कविता : परंपरा व आस्था पर प्रहार

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

परंपरा व आस्था पर प्रहार,
सरेआम आधुनिक भारत में,
अपने ही लोगों के द्वारा देखा,
वो रौंद गये एक लक्ष्मण रेखा।

होली के पहले ही होली जैसे,
मानस पृष्ट धूधू कर जला दिया,
भारतीय सनातन संस्कृति को,
अधर्मियों ने पैरों से कुचल दिया।

जिस मानस पर गौरव हम करते हैं,
उसकी सारी मर्यादा ही भूल गये,
जिन आदर्शों से मस्तक ऊँचा है,
संस्कार श्रीराम के वह भूल गये।

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राजनीति की लोलुपता ने,
आत्महनन की ठान लिया,
भारत की भावी पीढ़ी को,
आकण्ठ ज़हर में डुबो दिया।

वो पिला रहे विष का प्याला,
सांस्कृतिक धरोहर मिटा रहे,
आगे आकर इसे रोकना होगा,
धर्म-संस्कृति कंधों पे लेना होगा।

भारतीय सनातन संस्कृति का
गौरव गुणगान तुम्हें सताता है,
भारत के पावन ग्रन्थों श्रुतियों
का सम्मान न तुमको भाता है।

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मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को
जो शबरी के जूठे बेर खिलाता है,
वह तुलसीकृत रामचरित मानस
कैसे जाति-वर्ग में हमें बाँटता है?

तुलसीकृत रामचरित मानस
हम सबके हृदय में बसती है,
इसका दहन नहीं है यह भाई,
हर हिन्दू की जलती अर्थी है।

आदित्य निवेदन है उन सबसे,
इसकी भरपाई नहीं कर पाओगे,
आस्था पर किये इस प्रहार के
पाप से तुम कभी न उबर पाओगे।

 

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