श्रीराम ने दशानन को मार कर विजय हासिल की
राजागण इसी तिथि मे प्रारंभ करते रहे विजय यात्रा
विजय दशमी को क्षत्रिय वीर करते हैं शस्त्र पूजन
नीलकंठ दर्शन माना जाता है शुभ
जीवन के दश विकारों पर विजय का पर्व है दशहरा
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है विजय दशमी। हर साल आश्विन शुक्ल दशमी को हम सत्यव्रती मर्यादा पुरुषोत्तम राम के द्वारा रावण का वध कर जनकनंदिनी सीता को वापस लाने का यह पर्व मनाते हैं। वास्तव मे सीता बुद्धि है, और राम हर जीव की आत्मा है। काम,क्रोध,मद लोभ मोह मत्सर, चोरी करना,हिंसा,असंयम,भय आदि दस विकार दशानन के दस मस्तक हैं,यह दशानन रावण हमारी बुद्धि का अपहरण कर लेता है। अत: नवरात्र के नौ दिन अपनी आत्मशक्ति को जगाकर हम राम जैसी शक्ति उपार्जित करते हैं और फिर असत्य आदि विकारों पर विजय हासिल करते हैं। स्वयं राम ने देवर्षि नारद के कहने पर नवरात्रि में शक्ति उपासना कर दैवी शक्ति अर्जित किया, फिर रावण की लंका पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। राम के रावण पर विजय का पर्व ही विजय दशमी कहलाता है।
नवरात्रि मे व्रत कर हम देवी उपासना कर शक्ति अर्जित करते है,अपने भीतर की आसुरी शक्तियों का विनाश कर दैवी शक्तियों का जागरण कराते हैं, जिससे विकार मुक्त बुद्धि को वापस पा जाते हैं। रावण (लोभ), कुंभकर्ण(क्रोध), मेघनाद( काम) का प्रतीक माना जाता है। रावण के दसों मस्तक दस विकार हैं। यद्यपि उसने कठोर तप करके शिव को प्रसन्न करने के लिए अपना दसो मस्तक काटकर शिव को अर्पित किए,परंतु लोभ और अहंकार ने वे मस्तक फिर उसके सिर के रूप मे़ पैदा कर दिए और वह दशानन कहलाया।
एक अन्य पुराण के अनुसार श्रीराम ने इस दिन किष्किंधा पर्वत से लंका विजय यात्रा शुरू की थी। मार्ग मे देवर्षि नारद और ऋषि अगस्त्य से उनकी भेंट हुई। देवर्षि नारद ने शक्ति उपासना और ऋषि अगस्त्य ने उन्हें सूर्य की उपासना का रहस्य ‘आदित्य हृदय’ के रूप मे उन्हें बताया और उपासना की विधि बताई । श्रीराम ने शक्ति अर्जन के पश्चात् रावण कुंभकर्ण आदि का संहार करने मे सफलता पाई। रावणादि का वध करने के पश्चात् उन्होने रावण के अनुज विभीषण को लंका का राजा बनाया। फिर बड़े आदर के साथ विभीषण ने देवी सीता को राम को लौटाया। श्रीराम प्रमुख वीरो के साथ पुष्पक विमान मे बैठ कर श्री अयोध्या धाम वापस आए। जहां भारी उत्सव के बीच रामराज्याभिषेक हुआ।
रामलीला का मंचन
परंपरा के अनुसार नवरात्रि मे ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र मे जगह जगह रामलीला का मंचन होता है। दसवें दिन रावण के पुतले को श्रीराम वाण से मारते हैं,जिससे पुतला जल उठता है। फिर वानरी सेना हर्षोल्लास के साथ देवी सीता को अशोक वाटिका से वापस लाती है। लंकाधिपति विभीषण जानकी जी को राम को सौंपते है। बानर भालू बने कलाकार खुले मंच पर यह लीला करते है। वनवासी राम और लक्ष्मण अपने सहयोगी जामवंत, हनुमान, सुग्रीव, विभीषण, नल- नील आदि के साथ मिल कर रावण दल से युद्ध करते हैं। इस अवसर बहुत से विद्यालयों में राम कथा का मंचन किया गया और बाल पात्रों से रामलीला के मुख्य भूमिका का निर्वहन कराया है गया।
दशहरा मे नीलकंठ दर्शन शुभ
दशसरे के दिन नील कंठ दर्शन शुभ माना जाता है। बताते हैं समुद्र मंथन के समय चौदह रत्न निकले जिसमे सर्व प्रथम हलाहल विष निकला,जिसके विषय ज्वाल से लोग जलने लगे। ऐसे मे श्री हरि विष्णु के अनुरोध पर आशुतोष भगवान शिव ने हलाहल विष का पान कर लिया। किंतु हृदय मे प्रभु का निवास है,जान कर कंठ मे ही विष रोक लिया जिससे उनका कंठ नीला होगया। नीलक़ठ पक्षी शिव के उस स्वरूप का प्रतीक है जान कर लोग नील क़ठ पक्षी का दशहरे के दिन दर्शन करना शुभ मानते है़।