कभी कभी कुछ ऐसे वाकयात सामने से गुजरते हैं जो यह बताते हैं कि उम्मीद अभी बाकी है। आज के जो हालात है,उसमें न्याय की उम्मीद कम है लेकिन जब कोई अकेला आपको न्याय दिलाने पर अड़ जाय तो यकीनन न्याय मिले न मिले आपकी उम्मीद की आश खत्म होने से बच जाती है। यह छोटी बात नहीं है। सच कहें तो आज की राजनीति में नेताओं के लिए यह एक ऐसी नज़ीर है जो दो राह बनाती है! नंबर एक, आप उस पर चलने को मजबूर हों और नंबर दो,आप बेशर्मी से नजर झुकाए उस पर चलते जायें।
बात बहुत बड़ी नहीं है लेकिन संदेश बड़ा है। बताने की जरूरत नहीं कि आजकल हमारे जनप्रतिनिधि (सांसद,विधायक,मंत्री) जनता की समस्याओं को सुनने के लिए चौपाल लगाते हैं,उनके समक्ष भीड़ खड़ी रहती है,कुछ बैठे भी रहते हैं। कोई एक शख्स बारी बारी जनता को पुकारता है,नेता जी उसकी समस्या सुनते हैं,उसका कागज थामते हुए अपने किसी आदमी को थमाते हैं और फरियादी से कहते हैं ठीक है,तुम्हारा काम हो जाएगा। लेकिन उसका काम शायद ही होता हो।
यह दृष्य़ राजा महाराजाओं के दरबार जैसा होता है जहां फरियादी हाथ जोड़े खड़े या बैठे रहते हैं और अंत में निराशा लिए वापस चलें जाते हैं। जनता और जनप्रतिनिधियों के बीच जब राजा और प्रजा जैसे रिश्ते विकसित हो रहे हों तब यदि एक विधायक अपनी जनता को न्याय दिलाने के लिए धरना देने को मजबूर हो तब यह एक नजीर बन जाता है और बड़ा बड़ा वादा कर चुनाव जीतने वाले बाकी जनप्रतिनिधियों के लिए एक संदेश भी होता है।
यूपी के जिला सिद्धार्थनगर में भाजपा के सहयोगी दल (अपना दल एस) के विधायक विनय वर्मा को एक शख्स को न्याय दिलाने के लिए पुलिस के खिलाफ धरने पर बैठना पड़ा। विधायक का धरना तब प्रदेश की बड़ी घटना बन जाता है जब भाजपा का कोई जनप्रतिनिधि बिल्कुल ही साथ न दे,विधायक की खुद की पार्टी (अपना दल एस) का प्रदेश नेतृत्व सिद्धार्थनगर के जिलाध्यक्ष को बाकायदे चिट्ठी लिखकर सूचित कर दे कि विधायक विनय वर्मा के धरने से पार्टी का लेना देना नहीं है लिहाजा पार्टी के पदाधिकारी इसमें शामिल होने से बचें। पार्टी नेतृत्व के इस खत के बाद अपना दल एस के जिले के पदाधिकारी भी विधायक के धरने से किनारा कर लिए। नतीजा यह हुआ कि विधायक के धरना स्थल पर धरना के लिए लगा टेंट भी हटा दिया गया।
विधायक को अपने कुछ समर्थकों के साथ खुले आसमान के नीचे धरने पर बैठना पड़ा। विधायक की मांग है कि उनके क्षेत्र के दो थानों के थाने दार और जिले की एसपी प्राची सिंह को हटाया जाय। थानेदारों पर जनता की मदद न करने का तो एसपी पर उनके रहते थानों की पुलिस के बेलगाम रहने का आरोप है। मजे की बात है कि विधायक वर्मा के धरने पर बैठने की सूचना विधानसभा अध्यक्ष और मुख्य सचिव को भी थी लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। और तो और उसी दिन सरकार ने 15 आईपीएस अफसरों का स्थानांतरण किया लेकिन सिद्धार्थनगर के एसपी का स्थानांतरण न करके विधायक को चिढ़ाया गया।
दरअसल विधायक के पुलिस महकमें पर कुपित होने का कारण बड़ा नहीं है लेकिन पता नहीं किन कारणों से पुलिस ने इसे बड़ा बना दिया। तीन माह पहले विधायक के क्षेत्र के एक गांव के युवक की मौत अवैध बालू खनन कर ढोने वाले ट्रैक्टर से कुचलकर हो गई थी। पीड़ित परिवार विधायक से मिलकर न्याय की गुहार लगाया। विधायक ने थाने से लेकर एसपी तक से इस प्रकरण में कानूनी कार्रवाई की अपील की लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया। वे मुख्यमंत्री,मुख्यसचिव तक से मिले लेकिन हर जगह से आश्वासन ही मिला। हर चौखट से हताश विधायक को धरना देने को मजबूर होना पड़ा। इस बीच मामले में नया मोड़ यह आ गया कि जिस पीड़ित परिवार के लिए विधायक धरना पर बैठे उस परिवार का आरोप है कि उसे कुछ नहीं चाहिए,विधायक राजनीति कर रहे हैं। खैर पीड़ित परिवार ऐसा कहने को क्यों मजबूर हुआ,यह बताने की जरूरत नहीं है और यह भी कि सरकार विधायक की मांग मानने से रही।
विनय वर्मा मुख्यतः गोरखपुर जिले के रहने वाले हैं। 2022 में वे अपने गृह जनपद से सौ किमी दूर सिद्धार्थनगर जिले के शोहरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र से (अपना दल एस) के टिकट पर विधायक चुने गए। विधायक चुने जाने के बाद वे लगातार क्षेत्र में इस कदर अपनी उपस्थिति दर्ज कराए कि लोग भूल गए कि वे बाहरी हैं। काम करने की उनका तौर तरीका बाकी जनप्रतिनिधियों से हटकर है। शायद यही वजह रही कि पार्टी की असहमति के बाद भी वे पुलिस के खिलाफ धरना देने पर डटे रहे। वे कहते हैं कि अब मुख्यमंत्री को सोचना है कि उन्हें विधायक की सुनना है या बेलगाम पुलिस अफसर की।
इसी के साथ उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रकरण को लेकर वे जब मुख्यमंत्री से मिले तो उन्होंने कहा कि आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है और आज पीड़ित परिवार मुझपर राजनीति करने का आरोप लगा रहा है। अब तो इस प्रकरण की जांच और जरूरी हो गई है क्योंकि इस मामले में कोई एक तो झूठा है। बहरहाल विधायक विनय वर्मा के धरने का कुछ भी हश्र हो, जनता के बीच उनकी शिनाख्त रीयल हीरो की बन गई।