अगहन मास का पहला विशेष प्रदोष व्रत आज: शिवाराधना से मिलता है योग्य संतान, होते हैं चंद्र दोष दूर,

जयपुर से राजेंद्र गुप्त


इस साल मार्गशीर्ष माह का पहला प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष में सोमवार को है। अगहन मास का यह पहला व्रत बहुत ही शुभ मुहूर्त में आ रहा है, क्योंकि सोमवार और प्रदोष दोनों एक ही दिन है। यही कारण है कि मार्गशीर्ष माह का ये व्रत सोम प्रदोष व्रत हो गया है। इस उपवास को करने से सभी कष्ट दूर होते हैं। हर महीने एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष में प्रदोष व्रत आते हैं। इस साल मार्गशीर्ष माह का पहला प्रदोष व्रत 21 नवंबर को है। हिंदू पंचांग में प्रदोष के दिन भगवान शिव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं, वहीं सभी देवी-देवता उनकी आराधना करते हैं।

सोम प्रदोष व्रत का मुहूर्त

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, इस साल सोम प्रदोष व्रत 21 नवंबर को सुबह में 10 बजकर 07 मिनट से शुरू हो रहा है, और समाप्त अगली सुबह 22 नवंबर 8 बजकर 49 मिनट पर होगा।

कैसे करे सोम प्रदोष व्रत की पूजा

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सोम प्रदोष व्रत किया जाता है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शंकर का पंचामृत से अभिषेक करें, ऐसा करने से कुंडली में चंद्रमा से जुड़े सभी दोष दूर हो जाते हैं। वहीं इस दिन शाम के समय शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, ऐसा करने से आत्म बल और धर्म में वृद्धि होती हैं।

सोम प्रदोष व्रत के उपाय

शिव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन प्रदोष काल में शंकर का अभिषेक पंचामृत से करें। मान्यता है इससे कुंडली में चंद्रमा से जुड़े सारे दोष दूर हो जाते हैं।

नि:संतान दंपत्ति को इस दिन साथ मिलकर शिवलिंग पर जौ अर्पित करना चाहिए। कहते हैं ऐसा करने पर सुयोग्य संतान मिलती है। सूनी गोद जल्द भर जाती है।

इस दिन भोलेनाथ का घी से अभिषेक करें। शाम के समय शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना शुभ फल प्रदान करेगा। इससे आत्मबल और धन में वृद्धि होती हैं। अच्छे स्वास्थ का वरदान मिलता है।

सोम प्रदोष व्रत की पौराण‍िक कथा

सोम प्रदोष व्रत कथा के अनुसार, एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए इधर-उधर भटक रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा। तभी एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया।


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