडिया, जिसकी बदौलत नरेंद्र मोदी चुनाव जीते थें। दो राज्यों में कांग्रेस को मिली जीत ने उनके हौसले बुलंद किये हैं। राहुल गांधी को अपनी सांसदी की ज्यादा चिंता नहीं है अभी वह आगे आने वाले छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश के चुनावों पर फोकस कर रहे हैं। वह जानते हैं कि राहुल गांधी को सरकार जितना सतायेगी या फिर सताते हुए दिखोगी राहुल उतने ही सशक्त होंगे। उन्हें पता है कि उनकी सजा को कम कराना बहुत कठिन नहीं है। कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका तभी मिलेगा जब भाजपा 2024 में 200 सीटों के नीचे रहेगी और कांग्रेस अपने दम पर 150 सीटें जीत सके। इसलिए उनके सामने उनकी सांसदी बड़ा मुद्दा नहीं 15० सीटों का लक्ष्य बड़ा मुद्दा है। फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सिर्फ भारत ही नहीं, बाकी देशों में लोग यूज करते हैं। ऐसे में आपकी किसी भी जगह कही गई बात सिर्फ एक देश तक सीमित नहीं रह सकती। किसी नेता की स्पीच या बयान उसी समय देखी या पढ़ी जा सकती है। राहुल गांधी इन तरीकों से खुद अपने आपको ऐसे पेश कर रहे हैं जो आम लोगों से जुड़ा हुआ इंसान है और उन्होंने इसे बखूबी पेश किया है। विदेश में वो जरूर होते हैं, लेकिन उनका टारगेट भारतीय मतदाता होते हैं।

कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा से पहले जितने विशेषणों से राहुल गांधी को भाजपा का एक अदना नेता भी नवाजता था, उन्हीं राहुल गांधी की छवि आज ऐसी हो गयी कि उनकी तुलना अब मोदी से होने लगी है। सवाल यह भी है कि आखिर राहुल क्यों भाजपा के मन-मस्तिष्क में बैठे हैं, सोते-जागते सुबह-शाम वही दिखायी देते हैं। अब तो भाजपा के चाणक्य गृहमंत्री अमित शाह भी कहने लगे हैं कि प्रधानमंत्री का मुकाबला राहुल गांधी से ही है। हालांकि वह इसलिए ऐसा कह रहे हैं ताकि विपक्ष में फूट पड़ जाये। लेकिन उनका यह दांव उलटा पड़ गया । विपक्ष के केंद्र में राहुल गांधी आ गये। लालू यादव ने तो कह ही दिया था कि आप दूल्हा बनो हम सब बाराती बनने को तैयार हैं। उधर राहुल को केंद्र में रखकर ही भाजपा अपनी कोई योजना बनाती है। उसके कार्यालय हों या बैठक, चर्चा के केंद्र में राहुल ही होते हैं। इन सबको देखो तो यह साफ है राहुल गांधी अब विपक्ष के लिए स्वीकार्य तो भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बनते साफ दिखायी पड़ रहे हैं। पूरी कांग्रेस अभी इस मुद्दे को छोड़ने वाली नहीं है आगामी दिनों में वह देशव्यापी मौन प्रदर्शन करने वाली है। वैसे आम आदमी भी समझ रहा है कि राहुल सियासत का शिकार हो रहे हैं।

 

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