राजेश श्रीवास्तव
लखनऊ। इन दिनों पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन को लेकर चर्चा तेज है। हालांकि इसकी चिंता भारत को भी करनी चाहिए । 21वीं सदी जहां दुनिया को बहुत कुछ दे रही है वहीं इसी सदी की त्रासदी बनकर उभरी है जलवायु परिवर्तन की चुनौती। इसको लेकर पहल हुई है और आगामी दिनों में मिश्र में दुनिया भर के नेता जलवायु परिवर्तन और इसके समाधान के मुद्दे पर चर्चा के लिए जुटेंगे। सीओपी-27 यानि कांफ्रेंस आफ द पार्टीज नाम से मिस्र में आयोजित होने जा रहा है। पिछले कुछ सालों में हमें इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिले हैं। कहीं जरूरत से ज्यादा बारिश से बाढ़ आ गई तो कहीं आग उगलते तापमान के सारे रिकॉर्ड टूट गए। कई देशों को सूखे का भी सामना करना पड़ा है । इन दिनों दुनिया कुछ ऐसी चीजें देख रही है, जो कल्पना से परे हैं। 2०22 में इंग्लैंड और पूरे यूरोप में गर्मी से लोग बेहाल हुए। पाकिस्तान में अप्रत्याशित बारिश हुई तो भारत में पहले हीटवेव से फसलों को नुकसान, फिर बारिश न होने के कारण धान की बुवाई नहीं हो पाई और आखिर में जब मानसून का वक्त खत्म हो गया तो अप्रत्याशित बारिश हो गई। माना जा रहा है इस सबके पीछे जलवायु परिवर्तन है।
दरअसल संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन हर साल होता है। इसमें दुनियाभर की सरकारें वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर चर्चा करती हैं । साल 1992 में ब्राजील के रियो डी जनेरियो में पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर पृथ्वी सम्मेलन के दौरान, जलवायु परिवर्तन पर यूएन फ्रेमवर्क पारित की गई, और इसके लिए समन्वय संस्था – यूएनएफसीसीसी स्थापित की गई थी। यह एक वैश्विक समझौता है, जिसपर अब तक 197 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। इसका फुल फॉर्म, ‘यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेन्शन ऑन क्लाइमेट चेंज’ है, जिसका उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना है। सम्मेलन मिस्र के शर्म अल-शेख में 6 से 18 नवंबर के बीच आयोजित हो रही है। आयोजन के लिए दो मुख्य स्थल हैं: ब्लू जोन और ग्रीन जोन। ब्लू जोन-शहर के केंद्र के दक्षिण में शर्म अल-शेख इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर है, जहां आधिकारिक वार्ता आयोजित की जाएगी। इसमें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन और 1०० से अधिक राष्ट्राध्यक्षों सहित सम्मेलन में 35,००० से अधिक प्रतिनिधियों के शामिल होने की उम्मीद है। भारत से पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव जा रहे हैं।
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दुनियाभर में अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र से लेकर अंटार्कटिका तक तापमान में बढ़ोतरी हुई है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन, प्रदूषण, जंगल की कटाई सहित वो सभी भयानक चीजें जो हम कर रहे हैं उसकी वजह से धरती के तापमान में वृद्धि हुई है । एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व स्तर पर अनुमानित 55 मिलियन लोग हर साल सूखे से प्रभावित होते हैं। सूखा दुनिया के लगभग हर हिस्से में पशुधन और फसलों के लिए सबसे गंभीर खतरा है। सूखे से लोगों की आजीविका को खतरा है, बीमारी और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है और बड़े पैमाने पर पलायन होता है। केवल गर्मी और सूखा ही नहीं पानी की किल्लत भी हमारे जनमानस को प्रभावित कर रही है। पिछले कुछ सालों में जलवायु परिवर्तन के साथ ही दुनिया के कई हिस्सों में जलसंकट की भी समस्या देखने को मिली है। केपटाउन को 2०17 और 2०18 में भारी जलसंकट से जूझना पड़ा था। ऐसी ही समस्या से चेन्नई के लोगों को भी दो चार होना पड़ा था। 2०15 में बाढ़ के बाद 2०19 में चेन्नई में सूखा पड़ने से जलसंकट गहरा गया था। तो पानी की अधिकता यानि बेतहाशा बारिश के चलते बाढ़ ने भी दुनिया के कई देशों को प्रभावित किया। 2०22 में दुनिया के कई देशों में बाढ़ ने कहर बरपाया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान में बाढ़ से 1००० से ज्यादा लोगों की मौत हो गई।
वहीं नाइजीरिया के 18 राज्य भीषण बाढ़ की चपेट में आ गए, जिसमें 6०० से अधिक लोग मारे गए और 1० लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए। ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया में बाढ़ की ऐसी मार पड़ी कि लोगों का जीना मुहाल हो गया है। हजारों लोगों को घर-बार छोड़ना पड़ा। सिर्फ की किल्लत या बाढ़ ने ही परेशान नहीं किया। इसके चलते खाद्य संकट भी हमने झेला है। जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक चारागाहों का बनना, जंगलों की कटाई और शहरीकरण के कारण पृथ्वी की 4० फीसदी जमीन की दशा खराब हो चुकी है। दुनिया भर के सभी महाद्बीपों में सिचाई योग्य भूमि का 2० से 5० प्रतिशत हिस्सा इतना नमकीन हो गया है कि वो पूरी तरह से उपजाऊ नहीं बचा है, जिसके कारण उन जमीनों में अपनी फसलें उगाने वाले लगभग डेढ़ अरब लोगों के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा हो गई हैं। जलवायु परिवर्तन के लिहाज से अफ्रीका दुनिया के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है। रिपोर्ट्स के मुताबिक इस समय पूर्वी अफ्रीका में सूखे की वजह से 1.7 करोड़ लोग खाद्य चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में किसी अफ्रीकी देश में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन होने से क्लाइमेट चेंज के प्रभावों की तरफ वैश्विक समुदाय का ध्यान आकर्षित होगा। ये पांचवीं बार है जब अफ्रीका के किसी देश में जलवायु सम्मेलन हो रहा है।
जलवायु परिवर्तन पर सम्मेलन भले ही मिश्र में हो रहा हो लेकिन भारत में भी जलवायु परिवर्तन की समस्या सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ी है। लेकिन दिक्कत यह है कि दुनिया तो इस पर चितंन कर रही है पर हमारे देश के नेताओं को जलवायु परिवर्तन की समस्या दिखायी नहीं दे रही । उन्हें तो सूखा, बाढ़ पानी आपदा प्रबंधन दिखता है, या फिर राहत सामग्री बांट कर इतिश्री कर ली जाती है। अभी हमने देखा कि पिछले दिनों प्रदूषण से दिल्ली और एनसीआर के क्या हालात हैं लेकिन सरकारें इस पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आती। जलवायु परिवर्तन पर भारत सम्मेलन में क्या विमर्श रखता है, इस पर भी दुनिया की नजर रहेगी।