कविता :  निंदा यानी Critisizm

निन्दक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय, बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय। ऋग्वेद में संदर्भित कर कहा गया है, दूसरों की निंदा करने से दूसरों का तो नहीं परंतु निन्दक का खुद का नुकसान अवश्य ही होता रहता है। निंदा औरों की करने से मनुष्य की अपनी बर्बादी की शुरुआत होती है, अपनी आदत … Continue reading कविता :  निंदा यानी Critisizm