सिद्धार्थनगर। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में राज्य सभा सांसद बृजलाल ने एससी-एसटी, पिछड़े तथा 10%सामान्य वर्ग के आरक्षण दिये जाने के अत्यंत आवश्यक विषय को राज्यसभा में चर्चा के दौरान प्रमुखता से रखा। उन्होंने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय “अल्प संख्यक” विश्वविद्यालय नहीं है। यह 1920 में ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा पारित अधिनियम के तहत स्पष्ट कर दिया या गया है। विश्वविद्यालय की ज़मीन महाराज महेंद्र प्रताप सिंह द्वारा दान में दी गई। इसके निर्माण में महाराजा विजयनगरम , महाराजा पटियाला,दरभंगा सहित तमाम हिंदू राजाओं के अतिरिक्त नवाबों और निज़ाम हैदराबाद आदि ने आर्थिक सहायता प्रदान की। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना वर्ष 1916 में ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा पारित अधिनियम द्वारा की गई।
BHU वाराणसी और AMU अलीगढ़ के अधिनियम एकदम समान है। बनारस विश्वविद्यालय द्वारा संविधान में निर्धारित आरक्षण अनुसूचित जाति/ जनजाति, पिछडे, और 10% ग़रीब सामान्य जाति को दिया जा रहा है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की हठधर्मिता के कारण संविधान में निर्धारित आरक्षण आजतक नहीं दिया जा रहा है। 1967 में मुस्लिम पक्ष द्वारा AMU को अल्पसंख्यक संस्थान देनें की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी। मोहम्मद बासा बनाम भारत सरकार के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय “ संविधान पीठ” द्वारा निर्णय दिया गया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय “ अल्पसंख्यक” संस्था नहीं है। जाति, धर्म, स्थान , लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
वर्ष 2005 में इलाहाबाद उच्चन्यायालय के पहले जस्टिस अरुण टंडन और उसी वर्ष जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस ए न रे की खंडपीठ द्वारा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ( 1967) को दोहराते हुए 1981 में कांग्रेस पार्टी सरकार द्वारा AMU एक्ट में किए गये संशोधन को निरस्त कर दिया गया। बावजूद इसके अपनी स्थापना के 102 वर्ष बाद भी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी संविधान में प्रदत्त आरक्षण लागू नहीं कर रहा है। उन्होंने संसद का ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा कि एएमयू में आरक्षण दिया गया होता तो लाखों दलितों ,पिछड़ों को सरकारी सेवाएं मिल गई होती। सांसद ने सरकार से AMU में आरक्षण व्यवस्था लागू किए जाने की मांग की।