राजघाट पर असत्य आग्रह

 

डॉ दिलीप अग्निहोत्री


अन्ना हज़ारे की विरासत को आम आदमी पार्टी पहले ही कलंकित कर चुकी है। अब वह अपने उपर लगे आरोपों को छिपाने राजघाट राजघाट तक पहुँच गई। महात्मा गांधी सत्याग्रह पर अमल करते थे। वह साध्य के साथ साथ साधन की पवित्रता को अपरिहार्य मानते थे। दिल्ली के मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया पर आबकारी घोटाले का आरोप है। सीबीआई अदालत ने उन्हें गिरफ्तार किया। सुप्रिम कोर्ट ने सिसौदिया को राहत देने से इंकार कर दिया। जाहिर है कि आरोप निराधार नहीं है। मनीष सिसौदिया मुख्य आरोपी हैं। घोटाला भी आबकारी से जुड़ा है। इस संबंध में महात्मा गांधी के क्या विचार थे, यह जगजाहिर है। गिरफ्तारी पर राजनीति के लिए राजघाट प्रयोग करना अनुचित था। अन्ना हज़ारे के बाद आम आदमी पार्टी ने महात्मा गांधी के विचारों का अपमान किया हैं। वर्तमान परिस्थिति में मनीष सिसौदिया केवल विधिक प्रक्रिया के माध्यम से ही अपने को निर्दोष साबित कर सकते हैं। उन्हें निर्दोष बताने वालों के राजनीतिक बयानों का कोई मतलब नहीं हैं। उन्होने ने शिक्षा के क्षेत्र में कोई क्रांति कर दी है, इससे भी आबकारी सम्बन्धी आरोप खारिज नहीं किए जा सकते। जांच एजेन्सी के अनेक प्रश्न अनुत्तरित हैं। कहा जा रहा हैं कि मनीष ने उचित सहयोग नहीं दिया। उन्होने अनेक सवालों के संतोषजनक जबाब नहीं दिये। ऐसे में राजघाट पर ध्यान लगाने, विजेताओं की तरह पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करने से उन्हें कोई लाभ नहीं हो सकता। आम आदमी पार्टी का जन्म नई राजनीति के दावे के साथ हुआ था। जिसमें ईमानदारी और वीआईपी कल्चर की समाप्ति का जज्बा दिखाया गया था। इसके लिए अरविंद केजरीवाल ने एक प्रकार का मोहक तिलिस्म भी बनाया था।

केजरीवाल आम लोगों के सामने नई राजनीति की इबारत लिखने की अपनी कोशिश का प्रदर्शन कर रहे थे। दावा किया गया कि पार्टी की मोहल्ला समिति और दिल्ली के आम लोग ही पार्टी की नीतियों या फैसलों के बारे में सभी फैसले लेंगे। अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन की विरासत का भी आम आदमी पार्टी को भरपूर फायदा मिला। लेकिन जल्दी ही उसकी असलियत सामने आ गई। उनकी राजनीति में बिना हिचके झूठ बोलना भी शामिल है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे का आंदोलन लोगों को आज भी याद है। उस समय अन्ना हजारे के आंदोलन के निशाने पर सभी दलों के नेता थे। अरविंद केजरीवाल को यहीं से प्रसिद्धि मिली थी। ऐसा लगा जैसे अन्ना हजारे की विरासत को वह आगे बढ़ाएंगे। अन्ना राजनीति से ऊपर थे। जबकि अरविंद केजरीवाल और उनके साथियो ने आंदोलन से राजनीतिक लाभ उठाने की पूरी रणनीति बना ली थी। अन्ना के नाम का उनको सर्वाधिक लाभ मिला। इन्होंने अपने को ईमानदार दिखाने की पूरी पटकथा तैयार कर ली थी। सब कुछ उसी के अनुरूप चल रहा था। पहले कहा गया कि अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम सक्रिय राजनीत से दूर रहेगी। इस तरह अपने को महान दिखाने का पहला दृश्य पूरा हुआ। धीरे धीरे रंग बदलने की शुरुआत हुई। सभी पार्टियों के प्रमुख नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने का सिलसिला शुरू हुआ। इसके माध्यम से यह संदेश दिया गया कि अब नए ढंग की राजनीति जरूरी है। सभी पार्टियों में बेईमान नेता हैं। इसलिए अन्ना के साथ मंच पर बैठने वाले नेताओं को विवश होकर सक्रिय राजनीति में उतरना पड़ेगा। इसके बाद आम आदमी पार्टी का गठन किया गया। औरों से अलग दिखने के अनेक टोटके किए गए।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी

केजरीवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री बनने के बाद साधारण फ्लैट में रहेंगे।अपने बच्चों की कसम खाई कि कभी कांग्रेस का सहयोग नहीं लेंगे। फ्री बिजली पानी, मोहल्ला क्लिनिक और स्कूलों के वादे किए। वह जानते थे कि इतने बेहिसाब वादों को पूरा करने की क्षमता दिल्ली सरकार में नहीं है।लेकिन सत्ता ही साध्य बन गई। बिडम्बना देखिए कि पहली बार कांग्रेस के सहयोग से ही केजरीवाल मुख्यमंत्री बने थे। कसमें वादे भूल गए। जिन पर घोटालों के आरोप लगाए थे, उनके साथ मंच साझा करने लगे। नितिन गडकरी पर भी आरोप लगाया था। उन्होने केजरीवाल को कोर्ट तक घसीट लिया। धीरे धीरे केजरीवाल को सभी आरोपों से कदम पीछे खींचने पड़े। मतलब अन्ना हजारे का सहारा लेकर अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचे थे लेकिन यहां तक पहुँचने में वह अन्ना हजारे के मार्ग से पथभ्रष्ट हो चुके थे।

अन्ना हजारे ने एक पत्र के माध्यम से उन्हें आईना दिखाया था। आबकारी विभाग की अनियमितता ने सरकार की छवि को पूरी तरह धूमिल कर दिया हैं। आरोपों का जवाब देने की जगह कोई अपने को महाराणा प्रताप का वंशज बता रहा था। कोई कह रहा है कि भाजपा प्रदेश सरकार को गिराने का प्रयास कर रही है। ऑपरेशन लोटस चल रहा है। लेकिन इस पलट वार से आबकारी नीति का कोई मतलब नहीं हैं। अन्ना हजारे kejr सरकार की कार्यप्रणाली से आहत हुए। उन्होने केजरीवाल को दस वर्ष पहले की बात याद दिलाई थी। अन्ना ने कहा था कि इस सरकार की शराब नीति लोगों की जिंदगी बर्बाद कर रही है। अन्ना हजारे ने कहा था कि ऐतिहासिक आंदोलन को नुकसान पहुंचाकर बनाई गई राजनीतिक पार्टी किसी भी अन्य राजनीतिक दल की तरह है। केजरीवाल की आबकारी नीति सवालों के घेरे में हैं। तीन वर्ष पहले चार हजार करोड़ राजस्व मिला। इसके अगले वार्ष तैतीस सौ करोड़ राजस्व प्राप्त हुआ। फिर करीब डेढ़ सौ करोड़ का ही राजस्व मिला। लगभग तीन हजार करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ। नियमानुसार दिल्ली सरकार शराब ज्यादा बिकने का प्रचार नहीं कर सकती। लेकिन एक पेटी के साथ एक फ्री बिक रही थी, इसका प्रचार किया जा रहा था। बाहर से आकर भी लोग खरीद रहे थे। उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार की एक्साइज पॉलिसी लागू करने के मामले में हुई कथित गड़बड़ियों की सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश की थी। उपराज्यपाल ने इसके लिए चीफ सेक्रेटरी की उस रिपोर्ट को आधार बनाया था। दिल्ली सरकार ने पिछले साल ही अपनी नई एक्साइज पॉलिसी लागू की थी। उपराज्यपाल ने जिस रिपोर्ट को आधार बनाया है, उसमें कहा गया है कि दिल्ली एक्साइज एक्ट और दिल्ली एक्साइज रूल्स का उल्लंघन किया गया। इसके अलावा शराब विक्रेताओं की लाइसेंस फीस भी माफ की गई,जिससे सरकार को भारी नुकसान हुआ।

रिपोर्ट में आबकारी मंत्री उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने वैधानिक प्रावधानों और आबकारी नीति का उल्लंघन किया। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि एक्साइज पालिसी लागू करते हुए कई प्रक्रियाओं का भी पूरी तरह से पालन नहीं किया गया। चीफ सेक्रेटरी द्वारा भेजी गई रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि पहली नजर में यह जाहिर हुआ था कि नई एक्साइज पॉलिसी को लागू करने में GNCT  एक्ट ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स , दिल्ली एक्साइज एक्ट और दिल्ली एक्साइज रूल्स का उल्लंघन किया गया है। टेंडर जारी होने के बाद लाइसेंस हासिल करने वालों को कई तरह के गैरवाजिब लाभ पहुंचाने के लिए भी जानबूझकर बड़े पैमाने पर तय प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया गया है। एलजी ऑफिस की तरफ से यह भी स्पष्ट किया गया है कि ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स के रूल नंबर के तहत चीफ सेक्रेटरी ने यह रिपोर्ट एलजी को भेजी थी। यह रूल कहता है कि पूर्व निर्धारित प्रक्रियाओं के पालन में कोई भी कमी पाए जाने पर चीफ सेक्रेटरी तुरंत उस पर संज्ञान लेकर उसकी जानकारी एलजी और सीएम को दे सकते हैं।

यह रिपोर्ट भी इन दोनों को भेजी गई थी। रीटेल लाइसेंसियों के लिए विदेशी शराब और बियर की कीमत को सस्ता कर दिया, जिससे सरकार को रेवेन्यू का भारी नुकसान झेलना पड़ा। जाहिर है कि आप सरकार की आबकारी नीति से अनेक प्रश्न उठे हैं। इनका जवाब सरकार को देना होगा। लेकिन अपनी चिर परिचित शैली के अनुरूप आम आदमी पार्टी इसे राजनीतिक रंग देने में लगी है। इसके लिए उनसे अन्ना हजारे पर भी हमला बोलने में संकोच नहीं किया। पांच महीने से मामले की जांच चल रही है।अगर पार्टी को लगता था कि राजनीतिक प्रतिशोध में ऐसा किया जा रहा है तो वे अबतक कोर्ट क्यों नहीं गए। सिसोदिया के वकील कोर्ट में कह रहे हैं कि उन्हें चुप रहने का अधिकार है। सीबीआई उन्हें प्रमाण दिखा रही है और सिसोदिया चुप्पी साधे हुए हैं। भाजपा ने कहा कि  जिन लोगों ने भ्रष्टाचार के नाम पर लड़ाई करते हुए एक नैतिक बल बनाने का दावा किया था, उनका शासन यह है कि दिल्ली में शराब के ठेके बढ़ाओ, शराब पीने की उम्र घटा दो और करोड़ों का मुनाफा कमा लो।

सिसोदिया ने नीति में बदलाव के लिए मौखिक रूप से सचिव को एक नया कैबिनेट नोट बनाने का निर्देश दिया था। सिसोदिया आबकारी नीति के लिए कैबिनेट द्वारा गठित मंत्रियों के समूह का नेतृत्व कर रहे थे और लाभ मार्जिन पांच प्रतिशत से बढ़ाकर बारह प्रतिशत कर दिया गया था। सिसोदिया यह नहीं बता सके कि परिवर्तन क्यों किए गए थे।  सिसोदिया ने इस्तेमाल किए गए फोन भी नष्ट किए। आबकारी नीति को संशोधित करते समय अनियमितता की गई थी और लाइसेंसधारकों को अनुचित लाभ दिया गया था। इसमें लाइसेंस शुल्क माफ या कम किया गया था। यह भी आरोप है कि आबकारी विभाग ने निर्धारित नियमों के विरुद्ध एक सफल निविदाकर्ता को लगभग तीस करोड़ रुपये की बयाना जमा राशि वापस करने का निर्णय लिया था।आबकारी नीति बनाने और उसे लागू करने में की गई गड़बड़ियों के आरोप है। शराब बेचने वाली कंपनियों की करीब एक सौ बयालीस करोड़ रुपए की लाइसेंस फीस माफ कर दी गई।

एल वन के टेंडर में शामिल एक कंपनी की तीस करोड़ रुपये की अर्नेस्ट डिपॉजिट मनी कंपनी को वापस कर दी गई। विदेशी शराब और बियर के केस पर मनमाने ढंग से पचास रुपये प्रति केस की छूट दी गई, जिसका फायदा कंपनियों ने उठाया। एक ब्लैक लिस्टेड कंपनी को दो जोन के ठेके दे दिए गए। कार्टल पर पाबंदी के बावजूद शराब विक्रेता कंपनियों के कार्टल को लाइसेंस दिए गए। बिना एजेंडा और कैबिनेट नोट सर्कुलेट कराए कैबिनेट में मनमाने तरीके से प्रस्ताव पास करवाए गए। शराब विक्रेताओं को फायदा पहुंचाने के लिए ड्राई डे की संख्या इक्कीस से घटाकर तीन की गई। मास्टर प्लान के नियमों का उल्लंघन करते हुए नॉन कन्फर्मिंग इलाकों में शराब के ठेके खोलने की इजाजत दी गई। ठेकेदारों का कमीशन ढाई प्रतिशत से बढ़ाकर बारह प्रतिशत किया गया। दो जोनों में शराब निर्माता कंपनी को रिटेल सेक्टर में शराब बेचने की इजाजत दी गई। एलजी की मंजूरी लिए बिना दो बार पॉलिसी को एक्सटेंड किया। मनमाने तरीके से डिस्काउंट ऑफर दिए गए, जिससे कुछ कंपनियों को फायदा पहुंचा। नई पॉलिसी लागू करने में जीएनसीटी एक्ट, ट्रांजैक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स  दिल्ली एक्साइज एक्ट और दिल्ली एक्साइज रूल्स का उल्लंघन किया गया। टेंडर जारी होने के बाद में लाइसेंस हासिल करने वालों को कई तरह के अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए जानबूझकर तय प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया गया।

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