कृषि आय के विविध आयाम

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री


वर्तमान सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में अनेक कदम उठा रही है।कृषि उपज पर न्यूनतम साझा मूल्य में सर्वाधिक वृद्धि की गई। सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया गया। उत्तर प्रदेश में लम्बित बीस सिंचाई परियोजनाओं को पूरा किया गया। खाद की कालाबाजारी बंद हुई। किसानों के लिए खाद की उपलब्धता बढ़ाई गई। इसके अलावा जैविक कृषि और फ़सल के विविधीकरण के प्रति किसानों को जागरूक किया जा रहा है। फ़ूलों की खेती का विषय भी इसमें शामिल है। लखनऊ राजभवन की फल शाक भाजी पुष्प प्रदर्शनी में इस तथ्य का ध्यान रखा गया। यहां फ़ूलों के स्टाल के अलावा पुष्प सज्जा आदि के भी स्टॉल थे। जिनके माध्यम से किसानों फूल उत्पादन और उससे सम्बन्धित व्यवसाय की जानकारी दी गई।

परम्परागत कृषि उत्पाद आवश्यक है। लेकिन यहीं तक सीमित रहना जमीन और आय दोनों पर प्रतिकूल असर डालते हैं। पिछले कई दशकों से परम्परागत फसल पर ही फोकस रहा। विविधता का पूरी तरह अभाव था। इससे जमीन की उपजाऊ क्षमता कम हो रही है। अत्यधिक रासायनिक खादों के प्रयोग से अनेक प्रकार की बीमारियां भी जन्म ले रही है। किसानों को इस चक्र से बाहर निकालने की आवश्यकता थी। वर्तमान सरकार ने इस ओर ध्यान दिया। किसानों को जागरूक बनाने के भी आयोजन किये जा रहे हैं। यूपी के प्रादेशिक फल, शाक-भाजी एवं पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन लखनऊ राजभवन में किया गया था। लेकिन इसकी प्रेरणा व्यापक रही। क्योंकि इसके माध्यम से उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश के किसानों को भी कृषि आय बढ़ाने का सन्देश गया। इसमें किसानों के साथ अन्य लोगों ने भी दिलचस्पी दिखाई। इनमें शहरों के वे लोग भी शामिल हैं जो गमलों में बागवानी करते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने का अभियान शुरू किया था। इसके दृष्टिगत अनेक प्रभावी कदम उठाये जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। किसानों की आय को दोगुना करने के सपने को पूरा किया जा रहा है। केन्द्र एवं राज्य सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं। किसानों को डेढ़ गुना एमएसपी दिया जा रहा है। किसानों की आय बढ़ाने में कृषि की लागत कम करते हुए उत्पादन में बढ़ोत्तरी तथा कृषि विविधीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका है। इससे किसानों की आय तेजी से बढे़गी। किसान नए प्रयोगों और कृषि विविधीकरण से अपनी आय में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी कर सकते हैं। परिदृश्य बदलाव भी अपने में बहुत कुछ कह देता है। कृषि संबन्धी प्राथमिकताएं भी बदली हैं। प्रदर्शनी में पारम्परिक फल, सब्जी, पुष्प के प्रदर्शन के अलावा जैविक फल, सब्जी, पुष्प का भी प्रदर्शन किया गया।

गन्ना किसानों की मेहनत से आज भारत प्रचुर मात्रा में चीनी का निर्यात कर रहा है। इसमें उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का भी बड़ा योगदान है। प्रदर्शनी के माध्यम से बताया गया कि परम्परागत कृषि उत्पाद के साथ ही विविधीकरण भी आवश्यक है। इससे किसानों की आय भी बढ़ती है, साथ ही जमीन की उर्वरा शक्ति भी बेहतर होती है। बागवानी के प्रति किसानों को जागरूक बनाने का यही उद्देश्य है। उनको अधिक आय देने वाली फसलों के लिए प्रेरित भी किया गया है। देश के बहुत से किसान ऐसा कर भी रहे हैं। यह कार्य उपलब्ध संसाधनों में ही किया जा सकता है। बागवानी फसल व्यावसायिक रूप ले रही है, इन फसलों के उत्पादन की ओर कृषकों का रुझान बढ़ा है। औषधीय एवं सुगंधीय फसलों के उत्पादन कटाई उपरान्त प्रबन्धन, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन एवं विपणन कार्यों से ग्रामीण अंचल में रोजगार की संभावनाओं में भी वृद्धि हो सकेगी।

बदलते परिवेश में इस तरह के प्रयासों की मदद से हमें पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलती है। कोरोना काल में औषधीय एवं सुगंध पौधों की ओर जनमानस का ध्यान गया है। इससे बचाव में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से बना काढ़ा बहुत कारगर साबित हुआ। इस अवधि में चिकित्सा क्षेत्र के वैज्ञानिकों एवं आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा भी शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाये जाने हेतु औषधीय एवं सगंधीय पौधों के उपयोग पर बल दिया गया। ऐसा नहीं कि यह केवल आपदा के समय ही उपयोगी था। आयुर्वेद को नियमानुसार जीवनशैली में शामिल किया जा रहा है। पूरी दुनिया ने इसके महत्व को स्वीकार किया है। ऐसे में भारत के किसानों के आयुर्वेद संबधी उत्पादों पर ध्यान देना चाहिए। प्राकृतिक कृषि से देश के अस्सी प्रतिशत किसानों को सर्वाधिक लाभ होगा।

इनमें दो हेक्टेयर से कम भूमि वाले छोटे किसान हैं। केमिकल फर्टिलाइजर से इन किसानों की कृषि लागत बहुत बढ़ जाती है। प्राकृतिक खेती से इनकी आय बढ़ेगी। केमिकल के बिना भी बेहतर फसल प्राप्त की जा सकती है। पहले केमिकल नहीं होते थे, लेकिन फसल अच्छी होती थी। विगत सात वर्षों में बढ़िया बीज कृषि उत्पाद हेतु बाजार के प्रबंध किए गए। मृदा परीक्षण,किसान सम्मान निधि, डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य, सिंचाई के सशक्त नेटवर्क, किसान रेल जैसे अनेक कदम उठाए गए है। प्रधानमंत्री ने प्राचीन भारतीय पारम्परिक और प्राकृतिक खेती को पुनर्जीवित करने का एक बहुत बड़ा अभियान शुरू किया है। भारत में प्राचीनकाल से कृषि व पशुपालन परस्पर पूरक रहे है।

यह भारत की समृद्ध अर्थव्यवस्था के आधार थे। जैविक अथवा प्राकृतिक कृषि से लागत कम आती थी। इसके अनुरूप लाभ अधिक होता था। ऐसे कृषि उत्पाद स्वास्थ्य के लिए भी लाभ दायक थे। जमीन की उपजाऊ क्षमता भी बनी रहती थी। कुछ दशक पहले केमिकल खाद का प्रचलन शुरू हुआ। उत्पादन बढ़ा लेकिन इससे अनेक समस्याएं भी पैदा हुई। मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा। जमीन की उपजाऊ क्षमता कम होने लगी। कृषि की लागत बढ़ने लगी। पशुपालन की ओर भी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। अब यह समस्याएं जन जीवन को प्रभावित करने लगी है। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद इस ओर ध्यान दिया।

\इस क्षेत्र में बड़े बदलाव की आवश्यकता थी। कृषि क्षेत्र में परिवर्तन अपेक्षित थे। लेकिन यह कार्य केवल सरकार के स्तर पर संभव नहीं था। किसानों का भी जागरूक होना आवश्यक था। नरेंद्र मोदी सरकार ने यूरिया की कालाबाजारी रोकी। नीम कोटेड यूरिया का उत्पादन शुरू किया गया। सरकार ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह किया। इसी के साथ प्राकृतिक कृषि को प्रोत्साहित करने का अभियान भी शुरू किया गया। बड़ी संख्या में किसान अब प्राकृतिक कृषि के प्रति आकर्षित हो रहे है। सरकार किसानों की आय दो गुनी करने की दिशा में कार्य कर रही है। इसमें जैविक कृषि भी उपयोगी साबित हो रही है। किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में अनेक कदम उठाए गए है। भारत कृषि और संस्कृति की यात्रा सदैव गतिमान रही है। भूमि और गौ को माता माना गया। भगवान श्री कृष्ण गोवर्धन का व्यापक  संदेश देते है।

पृथ्वी सूक्ति के माध्यम से  प्रकृति के संरक्षण का शाश्वत विचार दिया गया। यह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। कृषि और ग्रामीण जीवन से जुड़े लोक संगीत की विशाल धरोहर है। फ़सल पकने और उसे घर तक लाना भी यहां उत्सव बन गया। लखनऊ राजभवन की फल शाक भाजी पुष्प प्रदर्शनी में कृषि के साथ संस्कृति की भी सुगंध थी। यहां भगवान श्रीकृष्ण, श्रीगणेश की सुन्दर विशाल पेंटिंग प्रदर्शित की गई थी। इसके अलावा फ़ूलों से शिव शंभु, श्रीराम दरबार,श्रीहनुमानजी श्रीगणेश,ॐ और स्वास्तिक की कलाकृति लगाई गई थी। विशाल काय वृक्षों की शोभा और जीवजंतु के लिए उसके लाभ अमूल्य होते हैं। एक समय था जब वन आच्छादित क्षेत्र पर्याप्त मात्रा में हुआ करते थे। गांवों में बाग लगाने का चलन था। समय के साथ इस स्थिति में बदलाव हुआ। विकास की क़ीमत प्रकृति को चुकानी होती है। वनों का क्षेत्र घटता गया। बागवानी के प्रति रुझान बहुत कम हो गया।

महानगर कंक्रीट के जंगलों में बदलने लगे। पक्षियों का आना कम हो गया। उनकी कलरव के लिए कान तरशने लगे। उनके बिना ही मॉर्निंग को गुड मान लिया गया। बहुमंजिला इमारतों में जगह भी नहीं रही। ऐसे में बोनसाई से ही हरियाली का इंतजाम होने लगा। लखनऊ राजभवन में बोनसाई का स्टॉल लगाया गया था। इसके माध्यम से बोनसाई लगाने उसे सँभालने की विधि बताई गई। इस प्रकार किसानों को कृषि आय बढ़ाने के विविध आयामों से परिचित कराया गया।

 

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