भारतीय सेना की शान गोरखा सैनिक, प्रचंड और मोदी की मुलाकात में इन पर क्‍यों नहीं हुई कोई बात?

उमेश तिवारी


काठमांडू / नेपाल । भारत के सातवें सेना प्रमुख और पहले फील्‍ड मार्शल सैम मानेक शॉ ने कहा था, ‘अगर कोई आपसे कहता है कि उसे डर नहीं लगता तो या तो वह झूठ बोल रहा है या फिर वह गोरखा है।’ गोरखा सैनिकों को दुनिया में सबसे बहादुर करार दिया जाता है। भारतीय सेना में भी पिछले करीब 200 साल से गोरखा सैनिक अपनी सेवाएं देते आ रहे हैं। लेकिन इस साल एक भी गोरखा सैनिक की भर्ती नहीं हुई है। वजह है वह अग्निवीर स्‍कीम जिसने नेपाल को नाराज कर दिया था। नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्‍प कमल दहाल प्रचंड ने हाल ही में चार दिनों की भारत यात्रा समाप्‍त की। उन्‍होंने इस दौरान अपने भारतीय समकक्ष नरेंद्र मोदी के साथ वार्ता भी की है लेकिन सूत्रों की मानें तो इस वार्ता में गोरखा सैनिकों के मसले को ज्‍यादा तूल नहीं दिया गया है।

भारतीय सेना में शामिल होने से इनकार

नेपाली गोरखाओं ने अग्निवीर योजना के तहत भारतीय सेना में शामिल होने से इनकार कर दिया है। नेपाली गोरखाओं को भारतीय सेना में न भेजने पर नेपाल सरकार के फैसले पर मोदी और दहाल का ध्यान नहीं गया। नेपाल ने इस साल कोई भी कोई भर्ती रैली आयोजित नहीं की हैं। नेपाल मानता है कि भारतीय सेना की अग्निवीर भर्ती योजना भारत की आजादी के तुरंत बाद सन् 1947 में नेपाल, भारत और यूके सरकारों के बीच हुए समझौते के अंतर्गत नहीं आती है। पिछले साल भारत सरकार ने गोरखा सैनिकों के लंबी अवधि वाले रोजगार को छोटे अनुबंध वाले बिना पेंशन के टेन्‍योर में बदल दिया था। इस वजह से नेपाल ने 200 साल भर्ती प्रक्रिया को स्‍पष्‍टता नहीं होने तक के लिए रोक दिया था। तब से ही गोरखा सैनिकों की भर्ती का मसला अधर में लटका हुआ हुआ है। पिछले दिनों भारतीय सेना के प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने कहा था कि अगर नेपाल ने अपनी धरती पर भर्ती रैलियों की अनुमति नहीं दी तो नेपाली गोरखाओं के लिए रिक्तियों को ‘पुनर्वितरित’ करना होगा।

भारतीय सेना के तीन चीफ गोरखा

नेपाल एकमात्र विदेशी देश है जिसके नागरिक भारतीय सेना में सेवा करते हैं। करीब 40,000 गोरखा (39 बटालियन) वर्तमान में भारतीय सेना की सात गोरखा रेजीमेंट का हिस्सा हैं। इनमें नेपाली और भारतीय दोनों गोरखा सैनिक शामिल हैं। गोरखा रेजीमेंट ने दो परमवीर चक्र सहित कई वीरता पुरस्कार जीते हैं। गोरखा रेजीमेंट ने भारतीय सेना को कई प्रमुख दिए हैं, जिनमें प्रसिद्ध फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और हाल ही में दलबीर सिंह सुहाग और बिपिन रावत के नाम प्रमुख तौर पर शामिल हैं।

क्‍या है गोरखा का इतिहास

ईस्ट इंडिया कंपनी सेना के कमांडर सर डेविड ऑक्टरलोनी थे ने पहली बार एंग्लो-नेपाली युद्ध (1814-16) के दौरान एक मजबूत पहाड़ी जनजाति गोरखाओं की बहादुरी को पहचाना था। उन्‍होंने ही गोरखा को अपनी सेना में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। तब से ही गोरखा सन् 1857 के विद्रोह, अफगान युद्धों और दो विश्व युद्धों सहित कई सैन्य अभियानों का हिस्सा रहे हैं। सन् 1947 में, भारत, ब्रिटेन और नेपाल ने एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद ब्रिटिश भारतीय सेना में गोरखाओं की 11 मौजूदा रेजीमेंटों में से सात भारतीय सेना में शामिल हो गईं। बाकी बची चार रेजीमेंट्स ब्रिटिश सेना का हिस्‍सा बन गईं।

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