रमली-उपन्यास कार-सूर्य नारायण शुक्ल

बलराम कुमार मणि त्रिपाठी


इस उपन्यास मे रमली एक भिखारिन है,जो विकलांग पिता की संतान है,मां बचपन मे मर चुकी है‌। अपने माता पिता की संतानों में दो भाईयो से बड़ी है,परिवार का भरण पोषण वही करती है‌। परिस्थितियो की मारी सहज सुंदर रमली को युवा स्टेशन मास्टर पहले अनुग्रह करता है,फिर प्यार। कहानी ट्विस्ट करती है। रमली की शादी होती है,साल भर मे वह विधवा हो जाती है। स्टेशन मास्टर का तबादला होता है, दोनो मिल नहीं पाते। कालांतर मे रमली वापस लौटती है। पता लगाती है,नये मुकाम पर ढूंढ़ती है। फिर निराश हो जाती है। प्यार परवान नहीं चढ़ पाता,स्टेशन मास्टर का पिता रास्ते से हटाने का प्रयास करता है। स्टेशन मास्टर पागल हो जाता है।

रमली भटकती नये नये ठिकानों पर पहुंचती है। कहानी सिनेमाई अंदाज मे ट्विस्ट करती है। रमली को सहारे मिलते रहते हैं, जीने की आस बढ़ती है। एक दिन पढ़ लिख कर वह सब इंसपेक्टर बन जाती है्। स्टेशन मास्टर की नौकरी छूटती है और वह पहले पागल फिर ठीक होकर प्रतियोगी परीक्षा देकर आबकारी अधिकारी बनता है। जहां उसी विभाग की महिला अधिकारी से प्रेम हो जाता है। शादी करना चाहते है, तो कहानी मे दोनो के बीच रमली की एंट्री होती है। विवाह टूटने के कगार पर पहुंच जाता है। मानसिक तनाव मे स्टेशनमास्टर/आबकारी अधिकारी पंकज त्रिपाठी,संन्यासी बन जाता है। दोनों महिलाएं मिल कर ढूंढ़ लाती है। फिर शादी को लेकर तनाव.. महिलाओं का एक दूसरे के लिए त्याग । रमली विभाग के पुलिस इंसपेक्टर लाखन से विवाह करती है।

पंकज का विवाह ,महिला विभागीय अधिकारी सरोज (जो ब्राह्मण है) से होजाता है। फिर ट्विस्ट होता है। लाखन से झगड़ा,रमली का लाखन से अदावत, उसका गोली मारना रमली के बजाय पंकज की पत्नी को गोली लगना,फिर मर जाना। रमली का लाखन से तलाक फिर पंकज से शादी करना। उसके भाई बिरजू का मिलना.. यह सब जल्दी जल्दी घटित होता है।
उपन्यासकार की भाषा सरल किंतु साहित्यिक है,शैली बेहतर है। कहानी पढ़ने की उत्सुकता बनी रहती है।

बीच बीच मे मुहावरे और लोकोक्तियां भी हैं। बद्रीनाथ और मुंबई के स्थलों का वर्णन है। पारंपरिक सजातीय विवाह और अंतर्जातीय विवाह का अंतर्द्वंद्व है। फिर सहमति है। उपन्यास कार विज्ञान का शिक्षक होकर सफल उपन्यासकार बना,तीन उपन्यास लिख डाले अपने मे अजूबा है। मैं प्रयास की सराहना करता हूं। यद्यपि उपन्यास के अंत में घटनाएं तेजी से बदलती हैं,परंतु लेखक ने इसे समसामयिक बनाने का भरसक प्रयास है।

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