भैय्या दूज: भाईदूज का त्योहार भाई बहन के प्रेम और पवित्र रिश्ते का प्रतीक

कार्तिक शुक्ल द्वितीया/ भैय्या दूज

भाईदूज का त्योहार भाई बहन के प्रेम और पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। भाई दूज का त्योहार दिवाली के दो दिन बाद कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक करके उनकी उन्नति और लंबी आयु की कामना करती हैं। इस त्योहार की पौराणिक कथा यम और उन की बहन यमुना से जुड़ी हुई है। कथा के अऩुसार यमुना के आदर-सत्कार से प्रसन्न होकर उन्होंने वरदान दिया था कि जो भी बहन इस दिन अपने भाई का तिलक कर के उसे भोजन करवाएगी उसके भाई को किसी प्रकार से यम का भय नहीं रहेगा। इसलिए इस दिन बहनें अपने भाईयो का तिलक करके उनके मंगल जीवन की कामना करती है और भाई भी अपनी बहन के प्रति कर्तव्यों के निर्वहन का संकल्प करते हैं।

तिलक करने की विधि और शुभ मुहूर्त

इस दिन यम अपनी बहन यमुना के घर भोजन करने गए थे, इसलिए जो बहने शादी-शुदा हैं उनके भाईयों को अपनी बहन के घर जाना चाहिए। कुंवारी लड़कियां घर पर ही भाई का तिलक करें।

इस दिन सबसे पहले भगवान गणेश का ध्यान करते हुए पूजा अवश्य करनी चाहिए।

भाई दूज पर तिलक करने के लिए पहले थाली तैयार करें उस में रोली, अक्षत और गोला रखें तत्पश्चात भाई का तिलक करें और गोला भाई को दे दें।

प्रेम-पूर्वक अपने भाई को मनपसंद का भोजन करवाएं। उसके बाद भाईयों को भी अपनी बहन से आशीर्वाद लेना चाहिए और उन्हें भेंट स्वरुप कुछ देना चाहिए।

भाई दूज शुभ मुहूर्त

आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि २६ अक्टूबर २०२२ को दोपहर ०२ बजकर ४२ मिनट पर लगेगी जो अगले दिन २७ अक्टूबर को दोपहर १२ बजकर ४५ मिनट पर समाप्त हो जायेगी।

सूर्योदय व्यापिनी कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि २७ अक्टूबर को करना ही उत्तम होगा।

भाईदूज पूजा शुभ मुहूर्त २६ अक्टूबर को दोपहर १२ बजकर १४ मिनट से दोपहर १२ बजकर ४७ मिनट तक रहेगा तथा २७ अक्टूबर गुरुवार को प्रातः ११ बजकर ०७ मिनट से लेकर दोपहर १२ बजकर ४६ मिनट तक रहेगा।

अन्नकूट

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा/अन्नकूट

दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट मनाया जाता है। अन्नकूट का अर्थ है, अन्न का ढेर। आज ही के दिन योगेश्वर भगवान कृष्ण ने इंद्र का मान-मर्दन करते हुए अपने वाम हस्त की कनिष्ठा अंगुली के नख पर गोव-र्धन पर्वत उठा कर इंद्र के कोप से ब्रजवासियों की रक्षा की थी।

श्रीकृष्ण निरंतर ५६ दिन तक पर्वत थामे खड़े रहे, इसलिए जब उन्होंने पर्वत को वापिस रखा तो समस्त ब्रजवासियों ने विविध प्रकार के छप्पन पकवान बनाकर खिलाए। इसलिए प्रतिवर्ष अन्नकूट उस सदियों पुराने दिवस की स्मृति में मनाया जाता है।

गोवर्धन पर्वत मथुरा से लगभग २२ किमी दूर स्थित है। गिरिराज गोवर्धन को भगवान श्री कृष्ण का साक्षात स्वरूप माना जाता है। इनकी परिक्रमा की जाती है जो अनंत पुण्य फ़लदायी होती है और मनुष्य की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करती है।

गोवर्धन परिक्रमा २१ किमी की होती है। मार्ग में कई सिद्ध – स्थल जैसे राधा-कुण्ड, गौड़ीय मठ, मानसी-गंगा, दान-घाटी, पूंछरी का लौठा आदि मिलते हैं। जिनके दर्शन मात्र से श्रद्धालु धन्य हो जाते हैं।

पनपा

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