अशून्य शयन व्रत आज़ः पत्नी की लंबी उम्र के लिए पति रखते हैं अशून्य शयन व्रत

  • करवाचौथ की तरह पति रखते हैं अपनी पत्नी के लिए यह व्रत
  • विष्णुपूजा के साथ-साथ लक्ष्मी की पूजा से मिटते हैं सभी कष्ट

राजेन्द्र गुप्ता, ज्योतिषी और हस्तरेखाविद

आज हम एक ऐसे व्रत के बारे में बता रहे हैं, जो केवल पुरुष अपनी पत्नी की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए करते हैं। करवा चौथ के व्रत की बात आती है, तो आधुनिकता की होड़ में बहुत लोग कहते हैंकेवल नारी ही क्यों ? शायद उन्हेंअशून्य शयन व्रतकी जानकारी नहीं है! यह व्रत पूजा पांच महीनेसावन, भादों, आश्विन, कार्तिक और अगहन में होती है। इस व्रत में लक्ष्मी तथा श्री हरि, यानी विष्णु जी का पूजन करने का विधान है। दरअसल शास्त्रों के अनुसार चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु का शयनकाल होता है और इस अशून्य शयन व्रत के माध्यम से शयन उत्सव मनाया जाता है। कहते हैं जो भी इस व्रत को करता है, उसके दाम्पत्य जीवन में कभी दूरी नहीं आती। साथ ही घरपरिवार में सुखशांति तथा सौहार्द्र बना रहता है। अतः गृहस्थ पति को यह व्रत अवश्य करना चाहिए।

अशून्य शयन व्रतक्या है :

चातुर्मास के चार महीनों के दौरान हर माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को यह व्रत श्रावण मास से शुरू करके भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को भी किया जाता है। इस व्रत का वर्णन भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से किया है।

अशून्य शयन द्वितीया का अर्थ हैबिस्तर में अकेले न सोना पड़े। जिस प्रकार, स्त्रियां अपने जीवन साथी की लंबी उम्र के लिये करवाचौथ का व्रत करती हैं, ठीक उसी तरह पुरूष अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिये यह व्रत करते हैं क्योंकि, जीवन में जितनी जरूरत एक स्त्री को पुरुष की होती है, उतनी ही जरूरत पुरुष को भी स्त्री की होती है। अशून्य शयन द्वितीया का यह व्रत पतिपत्नी के रिश्तों को बेहतर बनाने के लिये है।

इस व्रत में लक्ष्मी तथा श्री हरि, यानी विष्णु जी का पूजन करने का विधान है। कहते हैं जो भी इस व्रत को करता है, उसके दाम्पत्य जीवन में कभी दूरी नहीं आती और घरपरिवार में सुखशांति तथा सौहार्द्र बना रहता है। वैसे तो पुरुषों कि लिए ही कहा गया हैं, पर दोनों पतिपत्नी साथ में व्रत करें, तो और भी अच्छा हैं। प्रात:काल उठकर सभी नित्य कर्म कर लें, स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, पूजा गृह को साफ कर पवित्र कर लें, लक्ष्मी सहित विष्णु भगवान की शय्या का पूजन करें। भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए।

अशून्य शयन व्रत मंत्र :

लक्ष्म्या न शून्यं वरद यथा ते शयनं सदा। शय्या ममाप्य शून्यास्तु तथात्र मधुसूदन।।

अर्थात्, हे वरद, जैसे आपकी शेषशय्या लक्ष्मी जी से कभी सूनी नहीं होती, वैसे ही मेरी शय्या अपनी पत्नी से सूनी न हो, यानी मैं उससे कभी अलग ना रहूं !

इस दिन शाम के समय चन्द्रोदय होने पर अक्षत, दही और फलों से चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है और अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है। फिर अगले दिन, यानी तृतीया को, किसी ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और उनका आशीर्वाद लेकर उन्हें कोई मीठा फल देना चाहिए।

अशून्य शयन व्रत की पूजा विधि

  • व्रत के दिन स्नान आदि करके साफ कपड़ा पहन लें।
  • उसके बाद पूजा स्थल पर जाकर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को ध्यान करते हुए व्रत और पूजा का संकल्प लें।
  • उसके बाद शुभ मुहूर्त में माता लक्ष्मी तथा भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करें। अंत में आरती करते हुए पूजा समाप्त करें।
  • शाम को चंद्रोदय के समय पर चंद्रमा को दही, फल तथा अक्षत् से अर्घ्य दें।
  • उसके पश्चात ही व्रत का पारण करें।
  • अगले दिन जरूरत मंद ब्राह्मण को भोजन कराएं, दक्षिणा दें तथा कोई मीठा फल दान कर दें।
  • ऐसा करने से आपके दांपत्य जीवन में प्रेम और माधुर्य बना रहेगा।

अशून्य शयन व्रत की कथा

एक समय राजा रुक्मांगद ने जन रक्षार्थ वन में भ्रमण करतेकरते महर्षि वामदेवजी के आश्रम पर पहुंच महर्षि के चरणों में साष्टांग दंडवत् प्रणाम किया। वामदेव जी ने राजा का विधिवत सत्कार कर कुशलक्षेम पूछी। तब राजा रुक्मांगद ने कहा– ‘भगवन ! मेरे मन में बहुत दिनों से एक संशय है। मुझे किस सत्कर्म के फल से त्रिभुवन सुंदर पत्नी प्राप्त हुई है, जो सदा मुझे अपनी दृष्टि से कामदेव से भी अधिक सुंदर देखती है। परम सुंदरी देवी संध्यावली जहांजहां पैर रखती हैं, वहांवहां पृथ्वी छिपी हुई निधि प्रकाशित कर देती है। वह सदा शरद्काल के चंद्रमा की प्रभा के समान सुशोभित होती है।

विप्रवर! बिना आग के भी वह षड्रस भोजन तैयार कर लेती है और यदि थोड़ी भी रसोई बनाती है, तो उसमें करोड़ों मनुष्य भोजन कर लेते हैं। वह पतिव्रता, दानशीला तथा सभी प्राणियों को सुख देने वाली है। उसके गर्भ से जो पुत्र उत्पन्न हुआ है, वह सदा मेरी आज्ञा के पालन में तत्पर रहता है। द्विजश्रेष्ठ ! ऐसा लगता है, इस भूतल पर केवल मैं ही पुत्रवान हूं, जिसका पुत्र पिता का भक्त है और गुणों के संग्रह में पिता से भी बढ़ गया है। किस प्रकार मैं इन सुखों को भोगता रहूँ और मेरी पत्नी और परिवार मेरे से अलग न हो। तब ऋषि वामदेव ने कहा तुम विष्णु और लक्ष्मी का ध्यान करते हुए, श्रावण मास से शुरू करके भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को भी यह व्रत करो। जन्मोंजन्मों तक तुम्हें अपनी पत्नी का साथ मिलता रहेगा, सभी भोगऐश्वर्य पर्याप्त मात्रा में मिलते रहेंगे !

अशून्य शयन व्रत का महत्व

इस व्रत को करने से पत्नी की आयु लंबी होती है। इसके साथ ही दांपत्य जीवन की समस्याएं दूर होती हैं। वैवाहिक जीवन से नकारात्मकता दूर होती है। पति और पत्नी के बीच आपसी प्रेम बढ़ता है। इस व्रत को करने से स्त्री वैधव्य तथा पुरुष विधुर होने के पाप से मुक्त हो जाता है। यह व्रत सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला तथा मोक्ष प्रदाता माना जाता है। इस व्रत से गृहस्थ जीवन में शांति बनी रहती है, तथा खुशहाली आती है।

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