दो टूकः भारतीय Startups पर बढ़ता कर्ज का बोझ, यह कैसी नीति

राजेश श्रीवास्तव

मोदी सरकार लगातार स्टर्टअप्स को लेकर खासी चर्चा में रहती है। चाहे लालकिला हो या फिर युवाओं के बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगभग अपने हर भाषण में स्टार्टअप्स को लेकर खासे दावे करते हैं लेकिन इसके पीछे की हकीकत को लेकर देश के रणनीतिकार इन दिनों खासी चिंता में हैं। भारतीय स्टार्टअप्स का कर्ज 2021 से ही बढ़ता चला आ रहा है। 115 भारतीय ‘यूनिकॉर्न’ द्बारा लिया गया कुल कर्ज अकेले 2022 में 50,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था । वर्ष 2०24 के पहले सात महीनों में यानि कि जुलाई तक की रिपोर्ट के मुताबिक स्टार्टअप्स के कर्ज में 75 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है।

स्टार्टअप्स के बीच डील और निवेश पर नजर रखने वाली टैलेंट सॉल्यूशन फर्म ‘एक्सफ़ेनो’ की ताजा रिपोर्ट ने भारतीय स्टार्टअप्स के बढ़ते कर्ज के बारे में अपने निष्कर्ष से कारोबारी हलकों में हलचल मचा दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय स्टार्टअप ने वर्ष 2024 के पहले सात महीनों में 68 कर्ज वाले सौदे किए हैं, जो पिछले छह वर्षों में कर्ज वाले सौदों की सबसे अधिक संख्या है।

इससे भी अधिक चिताजनक बात यह है कि वर्ष 2023 में कर्ज सौदों का कुल मूल्य 1.8 बिलियन डॉलर था और स्टार्टअप्स द्बारा पिछले सात महीनों में किए गए कर्ज सौदों का मूल्य 1.35 बिलियन डॉलर है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 75 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्शाता है। ये आंकड़े चिता का कारण हैं, क्योंकि भारत में स्टार्टअप इकोसिस्टम देश की विकास की कहानी में काफी हद तक योगदान दे रहा है। फिनटेक, ई-कॉमसã, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट और ऑटोटेक आदि ऐसे क्षेत्र हैं, जहां स्टार्टअप्स बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं और व्यापार संवर्धन के अलावा रोजगार वृद्धि में योगदान दे रहे हैं।

दरअसल, भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की रिपोर्ट के अनुसार, 2029-30 तक भारतीय स्टार्टअप्स से 50 मिलियन (पांच करोड़) नए रोजगार सृजित होने और अर्थव्यवस्था में एक ट्रिलियन डॉलर का योगदान करने की उम्मीद है। इसलिए बढ़ते कर्ज के पीछे के कारणों को समझना और आगे के रास्ते पर विचार करना जरूरी है। भारतीय स्टार्टअप्स का बढ़ता कर्ज कोई नई बात नहीं है। यह 2021 से ही बढ़ता चला आ रहा है। 2021 में ही स्टार्टअप्स, विशेष रूप से ‘यूनिकॉर्न’ यानी एक बिलियन डॉलर या उससे ज्यादा वैल्यूएशन (मूल्य) वाले स्टार्टअप्स को बहुत ज्यादा फंडिग मिली थी, जिस कारण 115 भारतीय ‘यूनिकॉर्न’ द्बारा लिया गया कुल कर्ज अकेले 2022 में 50,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था।

इन कंपनियों ने कन्वर्टिबल नोट्स, टर्म लोन और स्ट्रक्चर्ड ट्रांजैक्शन आदि जैसे विभिन्न ऋण साधनों का उपयोग करके इतने अधिक ऋण जुटाया। उन्होंने भविष्यवाणी की कि इनिशियल पब्लिक ऑफरिग के जरिये अधिक लिक्विडिटी तक पहुंच होगी, जिससे उनकी स्थिति और बेहतर हो जाएगी । हालांकि, 2022 के आखिरी महीनों में वैश्विक आर्थिक विकास के कारण चीजें बदल गईं, जिससे आईपीओ में देरी हुई। इससे स्टार्टअप्स को वित्तीय रूप से बहुत ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा और उनकी फर्म का मूल्यांकन भी इन घटनाक्रमों से प्रभावित हुआ। फंड खत्म होने और कर्ज के बढ़ते बोझ के कारण कई स्टार्टअप्स ने मुश्किल शर्तों पर इक्विटी से फंड जुटाने का सहारा लिया, जबकि अन्य स्टार्टअप बाजार में बने रहने के लिए और ज्यादा कर्ज में डूब गए।

अगर किसी फर्म पर भारी कर्ज है, तो स्टार्टअप की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता कम हो जाएगी, क्योंकि समय बीतने के साथ कर्ज चुकाना बोझिल हो जाता है और यह स्टार्टअप के नकदी प्रवाह को सीमित कर देती है, जिससे उनका विकास बाधित होता है। दूसरी ओर, अधिक ऋण फर्म की क्रेडिट रेटिग को प्रभावित करता है और ब्याज दरें फर्म की आय को भी प्रभावित कर सकती हैं। इस संबंध में स्टार्टअप को यह ध्यान रखना चाहिए कि ऋण उनके नकदी प्रवाह से चुकाया जाए। इन प्रवाहों को स्थिर रखना बहुत महत्वपूर्ण है। हालांकि, अधिकांश स्टार्टअप शुरू में घाटे में रहते हैं, इसलिए शुरुआती चरण में ऋण से बचना हमेशा बेहतर होता है।

इसका मतलब यह नहीं है कि स्टार्टअप को ऋण वित्तपोषण का सहारा नहीं लेना चाहिए। लेकिन उन्हें विवेकपूर्ण तरीके से ऐसे फैसले लेने चाहिए। इसलिए स्टार्टअप्स के लिए यह सही समय है कि वे सजग हो जाएं और अपने कर्ज को लेकर आत्मनिरीक्षण करें कि क्या वे टिकाऊ हैं, और सुधारात्मक उपाय करें। यह भारतीय स्टार्टअप्स पर मंडरा रहे बड़े कर्ज संकट को टालने में काफी मददगार साबित होगा। अगर इसमें और देरी की गई तो यह स्टार्टअप्स के भविष्य और इनमें काम करने वाले लाखों कर्मचारियों के भविष्य के लिए हानिकारक होगा।

मेरा मानना है कि कई स्टार्टअप सिर्फ इसलिए ऋण वित्तपोषण का सहारा लेते हैं क्योंकि उनके पास इक्विटी उपलब्ध नहीं होती है। इसके बजाय, उन्हें इक्विटी जुटाने को तब तक टालने के लिए कर्ज लेने की जरूरत होती है जब तक कि यह किफायती न हो जाए। एक बार जब इक्विटी उनके लिए किफायती हो जाती है, तो वे कर्ज चुका सकते हैं और कम लागत पर इक्विटी फाइनेंसिग का सहारा ले सकते हैं। सरकार को इस पर भी ध्यान देना चाहिए।

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