कविता: आबाद बालटोली, नवगान माँगती हूँ

अमरनाथ उपाध्याय (कवि उत्तर प्रदेश सरकार में आईएएस अफसर हैं।)
अमरनाथ उपाध्याय

 

उपवनखिले सभी में मुस्कान माँगती हूँ,

आबाद बालटोली,नवगान माँगती हूँ।

सागर से पानी लेके गिरिराज को नहाए,

उमड़घुमड़ के बादल चिरप्यास को बुझाए,

बादल से आज झमझम नहान माँगती हूँ,

आबाद बालटोली,नवगान माँगती हूँ।

 

केसरसुवास लहरों पे झूमझूम आए,

चन्दन की भीनी ख़ुशबू गिरिकन्यका रिझाए,

चन्दनमहक से महका मकान माँगती हूँ,

आबाद बालटोली, नवगान माँगती हूँ।

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भट्ठी में आज ख़ंजर तलवार दो गलाए,

हँसियाकुदालहल से लो खेत को बनाए,

खेतों से आज कोठिलाभर धान माँगती हूँ,

आबाद बालटोली,नवगान माँगती हूँ।

 

सूरज के गान गाएँ, चँदा भी याद आए,

चन्दा का शीत भाए, सूरज तपा सिखाए,

सूरज से आज नव नव विहान माँगती हूँ,

आबाद बालटोली नवगान माँगती हूँ।

 

 बगुला भी साथ हंसों के मनहर हो जाए,

हंसों का कुनबा पसरे व हर घर हो जाए

हंसों से आज ऊँची आवाज माँगती हूँ ,

आबाद बालटोली,नवगान माँगती हूँ।

 

गुँजार-कूक-कूजन-रंभाती बोली भाए

परा से बैखरी तक मृदु वात घोली जाए

हर बात में अमर से आह्वान माँगती हूँ।

आबाद बाल टोली नवगान माँगती हूँ।

(कवि उत्तर प्रदेश सरकार में आईएएस अफसर हैं।)

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