उमेश तिवारी
काठमांडू /नेपाल । पुष्प कमल दहाल ‘प्रचंड’ के नेपाल का नया प्रधानमंत्री बनने के बाद पड़ोसी देशों से उसके रिश्ते को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। प्रचंड को आम तौर पर चीन की ओर झुका हुआ माना जाता है। ऐसे में यह सवाल बेहद अहम हो गया है कि कम्युनिस्ट नेता के प्रधानमंत्री बनने पर भारत से नेपाल के रिश्ते मजबूत होंगे या फिर ड्रैगन खेल कर जाएगा? प्रचंड के पीएम बनते ही चीन ने ऐसे की कई कदम उठाए गए हैं। जो यह संकेत करते हैं कि कहीं नेपाली सरकार चीनियों के इशारे पर नाचने न लगे। हालांकि, भारत की ओर से भी नेपाल से रिश्ते को और अधिक मजबूत करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
नेपाल में भारत की भागीदारी ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के सिद्धांत और ‘पड़ोसी पहले’ की नीति पर आधारित है।
प्रचंड पहले यह चुके हैं कि नेपाल में बदले हुए परिदृश्य के आधार पर भारत के साथ नई समझ विकसित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा था कि 1950 की मैत्री संधि में संशोधन और कालापानी व सुस्ता सीमा विवादों को हल करने जैसे सभी बकाया मुद्दों के समाधान के बाद यह होगा। भारत और नेपाल के बीच 1950 की शांति और मित्रता संधि दोनों देशों के बीच विशेष संबंधों का आधार बनाती है। हालांकि, प्रचंड ने हाल के वर्षों में कहा था कि भारत और नेपाल को द्विपक्षीय सहयोग की पूरी क्षमता का दोहन करने के लिए इतिहास में छूटे कुछ मुद्दों का कूटनीतिक रूप से समाधान किए जाने की जरूरत है।
भारत-नेपाल के मजबूत रिश्ते को तोड़ना आसान नहीं,
मालूम हो कि नेपाल पांच भारतीय राज्यों (सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) के साथ 1850 किलोमीटर से अधिक की सीमा साझा करता है। किसी बंदरगाह की गैर-मौजूदगी वाला पड़ोसी देश नेपाल माल और सेवाओं के परिवहन के लिए भारत पर बहुत अधिक निर्भर करता है। नेपाल की समुद्र तक पहुंच भारत के माध्यम से है और यह अपनी जरूरतों की चीजों का एक बड़ा हिस्सा भारत से और इसके माध्यम से आयात करता है। भारत ने नेपाल में अपनी सहायता के जरिए जमीनी स्तर पर बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया है। इसके तहत बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य, जल संसाधन, शिक्षा, ग्रामीण और सामुदायिक विकास के क्षेत्रों में विभिन्न परियोजनाओं को लागू किया गया है।