संविधान दिवस का संकल्प

डॉ दिलीप अग्निहोत्री


लखनऊ। गणतंत्र दिवस हमारा राष्ट्रीय पर्व है। लेकिन देश के संवैधानिक इतिहास में छब्बीस नंबर का भी अपना महत्त्व है। संविधान के अनेक प्रावधान इसी दिन लागू हुए थे। संविधान को कानूनी रूप मिला था। ऐसे में इस दिन की भी अपनी प्रासंगिकता थी। इस तथ्य को सर्वप्रथम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समझा। उन्होंने  छब्बीस नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया।अब संविधान दिवस मनाने की परम्परा बन गई है। संविधान के सम्मान और राष्ट्र सेवा के संकल्प का एक अवसर है। य़ह दिवस बाबासाहेब अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद जैसे महानुभावों का नमन करने का है। योगी आदित्यनाथ ने  कहा कि संविधान में हर नागरिक को दिए गए अधिकार तभी सुरक्षित हो सकते हैं, जब समाज अपने मूल कर्तव्यों के प्रति सचेत होकर उनका निर्वहन करे। हममें से हर व्यक्ति अधिकारों की बात तो करता है लेकिन कर्तव्यों से हम पीछे भागने का प्रयास करते हैं।

भारत के संविधान ने हर नागरिक के लिए जहां मूलभूत अधिकार दिए हैं, तो वहीं कुछ बुनियादी कर्तव्य भी सुनिश्चित किए हैं और संविधान दिवस का मूल उद्देश्य भारत के उन संविधान प्रदत्त मूलभूत कर्तव्यों के प्रति हर नागरिक को जागरूक करना भी है। कर्तव्य  किसी नागरिक के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जितना कि हमारा व्यक्तिगत जीवन और पारिवारिक जीवन है। एक भारत श्रेष्ठ भारत हमें अपने मौलिक अधिकारों के प्रति सजग करता है। अधिकार तभी अनुरक्षित हो सकते हैं जब समाज अपने मूल कर्तव्यों के प्रति सचेत होकर उनका निर्वहन करे।26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने भारत के संविधान को कानूनी रूप से अंगीकार किया था। यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ जिसे गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। मई 2015 में मोदी सरकार ने घोषणा की थी कि नागरिकों के बीच संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

विशेष रूप से, वर्ष 2015 ने बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की 125 वीं वर्षगांठ को चिह्नित किया था। वह पहले कानून मंत्री थे और संविधान मसौदा समिति के पहले अध्यक्ष भी थे। डॉ। अम्बेडकर को संविधान का मसौदा तैयार करने का काम सौंपा गया था। संविधान दिवस वस्तुतः कर्तव्य बोध का अवसर होता है। देश को संविधान के अनुरूप चलाने में जन सामान्य का भी योगदान रहता है। उनकी भी इसमें भूमिका होती है। इसीलिए भारतीय संविधान की प्रस्तावना हम भारत के लोग से हुई है। संविधान सभा ने छब्बीस नवम्बर उन्नीस सौ उनचास को संविधान पारित किया लेकिन इसे छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास को विधिवत लागू किया गया। यह हमारा गणतंत्र दिवस हुआ। आजादी के पहले छब्बीस जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता था।

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इसका निर्णय उन्नीस सौ उनतीस के लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में लिया गया था। देश पन्द्रह अगस्त को स्वतंत्र हुआ। ऐसे में इस तिथि को गणतंत्र दिवस के रूप में राष्ट्रीय पर्व की प्रतिष्ठा प्रदान की गई जबकि छब्बीस नवम्बर भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया। प्रस्तावना के माध्यम से ही संविधान निर्माताओं ने इसके स्वरूप को रेखांकित कर दिया था। प्रस्तावना में कहा गया कि हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख छबीस नवम्बर उन्नीस सौ उनचास ई मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

भारत के मूल संविधान में अधिकारों का प्रावधान किया गया था। इसके लिए मूलाधिकार अध्याय बनाया गया था लेकिन उसमें मूल कर्तव्यों का उल्लेख नहीं था। बाद में यह अनुभव किया गया कि नागरिकों के कुछ मूल कर्तव्यों का भी प्रावधान होना चाहिए। कर्तव्यों के बिना अधिकार अधूरे होते है। दूसरे शब्दों में जब हम अधिकारों का उपयोग करते है, तब हमारे राष्ट्र व समाज के प्रति कर्तव्य भी होते है। इसी विचार के अनुरूप संविधान में संशोधन करके इसमें मूल कर्तव्य शामिल किए गए। इसके लिए संविधान में अनुछेद इक्यावन ए का सृजन किया गया। इसके अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे। स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे। भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे। देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे। भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म। भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुंद्ध है। हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे।

युद्ध मुक्त हो यह युग

प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे। सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे। व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले। यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चैदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करे। बयालीसवें संविधान संशोधन में दस मूल कर्तव्य जोड़े गये।

संविधान के भाग चार क के अनुच्छेद इक्यावन अ में रखे गये हैं। वर्तमान में ग्यारह मूल कर्तव्य हैं। इसे छियासी वें संविधान संशोधन में जोड़ा गया। संविधान सभा के लिए जुलाई उन्नीस सौ छियालीस में चुनाव हुए थे। देश के विभाजन के कारण संविधान सभा भी विभाजित हुई। पाकिस्तान की संविधान सभा। भारतीय संविधान सभा में दो सौ निन्यानवे सदस्य बचे। दो वर्ष ग्यारह माह अठारह दिन में संविधान बना। इसमें तीन सौ पंचानवे अनुच्छेद, बारह अनुसूची और बाइस भाग है। भारतीय संविधान बाइस भागों में विभजित है तथा इसमे तीन सौ पंचानबे अनुच्छेद एवं बारह अनुसूचियां है। संघ और उसके क्षेत्र, नागरिकता मूलभूत अधिकार, राज्य के नीति निदेशक तत्व, मूल कर्तव्य, संघ,राज्य संघ राज्य क्षेत्र, पंचायत, स्थानीय शासन अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र, संघ और राज्यों के बीच संबध, वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम, संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं, अधिकरण,कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध, राजभाषा आपात उपबंध, प्रकीर्ण संविधान के संशोधन, अनुच्छेद, अस्थाई संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध का प्रावधान है।

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