- ज्येष्ठ सुदी दशमी को हुआ गंगावतरण
- महाराजा सगर ने किया अश्वमेध यज्ञ
- इंद्र ने यज्ञ का घोड़ा कपिल आश्रम मे बांधा
- सगर सुतों को महर्षि ने दिया शाप
- महाराज भगीरथ के तप से प्रसन्न ब्रह्म कमंडल से अवतरित हुई गंगा
वैसे तो जीवित व्यक्ति को ज्ञान कर्म और भक्ति आदि साधनों से मृत्यु के पश्चात मोक्ष पाने की बात कही जाती है। किंतु पुराणों मे ऐसा भी वर्णन है कि मृत्यु के सैकड़ों साल बाद मृत शरीर के राख पर ग़ंगा जल की धारा पड़ने मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हुई है।
उस गंगा को महाराजा भगीरथ ज्यैष्ठ शुक्ल दशमी को इस धरती पर लाये थे।
पौराणिक कथा : लाखों साल पहले महाराजा सगर अश्वमेध यज्ञ करने लगे तो अश्व के घोड़े के पीछे उनके सौपुत्र अनुगमन कर रहे थे। देवराज इंद्र ने रास्ते मे ही घोड़ा चुराकर महर्षि कपिल के आश्रम मे बांध दिया।अनजाने में सगर सुतों ने ध्यानस्थ मुनि को ही दोषी समझ कर भला बुरा कहा। नाराज महर्षि कपिल का ध्यान टूटा तो सगर सुतों को शाप दे दिया और वे सभी सगर पुत्र भस्मसात होगए।
पतित पावनी ग़गा का अवतरण
गंगा मोक्ष दायिनी है। मृत सगर सुतों के राख पर गंगा की जल की बूंदें पड़ेंं और उनका मोक्ष होजाय। इसके लिए सगर के पौत्र भगीरथ ने घोर तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। इस प्रकार ब्रह्म कमंंडल से गंंगा अवतरण कराने मे सफलता पा ली। किंतु इस बात का संकट था कि गंगा की धार से धरती ही फट जाएगी। इस लिए फिर तप कर शिव को प्रसन्न किया। इस तरह शिव जो प्रसन्न कर उनके मस्तक के जटाजूट मे समाहित कराने मे सफलता पाई। भगीरथ के अनुरोध पर शिव की एक जटा से निकली पतित पावनी गंगा भगीरथ के रथ के पीछे चलती हुई गंगा सागर पहुंची और सागर मे समां गई। जहां तट पर महर्षि कपिल का आश्रम था। यहीं महर्षि कपिल कै शाप से महाराजा सगर के सौ पुत्र भस्मीभूत हुए थे। गंगा उनकी राख से गुजरी, जिससे उनका मोक्ष होगया। यह कथा सर्वविदित है। वह तिथि जिस दिन गंगा का अवतरण हुआ,गंगा दशहरा कहलाता है।